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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५७८

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और्णवाभ-ौली और्णवाभ-संस्कृतके एक प्राचीन विहान्। यास्कने तपस्या करने लगे। उस उग्र तपस्या सर्व प्राणियोंका इनका वचन उद्दत किया है। विनष्ट होना समझ पिटलोकसे पिळपुरुषोंने उनके और्णावत (सं. वि. ) अर्णावतोऽयम्, अण् । ज- निकट जा क्रोध छोड़नेको अनुरोध किया था। किन्तु वतवंशीय। क्षत्रियगणको उस हिंसाको स्मरण कर उर्व किसी औणिक (सं. त्रि.) या निमित्तं संयोग प्रकार क्रोध छोडनेपर खोक्कत न हुये। सब पिढगणने उत्पातो वा, कर्णा-ठन। मेषलोम-जात, जनो। कहा था-'जल सर्वलोकमय है। जलमें ही सर्वलोक औध्यकालिक (सं.वि.) ऊर्ध्वकाले भवः, जर्वकाल- रहते हैं। सर्वलोकविनाशके लिये उत्पन्न अपमा ठञ्। १ अर्ध्व कालोत्पन्न, पिछले वक्त पैदा हुआ। पग्नि जलमें ही छोड़ दो। उससे तुम्हारी प्रतिज्ञा २ अर्वकाल-सम्बन्धीय, पिछले वक्त के मुतालिक। पूर्ण हो जायेगी। इसप्रकार अनुरुह होनेपर उर्वने औध्वं देह (सं० लो०) जव देहस्य इदम्, अवंदेह. समुद्रके ही मध्य वह क्रोधाग्नि डाल दिया। वहां अण्। अन्त्येष्टिक्रिया, अरथीका काम-काज। वृहत् अश्वसुहरूपो बन पौर मुखद्वारा अनल उगल प्रोटेशिक ( वि.) देहाय साधः. ऊर्ध्व- पनि जल पीने लगे। देह-ठ । १ मरणान्तर-शास्त्रोक्त कार्यादिसे सम्बन्ध प्रौर्व-संस्कृतके एक प्राचीन कवि। रखनेवाला। मृत्यके दिनसे सपिण्डीकरण पर्यन्त पौवेश (स. त्रि.) उर्वश्या इदम्, उर्वशी-प्रल् । पिण्डदानादि प्रभृति जो कार्य किया जाता, वह १ उर्वशो-सम्बन्धीय। (पु.) उर्वश्या अपत्य पुमान् । पौवं देहिक क हाता है। (क्लो०) २ अन्त्येष्टिक्रिया, २ उर्वशीके पुत्र, पञ्चप्रवरान्तर्गत एक मुनि । अरथौका काम-काज । । औवैशेय (स० पु० ) उर्वश्या अपत्यम्, उर्वशी-ढक् । पौवं दैहिक (सं० त्रि.) मृत्यके बाद प्रेताद्देशसे किया | अगस्त्य मुनि। अगस्ता देखो। जानेवाला। और्वानल (सं० पु०) बड़वानल। पौर्व देखो। पौवन्दमिक (सं० वि०) जवंन्दमे भवः, ऊर्ध्वन्दम औल (स.ली.)१ खेत शूरण, सफ़ेद ज़मीकन्द । ठक। अर्वन्दमोतपत्र, जो जपरसे पैदा हो। (हिं०) २ वन्य ज्वर, जंगली बुखार। .. औध्वसदमन (सं० लो०) सामविशेष। पौलपि (सं.पु.) उलपस्य अपत्यम्, उलप-दूज। पौवं श्रोतसिक, औय स्रोतसिक देखो। उलप-पुत्र, उलपके लड़के। प्रौद्ध स्रोतसिक (सं०वि०) वस्रोतसि आसक्तः, औलयो (सं० पु.) उलपेन प्रोवं छन्दोऽधति, उलप- जलस्रोतस-ठ । शैव, शिवका भक्त । णिनि। उलप लिखित छन्दोग्रन्यका पाठक, उलफ्को औवे (सं० लो०) उव्या भवम्, उर्वी-प्रण। १ उद्भिद- बनायो किताब पढ़नेवाला। लवण, नबातातो नमक। २ मृत्तिका लवण, मट्टोका औलपोय (सं० पु०) प्रौलाप-नरेश, औलपियोंके राजा। नमक। ३ यवक्षार, जवाखार । (वि.) ४ भूमिजात,ौल-फौल (हिं. पु.) १ निन्दागर्भ भाषा, गाली- कानी, ज़मौनसे खोदकर निकाला हुआ। (पु०) उव- गुफ्ता। २ अनर्थवाद, बकझक। ऋषरपत्यम। ५ उर्व ऋषिके पुत्र। ६ वशिष्ठके औलाद (अ० स्त्री०) सन्तति, नसल, बेल। यह एक पुत्र। ७ भृगुवंशीय एक ऋषि। ८ बाड़वानल। शब्द 'वल्द' का बहुवचन है। भारतमें बाड़वानलको उत्पत्ति-कथा इसप्रकार लिखौ औलान (सं० लो०) अवलम्बन, सहारा, टेक। है-क्षवियोंके हाथों मुगुका अपमान होने बाद उर्व औलिया (अ० पु.) सिद्धजन, दरवेश । ऋषि गर्भ में रहे। उसी समय चविय भृगुको पत्नीका औली (हिं. स्त्रो०) प्रत्यगाव, टटको बाल गर्म नाश करनेको उद्यत हुये। किन्तु उर्व | प्रथम वेवसे आनोत हरित् एव अभिनव भच्यको उरुभेद पूर्वक जन्म ले उसी प्रतिहिंसा-साधनके लिये । औलो कहते हैं। Vol. IIL 145