पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कण्डनौ-कण्डन "क्रियां कुर्यात् भिषक् पश्चात् शलौतस्युलकखनैः।” ( सुश्चत) । किया था। उसीसे इनका मोह छट गया। इन्होंने कण्डनी (सं० स्त्री०) कण्डाते तृषादिरपनीयते अनया, फिर पुरुषोत्तमम अध्वबाहु हो तपस्या द्वारा मुक्ति कडि करणे स्य ट इदित्वात् मुम्। उदूखल, अोखली। पायौं । (स्त्रो०) कण्ड यति शरीरम्, कण्ड-कु । मन्यादयव कण्डरव्रण (सं० पु.) व्रणरोग, खुजली, खाज। । २ वायुजन्य कण्डूयादि, खुजली, खाज । ३ कर्णरोग- कण्डरा (स. स्त्री०) कडि-अरन् इदित्वात् मुम् टाप । विशेष, कानको एक बीमारी। ४ शुकशिम्बो, केवांच। च। १ महानाड़ी, बड़ी नन्। २ महानायु, मोटौ कण्डक (सं० पु.) कण्ड-कन्। १ कण्टक, कांटा। रग। सर्वाङ्ग में १६ कण्डरा होती हैं। उनसे इस्त. २ कण्ड, खुजली। ३किसी नापितका नाम । पद, ग्रीवा और पृष्ठदेशमें चार-चार रहती हैं। इस्त कण्डन, कखून देखो। एवं पदगत कण्डरावोंकी प्रान्तसीमा नख, ग्रीवा तथा| कण्डर ( पु.) कण्ड राति ददाति, काह- हृदय बन्धनीको अधोगत कण्डरावोंको प्रान्तसीमा | रा-क पृषोदरादित्वात् इवः। भावोऽनुपसमें । पा शराश मेद्र और पृष्ठनिबह कण्डरावोंको प्रान्तमीमा नितम्ब, | १ कारवेललता, करेलेको वैल। २ कुन्दरण, कंद- मस्तक, उरु, वच, अक्ष एवं स्तनपिण्ड है। (मुवत)। रूको वेल। कण्डरावों द्वारा शरीर आकुच्चन और प्रसारण किया कण्डरा (सं० स्त्री०) कण्डर-टाप् । १ शूकशिम्बो, जाता है। (भावप्रकाश ) बाहुपृष्ठसे अङ्गुलिपर्यन्त पाने-- केवांच। २ कर्पूरक, शौरकन्द। ३ अत्यलपर्णी, वाली कण्डरावोंके वातसे पीड़ित होनेपर बाहुद्दयका एक बेल । इसकी पत्ती बहुत खट्टी होती है। कार्य बिगड़ जाता है। इस रोगका नाम विश्वाची है। कण्डुला (सं० स्त्री० ) अत्यनपणों, बहुत खट्टो पति- कण्डरीक (सं० पु०) सप्तजातिस्परके मध्य विप्र- योंको एक वेल। विशेष। (हरिवंश) कण्ड लो, काला देखो। कण्डवल्ली ( स० स्त्री०) काण्डवली, करेला। कण्डू (सं० स्त्रो०) कण्डय सम्पदादित्वात् क्लिप कण्डाग्नि (सं• पु०) पक्षी, चिड़िया। अलोपो यलोपश्च। १ कण्डु, खुजली। २ क्षुद्र-क्षुद्र कण्डानक (सं० पु०) महादेवके एक पनुचर। पिड़काविशेष, छोटी-छोटी फुनसो। इसका संस्कृत कण्डिका (सं० स्त्री०) कडि-ख ल-टाए। काण्ड, पयोंय-खजु, कण्ड्या , कण्डति और कण्डयन है। कण्डिका, वेदका एकदेश। अध्याय प्रपाठक प्रभृतिके ___चिकित्सा-दूर्वा एवं हरिद्रा एकच पीसकर प्रलेप अन्तर्गत ब्राह्मणवाक्यसमूहको कण्डिका कहते है। लगानेसे कण्ड, पामा, दह्न शीतपित्त प्रकृति रोग कण्डोर (सं. पु.) १ लघुकारवेल, छोटा करता। विनष्ट होते हैं। गुनाफल और सृङ्गराजके रसमें २ पीतमुह, पोलो मोट। तेलको पका मलनेसे कण्ड, दारण, कुष्ठ और कालाप कण्ड (सं.पु.) १ ऋषिविशेष। इनके पिताका| रोग मिट जाता है। हरिद्राखण्ड प्रभृति पौषध नाम कण्ड रहा। विष्णुपुराणमें लिखा है, 'किसी भी इस रोगपर विशेष उपकारी है। हरिद्राखस देखो। समय कण्ड मुनिने गोमती किनारे उत्कट तपस्या कण्डूक (सं० क्ली०) कण्ड खार्थे कन् । कण्ड, आरम्भ की थी। इन्द्रने उससे भय भौत हो प्रलोचा खुजली, खाज। नाम्नी अप्सराको उनका तपोभत करने भेजा। मुनि | कण्डूकरी (सं० स्त्री०) कण्डौं करोति, कण्ड-क-ट- मी उसका रूपलावण्य और हावभाव देख मोहित हो | डो। शूकशिम्बो, खजोहरा।। गये थे। इन्होंने अपनी तपस्या छोड़ बहुकाल उसके | कण्डका (स'० स्त्री०) काकतुण्डा, घुघची, रत्ती, साथ एकत्र पतिवाहित किया। बहकाल बाद| चिरमिटी। । एक दिन सन्ध्याकालको कण्डुने सन्ध्यावन्दना करना | कण्डघ्न (सं० पु.) कण्ड हन्ति, कण्ड-हन्-ठक् । चाहा। किन्तु प्रलोचाने इनकी बात सुन उपहास । १ पारग्वध, अमलतास । २ गौरसर्षप, सफेद सरसों। ' Vol. III. 168 .