पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५६१

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१६० औहत्य-ौनापौना चौहत्य (सं० क्लो०) उहतस्य भावः, उहत-व्यञ्। भौद्भिदव्य (सं० क्लो) पृथिवीको फोड़ उत्पन्न अविनीत भाव, पृष्ठता, गुस्ताखी, अक्खड़पन । होनेवाला पदार्थ, जो चीज़ जमौन्को फोड़ कर पैदा पौचारिक (सं० वि०) उहाराय प्रभवति, उद्दार ठञ्। हो। वनस्पति, लता आदिको भौद्भिदव्य कहते हैं। १ उद्दारके लिये दिया जानेवाला, मौरूस होनेके श्रौद्भिद्य (स. क्लो०) उद्भिदो भावः, उद्भिद यज । काबिल, जो हिस्से सरोकार रखता हो। १ वृक्षादि की उत्पत्ति, पेड़ वगैरहको पैदायश।' “विग्रस्यौद्धारिक दैयमेकांशश्व प्रधानतः।" (मनु १५०) २ जिष्णुता, फतेहमन्दो, जोतकी राह निकालनेका भौहित्य (स क्लो०) हर्षयुक्त उत्तेजना, खुशीसे काम। मरा हुअा जोश। औद्याव (सं० त्रि.) उद्यावस्त्र व्याख्यानो ग्रन्थः पौद्भारि (स' पु०) उद्धारस्य ऋषेरपत्यम्, इन । उद्यावे भवो वा, उद्याव-अण। १ उद्यावको व्याख्या सद्भार ऋषिके पुत्र, खण्डिक । करनेवाला, जो मेल का बयान करता हो। २ उद्याव- भोभिन्न (सं० लो०) उद-भिद-जन-ड स्वार्थ श्रण । १पांशु- जात, जोड़से पैदा।। लवण,शोरा। शाम्भरि लवण, सांभर नोन । श्रौनिद देखो। औद्योगिक (सं.वि.) चेष्टा सम्बन्धीय, कोशिश पौद्भिद (सं० ली.) उद्भिद स्वार्थ अण। १ पांशु- मुताल्लिक, जो उद्योगसे सम्बन्ध रखता हो। सवण, शोरा। २ शाम्भरिलवण, सांभर नमक। यह ौहाडिक (सं. क्लो०) उद्दाहकाले लब्धम्, उहाह- लवण स्वयं ही भूमिसे उत्पन्न अर्थात् खनिज होता | ढज। १ विवाहमें प्राप्त स्त्रीधन, शादीमें औरतको है। औदिलक्षण लघु, तीक्ष्ण, उष्ण, वमनकारक, मिलनेवाली दौलत। इस धनमें ज्ञातिगणका अंश वायुका अनुलोमक, तिक्त, कट एवं कोष्ठवडता, पानह | नहीं रहता। पिधनको क्षति न पहुंचा जो स्वयं पौर शूलनाशक है। ३ जलविशेष, झरनेका पानी।। कमाया अथवा मित्रसे या उद्दाहकालमें पाया जाता, निम्नमिसे ऊपरको उस्थित अर्थात् जलाशयस्थ उसमें ज्ञातिगणका अंश नहीं आता। ... 'जलको औशिद कहते हैं। यह मधुर, पित्तनाशक ____ “पिवट्रव्याविनाश न यदन्यत् स्वयमर्जयेत् । ..और अविदाही होता है। सुश्रुतने वर्षाकालमें वृष्टिके मैत्रमौदाहिकच्च व दायादानां न तदभवेत्॥” (याज्ञवल्क्य) जलका प्रभाव पड़नसे इसका व्यवहार विहित वताया औध (हिं० पु.) १ अवध, अयोध्याके इधर-उधर वा . है। ४ वृक्षादिजात द्रव्य, पेड़ वगैरह से पैदा होने मुल्क । अवध देखो। (स्त्री०) २ अवधि, बंधा हुअा वा । • वाली चीज़। वृक्षादिसे . उत्पन्न हनिवाले मुल, औधमोहरा (हिं० पु०) मस्तक उन्नतकर गमनशील वल्कल, काष्ठ, निर्यास, डंठल, रस, पल्लव, क्षार, क्षौर, हस्ती, जो हाथी सर उठा कर चलता हो। . सल, पुष्प, भस्म, तेल, कण्टक, पत्र, कन्द और औधस (सं० त्रि.) उधस-इदम, उधस-प्रण। १ उधस- पङ्करका नाम औद्भिद है। वैद्यक में उक्त सकल द्रव्य | सम्बन्धीय, चौपायेके बाख से सरोकार रखनवाला। बहसका विधि विद्यमान है। (चरक) (को०) ३ पशुटुग्ध, चौपायेका दूध। (त्रि.) ५ निर्गमशील, निकलनेवाला । ६ विजयी, औधस्य (सं० लो०) उधसि भवम्, उधस-यत्र । राह निकालनेवाला। पशुदुग्ध, चौपायका दूध । पौद्भिदजल (सं० को०) १ उद्भिदजात जल, पेड़से औधि (हिं.) अवधि देखो। . निकलनेवाला पानी। २ प्रस्तरसलिल, पहाड़से |ौधिया (हिं. पु०) तस्कर, चोर। . करनेवाला पानो। निमभूमिको फोड धारावाहिक औनत (हि.) अवनत और अवनति देखो। कपसे बननेवाला जल भौडिद कहलाता है। यह ओनापौना (हिं.वि.) १ प्रायः तीन अंशयुक्त, कोई पित्तघ, अविदाही, अतिशोतल, प्रौणन, मधुर, वख्य, तीन हिस्से रखनेवाला। (क्रि.वि.) २ नोन अंश- ईषववातकर और लघु होता है। (भावप्रकाय) पर, तीन हिस्से में, कुछ कम, नुकसान उठाकर।