औरङ्गजेब ५७३ औरङ्गजे.बका दरबार लगा। दारा बड़े थे. वे सम्राट् देखकर उसे पहचान न सके। कुछ देग्तक जल चटपट राजा होने चले थे, उन्हें क्या दण्ड देना में भिगाकर अपने हाथ के रूमालसे खून पोच डाला, उचित था ? अनेक आदमियों ने कहा- इन्हें फिर अच्छी तरह उसे पहुंचाना। औरङ्गजे.बने यावज्जीवन ग्वालियरके किले में कैद रखना मुनासिब कहा,-"हां, यहो मेरा दुग्दृष्ट भाई दारा है।" इस है। परन्तु औरङ्गजेबकी देसी इच्छा न थी। यही तरह कहते कहते पत्थर फटकर दो बूंद पांसू निकल समझकर दो एक सभासद बोले,-"दारा नास्तिक गये। इसके बाद सुलेमान और दाराका मंझला हैं। नास्तिकका प्राणवध न करना मुहम्मदके प्रतिष्ठित लड़का ग्वालियर के किले में कैद किया गया। धम्मका विरुद्धाचरण है।" अब बात मनके लायक औरङ्गज,बके मंझचे लड़के मुहम्मद मवज्जम दक्षि- हुई। औरङ्गजेबने कहा, "यह बात ठीक है। णाचलमें थे। औरङ्गजे.बने इमलिये उन्हें अपने दाराको जो मेरी हानि करनी हो करें। मैं उसे सह पाम वुना लिया-क्या मालम पीछे कहीं वह कोई सकता हूं, परन्तु नास्तिकता असह्य है।" अतएव उसी उपद्रव न मचावें। रासको दाराक प्राणविनष्ट करनेका भाव नाज़िर और औरङ्गजे.बके राज्यलाभका कौशल यही था। किन्तु सफो नामक दो पफगान सरदागेको सौंपा गया। इसमें निष्ठरता भित्र बुद्धिमत्ताका परिचय कुछ भी आधीरातका समय था। दाराके कमरेके पास नहीं है। पितासे पुत्र, भाईसे भाई और प्रभुसे भृत्वको हठात् अस्त्रों को भनभनाहट सुनाई दी। बदनसीब काम पड़ता है। अभी अविश्वास रहता, फिर कुछ शाहज़ादेके दुःखको कुछ रात जागर्नमें वीत गई, कुछ रोनेपर तुरत ही नेह, ममता और विश्वास पा जाता काकनिद्रामें वीतनेवाली रही। आंख लगती जाती है। ऐसे स्थलमें जो अधिक पाषण्ड होता, उसोको थी। उसी समय कानमें अस्त्रोको झनझनाहट जय मिलता है। पड़ी। वे चौंक उठे और समझ गये-आज कुकर्मों लोग अपना अपना कलह छिपानेके अन्तिम काल उपस्थित है। लड़का सो रहा लिये एक एक सत्कर्म करते हैं। औरङ्गजे.ब मी था, उसे उन्होंने जगाया। घासकोंने दरवाज़ा! इक कौशलको अच्छी तरह समझते थे। एकवार खोला। दारा क.समतराश कुरोको ले एक कोने में । सारे भारतवर्ष में अकाल पड़ गया। राजकोषसे धन जा खड़े हुए। दुष्टोंने दाराक लड़केको बगल | देकर इन्होंने प्रजाको भलाई को। यत्नपूर्वक विद्या वाले एक कमरमें बांध दिया। पहले उन लोगों ने सीखना हमारे देशके राजपुत्रोंके भाग्य में प्रायः नहीं ख.याल किया-गला घोटकर दाराको मार रहता। उन लोगोंका लड़कपन प्रायः पानन्द सुखमें डालेंगे। किन्तु इसप्रकार प्राणदण्ड पाना राजपुत्रके । ही कट जाता है। परन्तु औरङ्गजे.बने विद्याभ्यासमें लिये घृणाकर था। इसलिये असीम विक्रमके साथ कभी पालस न किया था। अरबी और फारसी दाराने एक घातकके कलेजे में अपनी कुरी घुसेड़ दो। भाषाके यह अच्छे पण्डित रहे। इसके अतिरिक्त भारत- लाचार अन्तमें उन लोगों ने तलवारसे दाराका शिर वर्षके अनेक स्थानोंको भाषाओं में यह चिट्ठी लिख सकते काटा। दाराका पुत्र अपने पिताको लइसे लथपथ और उन्हें बोल भी सकते थे। सर्वत्र विद्यालोचनाका लाशको गोदमें लिये रातभर रोता रहा। नाजिर उत्कर्ष साधन करनेके निमित्त इन्होंने अनेक पाठ- कटे हुए शिरको खेकर चले गये। शालायें स्थापन कौं। किन्तु केवल विद्यालय रहनेसे - उस दिन सारीरात औरङ्गजे.बको नींद न आई।। ही काम नहीं बनता। तत्त्वावधान न होनेसे विद्या- बड़े भाई का मृतमुख देखनसे उन्हें शान्ति होतो। लय स्थापन करना निष्फल है। इसलिये इन्होंने कई प्रातःकाल होनेके पहले हो नाज़िर दाराका लइसे चतुर और कृतविद्य तत्वावधायक नियुक्त कर दिये। भरा, विश्री और विवणं शिर लेकर आ पहुंचे। मुसलमान सम्राटोंमें प्रायः सभो विलासी और Vol. III. 144
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५७४
दिखावट