कदली - दाक्षिणात्यवाले हिन्दीगुल प्रदेशके पर्वत और उनमें | वहांके लोग 'तामाटे' या 'कांकड़ा' केला कहते हैं। साधारणतः जो कदली मिलती, उसको संज्ञा अंग- | 'पिस्यां मुलुत बेबेक' जातीय केलेके तलमें कुछ रेजी में मूसा सुपर्वा ( Musa Superba) चलती है। छिलका वक्रभावसे हंसको चोंच-जैसा निकल पड़ता बेसिन प्रदेशका केला सुगन्धविशिष्ट होता है। फिर है। 'पिस्यां राजा' को राजा केला कहते हैं। भडोंच में यह प्रचुर परिमाणसे उपजती है। 'पिस्यां सुसु' दूधिया केला कहाता है। इस प्रकारके नेपालमें होनेवाले केलेको नेपाली केला' ( Musal दूसरे केलेका नाम सोनाकेला है। शेषोक्त तीनों nepalensis) कहते हैं। प्रकारके केले अतिसुन्दर, सुमिष्ट और सुगन्ध विशिष्ट ___ मन्द्राज़में जितने प्रकारको कदलो उपजती, उसमें | होते हैं। 'रसखली' सर्वापेक्षा . उत्तम रहती है। 'गण्डी' यवहोप में 'पिस्या टण्डक' नामक एक केला उप- जातीय कैलेका शस्य बहुत कड़ा होता है। किन्तु | जता है। इसको लम्बाई प्रायः २ फोट होती है। हम मन्द्राजके लोग इसोको अच्छा समझते और पाल | समझते-बङ्गालमें इसोको कन्हाईबांसी कहते हैं। डाल पकने पर बेचा करते हैं। 'पाछा' बहुत लम्बा · यवद्दोपमै दूसरा भी एक केला होता है। उसके रहता, किन्तु पुष्ट होते ही झुक पड़ता है। इसका एक वृक्ष में एक ही फल लगता है। अन्यान्य वृक्षोंको हरित वर्ण पकने पर भी नहीं बदलता। 'पबल्लो भांति उक्त फल मोचेके साथ काण्डसे नहीं निकलता। केला मोठा होता, किन्तु रंग खाकी देता है। वह काण्डके भीतर ही पका करता है। सम्पर्ण 'सेबेली केला बहुत बड़ा लगता और लोहित वर्ण | पक जानेसे काण्ड फट पड़ता है। वह इतना बड़ा देख पड़ता है। सिवा इसके बन्था, बंगला जमेई, रहता, कि एक फलसे ४ लोगोंका पेट भली भांति प, सेरबा, जेने पाबियान, पिदीमोथा प्रभृति कई | भर सकता है। उक्त सकल केलावोंको छोड़ यव- दूसरी श्रेणीके भी केले मिलते हैं। हीपमें जो कांठाली या मत्यमान केले उपजते, उनमें मर्त्यमान केला चट्टग्राम और तेनासरिम प्रदेश में | वौज पड़ते हैं। इस श्रेणीके केलोंको उस देशमें बहुल परिमाणसे उत्पन्न होता है। उक्त दोनों 'पिस्यां बुट्ट' कहते हैं। प्रदेशके दक्षिण मर्ताबान उपसागर है। कितने ही फिलिपाइन होपके पार्वत्य प्रदेशमें उपजनेवाला लोगोंके कथनानुसार इसौ उपसागरसे प्रथम भारतमें केला इतना बड़ा रहता, कि एक मनुष्थको उसे उठा- उक्त कदली पानपर 'मत्य॑मान' नाम पड़ा है। किन्तु | कर ले चलने में बोझ मालम पड़ता है। हम वैसा नहीं मानते। 'मयं' नामक कदलौ ही मलय होपको साधारण कदलीका अंगरेजी वैज्ञा- 'मत्यमान' केला कहाती है। निक नाम 'मुसा ग्लौका' ( Musa glauca) है। . बम्बई में नौ प्रकारको कदली होती है-बसरई, मारिशस होपमें गुलाबी रंगका मिलनेवाला केला मुखेली, सांबड़ी, रजेली, लोखसडी, सोनकेली, 'मुसा रोसेथिया' ( Musa rosacea) कहाता है। बेसकेली, करलेली और नरसिंही। इनमें तांबड़ी .अफरीका और पश्चिम भारतीय दीपपुश्चमें कांठाली केला लाल रहता है। .. और मत्यमान केला हो लगाया जाता है। ब्रह्मदेशमें पीत एवं स्वर्णवर्ण नानाप्रकार कदली पश्चिम भारतीय होप में एकप्रकार क्षुद्राकार बैंगनी देख पड़ती है। केला होता है। इसका गन्ध अति मनोहर रहता सिंगापुर, मलय और भारतसागरीय द्वीपपुनमें | है। उस देशके बड़े पादमी इसी केलेका समधिक प्रायः ८० प्रकारका भोजनोपयोगी केला उपजता है। पादर करते हैं। इस जातिके केलेको अंगरेज फिग .इसमें बहुतसे वहदाकार और सुगन्धविशिष्ट होते | बनाना (Fig banana ) कहते हैं। फिर इसी है। 'पिस्याटिम्बाना केसा लाल रहता है। इसे जातिका एकप्रकारचढाकार केला भी होता है। विन-
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