पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५७७

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५०६ औरभ्र-और्णवाध उपाय औरख (स.पु.) उरवस्य मेषस्य इदम, उरच-। अक्षा०२६°३४ उ.तथा देगा०८०.३३ पू०में उनाव-

अण। १ कम्बल, मोटे जनको लोई। संस्कृत पर्याय से संडोला जानेवाली सड़क पर अवस्थित है। सप्ताह में

प्राविक और खल्लक है। २ धन्वन्तरिके दो बार बाजार लगता है। अनाज, तम्बाकू, शाक, अन्यतम शिष्य। ३ मेष, भेड़। (लो०) ४ मेष- और देशी तथा विलायती कपड़े का काम होता है। मांस, भेड़का गोश्त। यह ढहण, पित्त एवं लेम- मट्टीके बरतन और सोने-चांदौके छल्ले बनते हैं। वर्धक और गुरु होता है। ५ मेषदुग्ध, भेड़का दूध । औरिण (सं० ली.) १ मृत्तिकालवण, मट्टीका नमक। यह मधुर, स्निग्ध, गुरु, पित्त-कफवर्धक और कासके २ यवक्षार, जवाखार। लिये हितजनक है। ६ ऊर्णावस्त्र, ऊनी कपड़ा। औरोबोरो (हिं. स्त्री०) आवलो बावली, पगली, ७ मेषसमूह, भेड़का झुण्ड । (वि०) ८ मेषसम्बन्धीय, बेवकूफ औरत। मेड़के मुतालिक। पोरक्षयस (सं० पु.) उरुक्षय के पुत्र । पौरभ-एक प्राचीन वैद्यकग्रन्य रचयिता। सुश्रुत और औरुवक (स.ली.) एरण्डतैल, रेडीका तेल। चन्द्रतने इनका वच किया है। | औरब (हिं० पु०) १ कुटिल गमन, टेढ़ी चाल। औरमक, औरम देखो। २ वक्र कर्तन, तिरछा तराश। ३ जटिलत्व, फंसाव । औरश्चिक (स.नि.) औरमः पण्यमस्य, उरच ४ जटिल विषय, पेचीदा बात। उन् । १ मेषविक्रयोपजीवी, भेड़ बेचकर अपना काम | औरैया-१ युक्त प्रान्तके इटावा जिलेको एक तहसील । चलानेवाला। २ मेष-सम्बन्धीय, भेड़के मुताबिक यह यमुना, चम्बल और कारी नदीके दोनों किनारे (पु.) ३ मेषपालक, गड़रिया। विस्तृत है। कितने ही नाले बहा करते हैं। क्षेत्रफल औरश (सं० पु.) उरशजनपदवासी, उरशका ३०८ वर्गमोल है। बाशिन्दा। उरश देखो। .. २ युक्त प्रदेशके इटावा जिलेका एक नगर। यह चौरस (सं. पु.) उरसा उत्पादितः, उरस-प्रण। अक्षा. २६.२८ उ. तथा देशा. ७.३३१५" १ समान जातीय विवाहित भार्याक गर्भसे उत्पादित पू०में इटावे और कालपौकी सड़क पर अवस्थित है। पुन, प्रसौन लड़का। हादश प्रकार पुत्रके मध्य ग्वालियर और झांसीके साथ बड़ा व्यवसाय होता है। • यही पुत्र श्रेष्ठ होता है। ( मनु १६६) २ असवर्ण तहसीलो बहुत अच्छी बनी है। ३ सराय, २ बड़े भार्याक गर्भसे उत्पादित पुत्र। . . तालाब, २ उमदा मसजिद, और कितने ही मन्दिर "आमनसुनवापि निहतं पुनमौरसम् ।” (भारत, भौम स०) विद्यमान हैं। सुनने में आया, कि सिपाही विद्रोहके - (त्रि.)३दयोत्पन, प्रसौल। समय कुछ महाजनोंने विद्रोहियोंको उत्कोच- चौरस (सं.वि.) उत्तम, अच्छा। स्वरूप कितना हो धन दे लट जानेसे अपना प्राद चौरस-चौरस (हिं.वि.) १ समस्थ, हमवार, बरा बचाया था। बर। (क्रि. वि. ) २ चारो ओर, चौतरफं। और्ण (सं० वि०) ऊर्णाया: विकारः, ऊर्णा-अञ् । औरसना (हिं. क्रि.) रस न रखना, बेमजे पड़ना, मेषलोम-जात, ऊनी। बिगड़ना। और्णनाभ (सं० वि०) जर्णनाभस्व इदम्, अर्णनाभ- पौरसिक (सं. क्लो. ) उरस स्वार्थे ठक् । वक्ष, छाती। अण्। ऊर्णनाभ-वंशीय, कर्णनाभके खान्दानमें औरस्थ (सं• पु.) उरसो भवः, उरस्-यत् स्वार्थे | पैदा हुआ। भण् । १ औरसपुत्र, असौल लड़का । (त्रि०) २ धर्मज, पोर्णनाभक (सं० त्रि.) जर्णनाभोंसे बसा हुआ। पसोल। ३ वक्षःस्थलजात, दिलौ। और्णवाध (सं० पु.) १ अर्णवाधिक गोवापत्य । चौरास-युनामान्तकै उनाव जिलेका एक ग्राम। यह! २ वैयाकरणविशेष ।