पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६७० कण्ड प्रवर्ग-कण्व कण्डघ्नवर्ग (स'• पु०) कण्डनानां वर्ग: समूहः, | कण्ड ल (सं० पु.) कण्ड अस्त्यर्थ लच् । १ कण्ड - ६-तत् । कण्डू नाशकरनेवाली ओषधियोंका समूह, | कारक अोल प्रभृति, जमौंकन्द । (त्रि.) २ का खाज मिटानेवाली जड़ीबूटियोंका जखीरा। चन्दन, युक्ता, खाजसे भरा हुआ। वेणामूल, प्रारम्बध, करज, निम्ब, कुटज, सषेप, मौल, कण्डूला (सं० स्त्री०) अत्यन्त्रपर्णीलता, बेलका द्रा और मुस्तकके समूहको कण्डनवर्ग कहते | जौं कन्द। हैं। (चरक) कण्डोल (सं० पु०) कडि बाहुलकात् ओलच । कण्डूति (स० स्त्री०) कण्ड्य भावे तिन् अलोपो| १ वंशादि निर्मित धान्यरक्षक भाण्डार, बांस वगैरहसे यलोपश्च। कण्डयन, खुजली, खाज। बना धान्य रखनेका पात्र । इसका संस्कृत पर्याय- कण्डमका (सं० स्त्री०) कोटविशेष, एक कोड़ा। पिट, पिटक और पटक है। २ उष्ट्र, अंट। ३ गोणी- यह कृष्ण, सार, कुहक, हरित, रक्त, यववर्णाभ और भेद, किसी किस्मका बोरा। ४ गुजरातके खान व कुटी पाठ प्रकारको होती है। इसके काटनेसे जिलेका एक पर्वत। यहां प्रतिप्राचीन देवमन्दिर रोगीका प्रङ्ग पीतवर्ण पड़ और वमन, अतिसार, बना है। ब्जर प्रभृतिसे वह मर जाता है। (सुश्रुत ) कण्डोलक (सं० पु०) कण्डाल-खार्थे कन्। कण्डोल, कण्डूमत् (स० वि०) खुजलाते हुघा, जो खरोंच | बाँसका बना डोल। रहा हो। कण्डोलवीणा (स.स्त्री०) कण्डोलइव वीणा कण्डो- कण्ह यत् (स० वि०) खुजलाते हुआ, जो रगड़ लस्या वीणा वा। चण्डालोंको वीणा, छोठा बोन । रहा हो। इसका संस्कृत पर्याय-चाण्डालिका, चण्डालवल्लको. कण्ड यन (सं० ली.) कण्ड य भावे ल्युट । १ कण्ड, चण्डालिका और कटोलवीणा है। खुजली खाज। “यन्म धनादि सहमधि सुखं हि तुच्छ' । कण्डोली (सं० स्त्री.) कण्डोलस्तहदाकारोऽस्त्यस्याः, कल्यनेन करयोरिव दुःखदुःखम् ।” ( भागवत १९६५५) | कण्डोल अर्थ आदित्वात् अच्-डोष्। कण्डोलवीणा, २ वष्यशृङ्ग, खुजलानेका औज़ार । गात्रमें कण्ड | छोटा बोन। उपस्थित होनेपर दीक्षित इसीसे खुजलाया करते हैं। | कण्डोष (सं० पु०) कोषकार, झांझा, बूटका कोड़ा। कण्ड यनक (सं० वि०) कण्ड यन-खार्थे कन्। कण्डोध (स० पु०) कण्डनां ओघः समूहो यस्मात् । .१ खुजलाते हुआ, जो रगड़ रहा हो। (पु०) २ खुज- | शूककोट, झांझा। सानेवाला। कख (स. क्लो०) कण्यते अपोद्यते, कण-वन् । कण्ह यना (सं० स्त्री०) कण्ड ति, खुजलो। १पाप, इजाब। (पु.) २ भूतयोनिविशेष, किसी कण्डयनी (सं. स्त्री०) कृष्णशृङ्ग, खुजलानेको कूची। किस्मका शैतान्। ३ मुनिविशेष। यह घोरके पुत्र कण्ड यमान (सं० वि०) खुजलानेवाला, जो खरोंच | और अङ्गिरसगोत्रसम्म त रहे। ऋक्संहिताका अष्टम रहा हो। अष्टक इनके नामसे प्रसिद्ध है। यह यजुर्वेदीय कख कण्ड या (स. स्त्री०) कण्ड -यक्-अ-टाप् । कण्ड, शाखाके प्रवर्तक थे। खुजली। वेदमें दूसरे भी अनेक कखोंका नाम मिलता है- कण्ड यित (स.ली.) कण्ड यन, खुजली। कखनाषद, कखश्रीयश और कखकाश्यप । यह कण्ड यिट (संवि.) खुजलानेवाला। सभी कण्खवंशीय रहे। मेनका परित्यक्त शकुन्तलाको कण्डर (सं० पु०) माणक, मानकच्छु। सम्भवतः कखकाश्यपने प्रतिपालित किया था। कण्ड रा (सं० स्त्री०) कण्ड राति, कण्हरा-क- महाभारतके टीकाकार नीलकण्ठ ने कख नामका टा। शकशिम्बोलता, खजोहरा। । अर्थ इस प्रकार लगाया है-