पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६४७

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कठफोड़ा-कठिञ्जर खाना हो इसका सबसे बड़ा काम है। पंजोके सहारे उठाया-पिता! मुझे किसके हाथ समर्पण करोगे। कठफोड़वा शाखावोंपर वूम-घूम चढ़ता है। विश्वजित्के मुखसे क्रोध वश निकल गया-तुम्हें कठफोड़ा, कठफोड़वा देखो। यमराजके हाथ सौंपेंगे। बस, नचिकेताको यमलोक कठबन्धन (हिं. पु.) काष्ठावेष्ठन, लकड़ीको जाना पड़ा। वहां यमराजने उन्हें ब्रह्मविद्या पढ़ायो अंदुवा। यह हाथोके पैरमें पड़ता है। थी। इस अध्यायमें ब्रह्मविद्याका हो विशेष वर्णन कठवाप (हिं० पु०) सातेला पितां, झठा बाप। है। द्वितीय अध्यायमें ब्रह्मका लक्षण देखाया है। किसी विधवासे विवाह करनेवाला पुरुष उसके कठवल्ल्युपनिषद्, कठवह्नौ देखो। पहले लड़कोंका कठबाप कहाता है। कठशाखा (सं० स्त्री०) कठेन प्रोक्ता शाखा, मध्य- कठवेल (हिं० पु.) कपित्य, कैथा। . पदलो। यजुर्वेदान्तर्गत एक कठप्रणीत शाखा। कठमद (स.पु.) कठं कष्ठजीवनं मृदुनाति, कठ कठशाठ (सं० पु.) ऋषिविशेष । मृद-अण् । शिव । कठश्रुति, कठवली देखो। कठमलिया (हिं. पु.) १ काष्ठमालाधारी वैष्णव। कठथोत्रीय (स.पु.) कठश्रुतिं वेत्ति अधोते वा, २ मिथ्या साधु, झूठा फकीर । कठश्रुति-ष्यत्र । १ कठ श्रुतिन । २ कठश्रुति अध्ययन कठमस्त (हिं.वि.) १ हृष्टपुष्ट, तगड़ा, हट्टाकट्ठा ।। करनेवाला। २ व्यभिचारी, जिनाकार । कठसरैया, कटसरैया देखा। कठमस्ता, कठमस्त देखो। कठा (स. स्त्री०) करिणी, हथिनी। कठमस्ती (हिं० स्त्रो०) गुडई, तगड़ापन। कठाकु (सं० पु०) पक्षिविशेष, एक चिड़ि या ।। कठमाटी (हिं. स्त्रो०) मृत्तिका विशेष, कोचड़को कठाध्यापक ( स० पु. ) यजुर्वेदको कठशाखा पढ़ाने- महो। यह अति शीघ्र शुष्क हो कठोर पड़ने वाला गुरु। लगती है। कठारा (हिं. पु.) सरिता वा सरोवरका तट, दरया कठर (सं० वि०) कठ-अरन् । कठिन, कड़ा। या तालाब का किनारा। कठरा, कठड़ा देखो। कठारी (हिं. स्त्रो०) १ काष्ठपान, लकड़ीका बरतन । कठरी (हिं० स्त्री० ) छोटा कठरा। । २ कमण्डलु। ठला (हिं० पु०) कण्ठामरण विशेष, बच्चोंके कठाहक (संपु०) कठं कठिनं .पाहन्ति, कठ- पहननकी एक माला। कठलेमें चांदी-सोनेके श्रा-हन-ड कठाहः तादृशं के शिरो यस्य । दात्यह चतुष्कोण पत्र, व्याघ्रनख, यन्त्र आदि अवेक प्रकारके | पक्षी, पनाब्बा। द्रव्य रहते, जो अधिव्याधिसे बच्चेको रक्षा करते हैं। कठिका ( स० स्त्री०) कठ वाहुलकात् वुन् । १ तुलसी- कठला धारण करनेसे बच्चों को दृष्टि नहीं लगती। वृक्ष। २ खटिका, खड़िया, छहौ। कठल्ल, कठस्य देखो। कठिंजर (सं० पु०) कठिं कठिनं जरयति, कठ-ज- कठल्य (सं० पु०-क्लो०) शिलाखण्ड, कंकड़-पत्थर। णिच्-खच-मुम् कठ-ज-श्रण पृषोदरादित्वात् वा। कठवल्लो (सं० स्त्री०) अथर्ववेदान्तर्गत उपनिषद् १ पास, काली तुलसौका पेड़। इसका संस्कृत विशेष। इसमें तीन-तीन वल्लोके दो अध्याय हैं। पर्याय-पर्णास, कुठेरक, लोणिका, जातुका, पर्णिका, प्रथम अध्यायमें कहा है-'नचिकेताके पिता विश्व | पत्तूर, जीवक, सुवर्चला, कुरुवक, कुन्तलिका, जित्ने यज्ञ किया और अपना सर्वस्व ब्राह्मणोंको | कुरण्टिका, तुलसी, सुरसा, ग्राम्या, मुलभा, बहुमनरी, दिया था। अन्तको घरको बुडी गाय देते समय अपतराक्षसी, गोरो, भूतनो और देवदुन्दुभि है। उनके पुत्र नचिकेताने व्यङग्यके साथ तीन वार प्रश्न भावप्रकाशके मतमें कठिन्जर कट एवं तिहारस,