५८६ कंगूरदार--कंजुवा चोटी। ३ शिखा, चोटी। ४ मुकुटमणि, ताजका । कंचनी (जि. स्त्री.) वेश्या, रंडी। जवाहिर। ____नचे कंचनौ तबला उनके खहरा उड़े सरंगिन क्यार ।” ( पाल्हा ) कंगूरेदार (हिं० वि०) शिखायुक्त, चोटीदार। | कंचुरि (हिं.) : कंघा (हिं. पु.) १ कहत, शाना, ककवा । इसमें कंचुवा (हिं. पु.) कुरता, चोलमा। एकही और दांत रहते हैं। २ यन्त्रविशेष, बौला, कंचेरा (हिं• पु.) काचपरिष्कारक, कांचका काम एक अौजार। इससे जलाह करघेमें भरनौके तागे करनेवाला। यह एक जाति है। कंचेरे साधारणत: कसते हैं। मुसलमान होते हैं। फिर कहीं-कहीं हिन्दू कंचेरे कंघी (हिं. स्त्री०) १ कङ्गतिका, छोटा शाना, भी देख पड़ते हैं। ककई। इसमें दोनो पोर दांत होते हैं। २ यन्त्र- | चेली (हिं. स्त्री.) वृक्षविशेष, एक पौदा। यह विशेष, एक औजार। यह बांसको खपाचोंसे तैयार पंजाबको ओर उत्पन्न होता है। उच्चता मना होती है। दो पतली और गज़-डेढ़-गज़ लंबी खपाचे श्रेणोको रहती है। काष्ठ खेतवर्ण और सुदृढ चारसे आठ अङ्गलके अन्तरपर आमने-सामने रखते निकलता है। इसे गृहनिर्माण में लगाते और हैं। फिर उनके ऊपर बहुत छोटी, पतली और वषियन्त्रके व्यवहारमें भी लाते हैं। पश कंचेलोके चिकनी खपाचें मिला मिलाकर बांधते हैं। बीच में | पत्र ख व खाते हैं। वर्षा ऋतुमें इसका वीज पड़ता है। केवल एक तागेके निकलनेको जगह रहती है। पहले | कंज्ञा (हिं• पु०) कोमल शाखा, इलको डाल, तानेका एक तार इनके बीचसे निकालते हैं। बाना कहा। बुननेमें यह राछके पहले रखा जाता है। तानेमें कंजई (हिं. वि.) १ धम्रवर्ण, धये-जैसा, खाको। बाना पड़ जानेसे कधीको जुलाहे अपनी ओर खींच (पु.) २ वर्ण विशेष, खाकी रंग। ३ अश्वविशेष, लेते हैं। इससे बाना सीधा तथा बरावर हो और किसी किस्मका घोड़ा। इसके चक्षु धूम्रवर्णं रहते हैं। गंस जाता है। कंजड़ (हिं. पु.) १ जातिविशेष, एक कौम। इस - वृक्षविशेष, अतिबला, एक पौदा। यह पांच- जातिके लोंग बुदेलखण्ड में बहुत देख पड़ते हैं। छह हाथ बढ़ता है पत्र पान-जैसे पौर नुकोले कजर सन, रूई और चमड़े की रस्मो बनाते, जिससे होते हैं। किनारे पर दाना रहता है। वर्ण किञ्चित अपना काम चलाते है। यह लोग सिरको भी तैयार हरित ए. धूसर होता है। पुष्य पीतवर्ण लगते करते हैं। सांप पकड़ पकड़ के खाना इनका काम हैं। पुष्य पतित होनेपर मुकुटाकार ढंढ निकलते है। कंजड़ोंके साथ कुत्ते प्रायः रहते हैं। यह हैं। उनपर कंगनी चढ़ी होती है। पत्र तथा फल गांवों में भीख भी मांगा करते हैं। २ मेला और दोनों क्षुद्र, घन एवं मृदु रोमसे आच्छादित रहते डरपोक प्रादमी। ३ भड़वा। कनड़की स्त्रीको हैं। फल जब पक जाता, तब एक एक कंगनीमें | कजड़ी या कजरिन कहते हैं। कितना ही काला दाना निकल पाता है। वल्कलका कंजा (हिं• वि.) १ धूम्रवर्ण, कजई, खाको। सूत्र दृढ़ होता है। मूल, पत्र और वीज औषध (पु.) २ क जो आंख रखनेवाला। ३ वृक्षविशेष, पड़ता है। यह बलवर्धक और शीतल है। एक पौदा।। कंधो-चोटी (हिं. स्त्री०) केशमण्डन, बालोंका संवार। कजास (हिं• पु.) मल, कूड़ा। कंधेरा (हिं. पु.) कहतनिर्माता, कंघा तयार कंजियाना (हिं.क्रि.) मन्द पड़ने लगमा, लुकठाना, करनेवाला। भंवा जाना। कंचनिया (हिं० पु० ) छोटा कचनार। इसके पत्र कंजुवा (हिं• पु.) शस्यरोगविशेष, अनाजको बालमें एवं पुष्प क्षुद्र होते हैं। | होनेवाली एक बौमारी। इससे दाना सूख जाता है।
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५८७
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