पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५८६

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कंखवारो-कंगूरा ५८ कंखवाग (हिं. स्त्री.) कांखका कड़ा फोड़ा। यह कंगला, कंगाल देखो। बड़ी तकलीफ देती है। | कंगलापन (हिं. पु०) दैन्यभाव, गरीबी, जिस कंखौरी (हिं स्त्रो०) १ कांख । २ कंखवारी। हालतमें कौड़ी कौडीको मुहताज रहें। कंग (हिं. पु.) कवच, बखू तर । कंगसी (हिं. स्त्री०) फांस, गंठाव, फंदा। उभय कंगण (हिं. पु.) १लौहचक्रविशेष, लोहेका एक अस्त हारा पंजा फांस मालखंभपर उड़नेको 'कंगसी चक्कर। इसे अकाली सिख अपने शिरपर रखते को उड़ान' कहते हैं। हैं। २ कश्ण। करण देखो। कंगही, कंधौ देखो। कंगन (हिं०) कण देखो। कंगारू (अं० पु. = Kangaroo) पशु विशेष, एक कंगना (हिं. स्त्री०) १ढणविशेष, किसी किस्मको जानवर। यह पशु कोई चहे जैसा छोटा और कोई घास। यह पर्वतके समतलपर अधिक उतपन भेड़ जैसा बड़ा होता है। शरीरको अपेक्षा घिर । होती है। वृषभ कंगनाको बड़ी प्रोतिसे आहार क्षुद्र पड़ता है। देहका पश्चाद, भाग वृहत् रहनेसे करते हैं। (हिं० पु.) २ कारण। ३ गौतविशेष, चारो पैरसे चलते समय कंगारू अच्छा नहीं लगता। एक गाना। इसे विवाहादि उत्सवपर कङ्कण बांधने यह कूदते चला करता है। पुच्छ दीर्घ एवं दृढ रहता या खोलने में स्त्रियां गाती हैं। है। दर्शन, श्रवण एवं प्राणशक्ति तीव्र होती है। कंगनी (हिं. स्त्री.) १ क्षुद्र कङ्कण, छोटा कंगना। | अगले पंजों में पांच उंगलियां निकलती हैं। नख २ कगर। यह छतके नीचे दीवार में रहती है। कुटिल एवं दृढ़ लगते हैं। पिछला पैर अति दोघ, ३ कपड़े का छल्ला। यह नैचेमें मुइनालके पास लगायो । सङ्कीर्ण एवं अङ्गुष्ठ होम होता है। दन्त चौंतीस रहते जातो है। ४ दानेदार घेरा। यह वाघ सीमापर है। पाकस्थली विस्तृत होती है। कंगारू घास- दन्तयुक्त वा तीक्ष्णाय शिखरविशिष्ट होती है। ५ का, पात खाता है। किन्तु क्षुद्र जातिवाले मूल भी व्यव- एक अनाज। भारत, ब्रह्म, चीन, मध्य एसिया ओर हारमें आ जाते हैं। यह भीरु एवं प्राक्रमण न युरोप इसकी उत्पत्तिका स्थान है। हलकी एवं करनेवाला होता है। अधिक सताये जानेपर कंगारू शुष्क भूमिमें कंगनी बहुत पनपती है। यह दो | अपनी रक्षा करेगा। कभी-कभी यह अगले पंजे प्रकारको होती है-रक्त एवं पीत। चौना कंगनीको पकड़ कुत्ते को मार डालता है। कंगारू चष्ट्र. खमें बोते और ज्येष्ठ मासमें काट लेते हैं। लिया पार तसमानियामें रहता है। यह पशवोंका किन्तु साधारणतः भाषाढ़-श्रावण बाने और भाद्र- रक्षित ढण चर जाता है। लोग इसको मांस खाने आश्विन काटनेका समय है। सौंचनेको बार-बार और तृण बचानेके लिये मारा करते हैं। न्य गौ- आवश्यकता पड़ती है। कंगनी सांवासे क्षुद्र और निया और निकटस्थ होपों में भी कुछ कंगांक वर्तुल रहती है। मञ्जरी क्षुद्र, पीतवर्ण एवं सघन | रोमयक्त होती है। यह पक्षियोंको बहुत दी जातो कंगाल (हिं० वि०) दरिद्र, निर्धन, गरीब, मुहतान। है। कषक इसका भात खाते हैं। कंगनीका पुराना | कंगाल-बांका (हिं. पु.) कंगालगुंडा, जिस बद- चावल रोगोके लिये पथ्य है। मासके पास पैसा न रहे। कंगनी-दुमा (हिं० वि०) १ ग्रन्थियुक्त पुच्छ-विशिष्ट, कंगाली (हिं. स्त्री.) दरिद्रता, गरीबी, मुहताजी। गांठदार पूंछ रखनेवाला। (पु.) २ हस्तिविशेष, कंगुरिया (हिं. स्त्रो०) कनिष्ठिका, सबसे छोटो. किसी किस्मका हाथी। इसकी पूंछमें गांठ रहती उगलौ। . है। लोग कंगनी-दुमेको प्रशभ समझते हैं। कंगूरा (हिं० पु०) १ दुर्गको भित्तिमें ऊपर बना कंगल, कंग देखो। दुपा छोटा द्वार, बुन। २ प्रासादाग्र, महलको • Vol. III. 147