कड़बा-कड़ी २ कर्बुरित श्मश्रुविशिष्ट पुरुष, कबरी दाढ़ीवाला : कड़ाई (हिं० स्त्री०) कठोरता, सख तो, कड़ापन । आदमी। कड़ाका (हिं० पु०) १ कठोर द्रव्यके भङ्गका शब्द, कड़बा (हिं० पु० ) गोलाकार ट्रव्यविशेष, एक कड़ी चीजके टूटनेको अावाज । २ उपवास, फाका। गोल चोज़। हलके फालपर बांधा जानेवाला अब कड़ाबौन (हिं. स्त्रो०) १ कराबीन, चौड़े महको रोष कड़बा कहाता है। इससे हल भूमिमें अधिक बन्दूक। इसमें कितनी ही गोलियां भरकर दागौ नहीं धंसता। जाती हैं। २ तपञ्चा, झोका, छोटी बन्दूक। यह कड़बी (हिं० स्त्री०) मकई और ज्वारके हरे या कमरमें बांधी जाती है। सूखे वृक्ष। यह काट काट कर पशुवोंको खिलायो कड़ार (सं० पु० ) गड़ सेचने आरन् कड़ादेशश्च । -जाती है। | गड़े : कड़च । उण, १३५ । १ पिङ्गलवणं, भूरा रङ्ग । कड़म्ब ( सं० पु०) कडू-अम्बच । ककदिकडिकठिभ्योऽम्वच ।। २ दास, नौकर । ३ दानमानविधि । ( त्रि०) उण् ४।८२ । शाकनाडिका,सबज़ीका डण्ठल । २कलम्बौ ] ४ पिङ्गलवर्णयुक्त, गन्दुमी, भूरा। शाक, नारी। ३ अग्रभाग, अगौरा । ४ कोण, कड़ालिङ्गो-एक श्रेणौके संन्यासों। यह उपासक कोना। ५ अङ्कर, कोपल । ६ कदम्ब। ७ वाण, सम्पदायके अन्तगत हैं। कड़ालिङ्गो सर्वदा नग्न तोर। रहते और अपनी जितेन्द्रियताको रक्षाके लिये लिङ्गपर कड़म्बक (सं० पु०) कड़म्ब स्वार्थ कन्। १ शाक लोहेका एक कड़ा चढ़ा रखते हैं। यह प्रथा नानक- नाडिका, सब्जीका डण्ठल। २ कलम्बिशाक, नाडी। पन्थियों में भी चलती है। कड़म्बो (सं० स्त्री०) कड़म्बो भूयसा विद्यते ऽस्याः, कड़ाह (हिं० पु०) १ कटाह, लोहेको बड़ी कड़ाही। कड़म्ब-प्रच-डोष । अर्श प्रादिभ्योऽच । पा रा१२७। कलबी- इसमें दोनों पोर पकड़कर उतारने-चढ़ानेके लिये शाक, नाड़ी, कलमोशाक। कुण्डे लगाये जाते हैं। बहुत आदमियोंके लिये कड़वक (सं० पु.) अपच शके निबन्धका अध्याय, परो, हलवा वगैरह बनानको इसे व्यवहार करते हैं। विरामसूचक सर्ग। कड़ाहा, कड़ाह देखो। __अपध'शनिबन्धोऽअिन् सगाः कविकाभिधाः ॥” ( साहित्यदर्पण) कड़ाही. (हिं. स्त्री०) क्षुद्र कटाह, छोटा कडाह । कड़वा (हिं) कट देखी। कड़ि का (सं० स्त्री०) कलिका, कूडी। कड़वी (हिं) कटु शब्द देखी। कड़ितुल (सं० पु.) कटयां तुला तोलनं ग्रहण यस्य, कड़हन (हिं. पु.) वन्यधान्यभेद, कठधान, जङ्गली पृषोदरादित्वात् टस्य डः। खड़ग, तलवार। चावल। यह मोटा होता है। कड़ियल (हिं० पु०) मृणमय पात्रका भग्न खण्ड, कड़ा (हिं. पु.) १चड़ाभेद, खड़वा। इसे हाथ मटके या घड़े का टूटा-फटा टकड़ा। इसमें अग्नि की या पैरमें पहनते हैं। २चुल्ला, कुण्डा। यह लोहे स्थापनकर दबा देते हैं। या दूसरे धातुका बनता है। ३ कपोतभेद, किसी कड़िया (हिं० स्त्रो०) दोर्घकाष्ठ, कांड़ा। दाना किस्म का कबूतर। (वि.) ४ कठिन, सख त, न झाड़ लेने से अरहरका जो सूखा पड़ बच जाता, वही दबनेवाला। ५ रुक्ष, रूखा। ६ उग्र, तेज। ७ गाढ़, 'कड़िया' कहलाता है। चुस्त, जो ढीला न हो। ८ नातिसिक्त, जो ज्यादा कड़ियाली ( सं० स्त्री० ) अश्वके मुखका रज्ज, तर न हो। ८ सबल, मजबूत । १० तीक्ष्ण, खरा। लगाम । ११ सहनशील, बरदाश्त करनेवाला। १२ दुःसाध्य, कड़ी (हि. स्त्री०') १ शृङ्खलाके सूत्रका वलय, मुश्किल। १३ तीव्र, तीखा। १४ असह्य, बरदाश्त जनौरको लड़ोका छल्ला। २ क्षुद्र मण्डल, छोटा न होनेवाला। छल्ला। ३ अन्तरा, गौतमें मुखडेके बाद पानवाला
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६५१
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