पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६४६

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कठ-कठफोड़वा ६४५ कठ (सं० पु०) कठेन प्रोतामधोवे कठशाखामभि- विशेष, कठौता। ३ मचषा विशेष, लकड़ोका सन्दूक। जानाति वा, कठ निर्ण लुक । कठचरकाक। पाश१० कठताल (हिं. स्त्री.) काष्ठवादिवविशेष, लकड़ीका १ मुनिविशेष। यह वेदको कठ-शाखाके प्रवर्तक थे। एक बाजा। इसे दोनों हाथसे बजाते हैं। हरेक महाभाष्यके मतसे कठ वैशम्पायनके शिष्य रहे। इनकी हाथमें एक-एक जोड़ा कठताल रहती है। प्रवर्तित शाखा 'काठक' नामसे प्रसिद्ध है। आजकल कठधत (सं० पु.) यजुर्वेदको कठशाखाका परित्राता इस शाखाकी वेदसंहिता नहीं मिलती। काठक शाखाध्यायी भी ‘कठ' ही कहाते हैं। इनसे सामके कठनेरा (हिं. पु.) वैश्यजातिविशेष, किसी किस्मका कालाप और कौथुमशाखौका संस्रव रहा। रामा बनिया। यणमें कठकालाप एकत्र उक्त हुये हैं। कठपुतली (हिं. स्त्री०) काष्ठमूर्तिविशेष, लकड़ीको “पर कामिव सर्वाभिर्गवां दशशतेन च । गुड़िया। मुसलमान दो कठपुतलियां ले भौख वै मै कठ कालापा बहवो दस मानवाः॥" (अयोध्या ३२।१८) मांगने निकलते हैं। वह इनको दानों हाथों नचाते हरदत्त के मतसे कठशाखाका भी वह चादि विद्य और गाना सुनाते हैं। कुछ लोग तारसे पुतलो मान है। नचात और गांव-गांव चक्कर लमाते हैं। दूसरेके २ कठशाखाध्यायो। ३ ऋविशेष, एक वैदिक कहनेपर चलनेवाला भी उसके हाथकी कठपुतली मन्त्र। ४ वरविशेष, एक आवाजु। ५ ब्राह्मण। कहाता है। ६ देवता। ७ उपनिषद् विशेष । कठफुला (हिं. पु.) छवक नामक उभिद, कुकुर- "ईशकेनकठप्रमुखमासुक्यवितिरि। (मुनिकोपनिषत् ) . मुत्ता, छाता। यह लकड़ी पर छाते-जैसा फूलता है। ८ दुःख, तकलीफ़। ८ कष्ट, मुसोबत। कठफोड़वा (हिं० पु.) पचिविशेष, एक चिड़िया। (हिं. पु०) १० पुरातन वादिनविशेष। कोई (Woodpecker ) यह काष्ठको फोड़ फोड़ छेद पुराना बाजा। यह काष्ठसे बनाया पौर चर्मसे | बनाता, इसीसे कठफोड़वा कहाता है। कठफोड़वा मंढाया जाता है। सैकड़ों प्रकारका होता है। परोंका रंग काला, ___ कठ शब्द समासादिमें पानसे काष्ठनिर्मित और सफेद, भूरा, जैतूनी, हरा, पीला, गुलेनारी और निकृष्ट अर्थ रखता है-जैसे कठपुतली, कठकेला। नारंजी मिला रहता है। रंग-रंगकी धारियां कटंगर (हिं. वि.) स्व ल, कठोर, मोटा, कड़ा। बु'दियां पार नोकें इसके शरीरपर होती हैं। यह कठोर और अव्यवहार्य ट्रव्यको 'काठकठंगर' कहते हैं। पृथिवी पर सिवा मादागास्कर, अष्ट्र लिया, सिलेबस कठकालापाः (सं० पु०) कठ और कलापोका और फोरेसके सब स्थानों में मिलता है। इजिप्तमें सम्प्रदाय। कठफोड़वा कभी देख नहीं पड़ा। यह बड़ी लब्जा कठकीली (हिं० स्त्री० ) काठको कोल, पच्चड़। खाता और इसके स्वभावका पता मनुष्य कठिनतासे कठकेला (हिं. पु.) कदलीविशेष, जंगली केला। पाता है। कठफोड़वा अपना शिकार ढूंढने में खब कठकोपनिषद् (स. स्त्री०) तर्कादिसे पूर्ण एक ध्यान लगाता है। यह वृक्षको सोधी शाखामें अपनी उपनिषद। कडी पार लंबी चोंचसे छेद कर घोंसला बनाता है। कठकोला (हिं० पु.) काष्ठकूट, कठफोड़वा।। घोंसलेका हार वृत्ताकार रहता और एक फुट गहरा कठकोथुमाः (सं० पु० ) कठ और कुथुमोका सम्पदाय। चलता है। यह कोई छह सफेद चमकीले अंडे कठगुलाब (हिं. पु.) पुष्पवृक्षविशेष, जंगली गुलाब। देता है। प्रारम्भके परोंका रंग भद्दा होता है। इसमें क्षुद्र क्षुद्र पुष्प लगते हैं। उनके नीचे कितनी झै धारियां और बुदियां पड़ी कठड़ा (हिं• पु.) १ काठगृह, कठघरा। २ पान रहती हैं। पेड़के कोड़ोको चोंचसे छाल छेद छेद Vol. III. 162.