कदली ६८१ श्रेणीके लोग उसका भी प्रति आदर किया करते। मध्य केलेका वृक्ष इतना अधिक उपजता, कि उसे हैं। अंगरेजोमें उसे 'फिग सकरीयर' वा 'लेडी फितर' देख विस्मित होना पड़ता है। वहां इस्त्री और (Fig sucrier or Lady finger ) कहते हैं। लेडी गयाल नामक महिष-जातोय पशु एकप्रकार केलेका फिङ्गरका अंगरजी वैज्ञानिक नाम 'मुसा पोरियेण्टम वृक्ष खा जीवन धारण कर सकते हैं। साधारणतः (Musa orientum) और फिग बनानाका 'मुसा मस- पार्वत्यप्रदेशका केला मुसा पोरनाटा (Musa ornata) कुलाटा' ( Musa musculata) है। अर्थात् पहाड़ी और वनका मुसा सुपर्वा (Musa अमेरिकाके फोरिडा प्रान्तका 'ओरको' केला अति | superbs ) यानी जङ्गलो केला कहाता है। चयाम उत्तम होता है। यह उक्त प्रान्तके सकल ही स्थानों में | प्रदेशमें भी यह घासकी तरह अपर्याप्त होता है। मिलता है। डालका पका होने पर इसके सहन्धसे अन्यान्य स्थानोंमें खाली मैदान पड़ा रहनेसे जैसे दूर्वा, मनुष्य, पशु और पक्षी पर्यन्त उन्मत्त बन जाता है। मुस्तक प्रभृति तण उपजता, वैसेहो चट्टग्रामके खालो चौनदेशमें उपजनेवाली एक कदलो खाकार मैदानमें पहले घासके साथ केला भी निकल पड़ता रहती है। अंगरेज़ इसे डार्फ नानटेन ( Dwarf | था। लगाने में जितने केले उखाड़ कर फेंक दिये plantain) अर्थात् बौना केला कहते हैं। यह दो जाते थे, उनकी संख्या करना असंभव है। आज-. 'प्रकारका होता है-मुसा ओकसिनिया ( Musa कल भी नये लगाये जानेवाले केलोंका ऐसा ही हाल occinea ) और.मुसा नाना (Musa nana) । चीनका | होता है। एक केला मुसा कावेण्डिशो (Musa cavendishi) युरोपके दक्षिण स्पेनमें केला हुपा करता है। कहाता है। वहां खुर्वाकार दूसरा भी केला लगता है।। किन्तु उसके उत्तर काचके मकान् या उष्णरहके प्राबिसौनियाकै अति सुन्दर केलेका नाम मुसा | व्यतोत खुले क्षेत्रमें यह नहीं उपजता। क्य बा होपमें इनसोट ( Musa ensete) है। कहीं कहीं केला होता है। एतद्भिव पन्यान्य स्थानों में भौ केला मिलता है।। भिब भाषामें केलेका भित्र नाम आता है। प्रधानतः, उष्ण-प्रधान स्थानमें हो यह होता है। संस्कृत नाम पहले ही कहे जा चुके हैं। पतिपूर्वकाल एशियाके पूर्व चीन एवं भारतीय दीपपुन और पश्चिम | इसको भारतमें मोचक कहते थे। मोचकका पर्थ तुर्कीके अन्तर्गत यूफेतिस नदीतोर पर्यन्त समस्त 'मुक्त हुमा' है। अर्थात् प्रथमतः वृक्षके गर्भसे इसका देशमं केला मिलता है। अन्यान्य अंशमें जो भूभाग जो फल निकलता, वह एक पावरबोके मध्य रहता पृथिवीके मध्यभागपर आता, वहां भी यह पाया है। उसो पावरणोके फट जानेसे फूल पाता है। जाता है। भारतमें हिमालयके शोतल प्रदेश पर फिर प्रत्येक फल गुच्छगावमें दूसरे भावरणसे पावत केला देख पड़ता है। उक्त पर्वतके पाददेश पर | रहता है। वह पावरण मुक्त हनिपर फल निकलता ३०. उत्तर अक्षान्तर पर्यन्त यह अधिक उपजता है। इसीसे फलको मोचक कहते हैं। शिवपूजाके है। फिर मसूरी, कुमाय और गढ़वाल प्रदेश भो मन्त्रमें हम केलेका मोचा नाम देखते हैं- इसकी उत्पत्तिसे वञ्चित नहीं। किन्तु उक्त प्रदेशके ____ "एतत् मोचाफलं नमः शिवाय नमः"। . केलेमें वीज-व्यतीत शस्त्र बहुत कम रहता है। कोई भी इस स्खलपर कदली, रम्भा वा अन्य नाम समुद्रसे ७००० फीट जवंस्थान तक यह उपज सकता| व्यवहार नहीं करता। कदलौका अर्थ जलमें ही है। दक्षिण-अमेरिकामें पाजकल यथेष्ट केला खमाया पुष्टि पाना है। केलेका वृक्ष कुछ जलप्रधान होता जाता है। काराकास, गोयेना, डेमेरेरा, जामेका, है। यह सरस भूमिमें भो पच्छी तरह उपचता है। विनिदाद प्रति स्थानों में बराबर कितनी ही भूमि- अंशमत्फलासे अंश वा तन्तु रखनेवाले द्रव्यका पर्थ पर इसकी.षि होती है। चयाम प्रदेशके वन निकलता है। केके वचका सन्तु विशेष विख्यात
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