औरङ्गजेब अपव्ययी रहे। परन्तु औरङ्गजे बमें ऐसे दोष न थे। इन्द्रका इन्द्रत्व भी डोल उठता-कुटिल राजनीति सचराचर यह सामान्य वस्त्र पहनकर रहते । विवाह एवं अस्त्रवल मिथ्या है। औरङ्गजे.ब अपनी शठता आदि उत्सवोंके सिवा अनर्थक नाच तमाशेमें इनका छिपानेके लिये सबको प्यार करते थे। पहले जो प्रर्य नष्ट न होता था। इन्होंने भारतवर्षके नाना । लोग इनके विरोधी रहे, उनके साथ भी यह स्नेह रखते स्थानों में पथिकोंके लिये आश्रम बनवा दिये।। थे। परन्तु लोग समझ गये-यद कौशल भिन्न और उन आश्रमों में भोजनको सामग्री भी सञ्चित रहती कुछ नहीं है। इसलिये हिन्दुओंको कौन कहे, थो। प्रजामात्र सम्राटके पास जा सकती थी। मुसलमान भी मन ही मन इनके शन थे। खलके विचारालयमें यदि किसौपर अन्याय होता, तो वह प्रेममें पड़ना काले सांपके साथ रहनेके समान है, स्वयं सम्राटसे जाकर कह देता। इसलिये विचारपति | विपद आ जाने में देर नहीं लगती। घस न ले सकते थे। • यह तो हुई साधारण लोगों को बात! हिन्ट्र देखने में सम्राट सुपुरुष न थे, परन्तु अतिशय मिष्ट | इनके अत्यन्त विरक्त हो गये थे। वह हिन्दुओंको भाषी रहे। नित्य प्रातःकाल उठ यह स्नान आङ्गिक मुसलमान बनानेके लिये उत्पीड़न करते थे। इसोसे करते थे। उसके बाद एक प्रहरतक राजकाज जिन राजपूत बोरोंके बाहुवलसे तैमूरवंशकी इतनी संभालते। एक प्रहरके बाद भोजनका समय निर्दिष्ट प्रतिपत्ति हुई थो, अन्तमें उन लोगोंने भी सम्राटको था। भोजनके बाद औरङ्गजे.ब हाथी, घोड़ा और छोड़ दिया। औरङ्गजे.बको वृद्धावस्था में जब चारो बाघ पादिको लड़ाई देखते। यही इनका आह्वाद ओर विप्लव उपस्थित हुआ, तो उस टुःसमयमें किसौने प्रमोद था। इनकी पोर न देखा। उधर महाराष्ट्र देशमें शिवाजी प्रासाद-प्रमोदके बाद दीवान-प्राममें बैठ यह भस्मके भीतर अग्निस्फ निङ्घको भांति छिपे थे। सभा करते थे। इसी समय अमीर उमरा और क्रमसे प्रधमित होकर उन्होंने अकाराण्डका कुण्ड विदेशके राजदूत आदि आकर इनसे मिल जाते। जला दिया, मोगल साम्राज्यका मम्मतक कांप शुक्रवारको दरबार बन्द रहता था। ईसाइयों के उठा। औरङ्गज,बका उतना तेज, उतना उद्यम,- लिये जैसे रविवार, मुसलमानोके लिये वैसे ही फिर कुछ भी न रहा । वह ज्वलन्त दीपशिखा शुक्रवार है। इससे सम्राट शुक्रवारके दिन काम बुझने लगी। इन्होंने पहले जो टुष्कर्म किये थे, काज न देखते थे। प्रायः सम्राटोंका अन्तःपुर असंख्य उन्हों पापोंके कारण हृदयमें सहस्रों विच्छ पोंके रूपवती रमणियोंसे परिपूर्ण रहता है। औरङ्गजेब के काटनेको ज्वाला उठ खड़ी हुई । यह लोगोंके अन्तःपुरमें भी अनेक दासियां थीं। परन्तु वे सब सामने अपना मुहतक दिखा न सके। क्रमसे अनु- केवल राजप्रासादको शोभाके लिये ही रहौं। तापमें जोणं, लिष्ट और जरजर हो पापी माण फलतः विवाहिता स्त्री भिन्न यह कभी दूसरी स्त्रीका पञ्चभूत शरीरसे निकल गये। मुंह न देखते थे। अन्तिम अवस्थामें औरङ्गजे.ब प्रायः दाक्षिणात्य अतएव औरङ्गजे.बका गुणराशि दोषके ठीक प्रदेशमें ही रहते थे। अहमदनगरमें इनका मृत्यु विपरीत था। एक पोर चन्द्रको हिमधारासनी हुआ। वहां अनेक प्रकारके मसालोंमें इनका मृतदेह ज्योत्स्नाके सौन्दर्यसे हृदय शौतल रहता, दूसरी रक्षित किया गया। पौछे इलोरा और गोदावरीके ओर अमावस्याका निविड़ अन्धकार-निष्ठ रताका मन्निकट रोज़ा नामक स्थानमें यह समाहित हुये। कठिन हस्त देखने से प्राण कांप उठता था। जो हो, कहते हैं. इन्होंने एक प्रकारको दापो बनाई थो। इनका दुश्चरित्र हौ मोगल साम्राज्यके पतनका प्रधान उसोको बिकासे इनके सम्माधिका व्यय निर्वाह कारण है। प्रजा असन्तुष्ट होनेसे राजा नहीं रहता, किया गया।
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५७५
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