५७८ ओलू-औषध पौल (हि. वि.) १ नवीन, नया, अनोखा।। अण। १ शुक्राचार्य-प्रणीत ग्रन्थ, शक्राचार्यको बनाई २ असाधारण, गैरमामूली। ३ कठिन, नागवार, किताब। २ उपपुराण विशेष। ३ तीर्थ विशेष । भारी। ४ विचलित, बेचैन। (पु०) ५ नवौनता, (वि.) उशनस इदम्। ४ शुक्राचार्य-सम्बन्धीय । नयापन। ६ काठिन्य, भारीपन। ७ वकल्य, बेचैनी। औशनसो (सं० स्त्री०) उशनसो ऽपत्यं स्त्री। शुक्रा- औल क ( स० क्लो. ) उलकानां समूहः, उलक चार्यको कन्या, देवयानी। राजा ययातिसे इनका अञ्। उल क-समूह, उल्लवोंका झुड। परिणय हुअा था। औलक्य (स० पु. ) उलकस्य अपत्य पुमान्, उलक- औशि (हिं.) अवश्य देखो। यत्र । गर्गादिभ्यो यत्र । पा ।३१०५। १ उलूक ऋषिके पौशिज (सं० पु०) उशिज् स्वार्थे अण । प्रचादिभ्यश् । पुत्र कणाद। यही वैशेषिक दर्शनके प्रणोता थे। पा ॥४॥३८ । १ इच्छायुक्त, खाहिशमन्द । (पु०) २ पञ्च २ वैशेषिक दर्शनन। प्रवरान्तर्गत ऋषिविशेष। पौल क्यदर्शन (स० क्लो० ) व शेषिक दर्शन। ओशोनर ( स० पु०) उशीनरस्यापत्यं पुमान्, उशोनर- पौलखल (सं० वि०) उलूखले खुसम्, उलुखल- अण। उशीनरके पुत्र शिवि प्रभृति। उशीनरको अण। १ उलखलमें कुट्टित, अोखली में कूटा हुआ। पांच भावोंके गर्भसे पांच हो पुत्र हुये थे-नृगाके २ उलखलोत्पन्न, पोखलौसे निकला हुआ। गर्भसे नृग, कमोके गर्भसे कमि, नवाके गर्भसे नव, भौले (हि.वि.) ठगोंका एक शब्द। ठग किसी देवाके गर्भसे मुहत और दृषहतोके गर्भसे शिवि। अपरिचित व्यक्ति से मिलने पर इस शब्दको व्यवहार औशीनरि (सं. पु०) उशीनरस्थापत्यम, उशीनर- करते और हिन्दसे 'भोले भाई राम राम' तथा मुसल- इज । उशीनरपुत्र, उपौनरके लड़के। मानसे 'पौले खान् सलाम' कहते हैं। इसका "भौशौनरिः पुण्डरीकः शति: शरभः शुचि।" (भारत, सभा ८५०) तात्पर्य उसके ठग होने या न होने को पूछताछ है। ओशोर (सं० पु०-क्लो०) वश-ईरन् स्वार्थे अण् । यदि वह ठग होता, तो अपनी बोलीमें उन्हें बता देता १शय्या, बिस्तर। २ प्रासन, बैठने की चीज। ३ चामर, है। फिर इस शब्दका प्रयात अर्थ न समझ सकने मुरछल। ४ चामरदण्ड, मुरछल को डंडा। (त्रि.) पर ठग उसे अपने फंदेमें लाने की चेष्टा लगाते हैं। औलोकना (हि. लो०) अवलोकन करना, देखना- ओशोरिका (सं० स्त्री० ) १ अङ्गुर, कोपल । २ प्राधार, • भालना। पात्र, बरतन। प्रोखण्य ( स० को०) आधिक्य, कसरत, बह- औषण (सं० लो०) उषणस्य भावः, उषण-प्रण। तायत। १ कटरस, कड़वाहट, चरफरापन। २ मरिच, औवल (१० वि०) १ प्रथम, पहला। २ श्रेष्ठ, | कालो मिचें। बड़ा। ३ अतिशय उच्च, सबसे उमदा। ४ प्रस्तावना- औषणशौण्ठी (सं० स्त्री० ) औषणे कटरसे शौण्डी रूप, तमहोदी। (क्रि.वि.) ५ प्रथमतः, पहले, विख्याता, ७ तत्। शुण्ठी, सोंठ। शुरूमें। (पु.) ६ भारम्भ, शुरू। पौषदखि (सं० पु.) ओषदश्वस्यापत्यम्, ओषदख- औवेणक (स. लौ०) गीतविशेष, एक गाना । एज । ओषदश्व राजाके वसुमान् नामक पुत्र। यह याज्ञवल्काने सात प्रकारके गीत कई हैं-१ अप ययातिके दौहित्र थे। (भारत, आदि ६३ १०) रान्तक, २ उल्लोप्य, ३ मट्रक, ४ प्रकरी, ५ प्रौवेणक, | औषध (सं.लो.) ओषधरिदं पोषधिरेव वा, ओषधि- ६ सरोविन्दु.और ७ उत्तर। . . अण्। पोषधेरजातौ। पा ॥४॥३७। रोगनाशक द्रव्य, दवा। औशन, प्रौशनस देखो। इसका वैद्यकोत पर्याय भेषज, भैषज्य, अगद, जायु, श्रौशनस (सं.को०) उशनसा शक्रेण प्रोचम, उशनस् | जैव, पायुर्योग, गदाराति, पमृत और आयुट्य है।
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५७९
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