कदलो ६६७ देख-भाल कलम लगानेका नियम है। एक एकर | सूत्रको कदली इसे फौट अन्तर पर लगाना पड़ती परिमित भूमिमें बसरैया केलेके १००० और तांबड़ी | | है। अन्तको उच्च अन्तरमें भी किल्ला फुटता है। दो केलेके ५०० कलम लगाये जाते हैं। अन्यान्य जातीय वत्सर में ही सूत्र निकल सकता, किन्तु चार वत्सर प्रत्येक वृक्षके मध्य ७ फोट अन्तर रखते हैं। कलम! बोतने पर कुछ पक्का पड़ता है। इसमें फल आने नहीं लगाने के समयसे 8 मासतक खाद पड़ती है-प्रथम देते। क्योंकि फल लगर्नसे सूत बिगड़ जाता है। तीन मास फलोंके छिलके और ४थ मास सडी मछली फलका पाना बन्द करने को केवल दो पत्र छोड बाकी की। प्रत्येकवार खाद डाल ऊपर पतली मट्टी दबाते सब काट डालते हैं। हैं। मछलीकी खाद देनेसे बहुत कौड़ा पड़ जाता कदलौके सम्बन्धमै प्रबाद-बङ्गालियोंमें कदलोके सम्बन्ध- है। इससे यह खाद डालने पोछे८।१० दिन जल पर अनेक प्रवाद चलते हैं। एक प्रवादके अनुसार नहीं देते। जल न पानेसे रौद्रमें कोड़ा मर मिटता कदलीवृक्षपर गिरनेसे फिर वज़ स्वर्गको उठकर जा है। कलम लगाने बाद सप्ताहमें दो वार जल दिया नहीं सकता। चोर लोग इस वजको रात्रिके समय जाता है। पौछे जितने दिन पानी नहौं बरसता, चुपके उठा खिड़कीसे लोहारके घर डाल पाते हैं। उतने दिन सप्ताह में कदलोको एकबार सौंचना फिर लोहार उससे चोरीका खन्ता बना उसौ खिड़की पड़ता है। में रख देते हैं। चोर भो रात्रिको पा चुपके वह खन्ता मन्द्राज में दो प्रकार इसको कृषि होती है। उच्च उठा ले जाते हैं। इससे कहते हैं-चोर और लोहार भूमिमें 'पक्का बलई' पौर निम्न भूमिमें 'खुरूबलई' कभी नहीं मिलते। दूसरा प्रवाद केलेको षष्ठो देवीका लगाया जाता है। वहां कदलौके क्षेत्रमें लाल पाल प्रिय खाद्य बताता है। फिर तीसरे प्रवादके अनुसार वरह बो देते हैं। फिर हल न चला कुदालसे हो केला बुड्डाको खाने में बहुत पच्छा लगता है। कदलीको भूमि तैयार करते हैं। ५ वत्सर पीछे तालिब-शरीफ' नामक फारसीके चिकित्साग्रन्थमें कदलीको खोदखाद दूसरी चीज़ बोई जाती है। लिखा-केलेसे कपूर होता है। किन्तु आईन-प्रक- ब्रह्मदेशवासी इसके लगाने में कोई या नहीं। बरी इस बातको नहीं मानता। इधर हिन्दीके व्रज- करते। किन्तु हरेक पादमौके घरमें केलेका पेड़ चन्द्र नामक किसो कविने भी नायिकाभेदमें जहाका रहता है। यत्न न करते भी वहां स्वच्छन्द अपर्याप्त वर्णन करते कहा -“कपूर खायो कदलो। उत्तम फसल तैयार हो जाती है। अंगरेजों में लोग इसे बाइबिलोला निषिद्ध फल पूर्व-भारतीय दीपमें लोग इसको कृषि बड़े यत्नसे बताते हैं। लडलफके कथनानुसार बाइबिलोल 'डुडो- करते हैं। तीन तीन वत्सर पोछे क्षेत्र बदल नया इम (Dudoim) फल ही कदली है। फिर कोई कलम लगाया जाता है। पुरातन स्थलमूलसे कोई इसे निषि फल न मान वर्गाद्यानमें मानवका खादका काम लेते हैं। वहां इतना यत्न न करनेसे प्रथम प्रधान खाद्य समझते हैं। अन्तको जो चाहे फलमें वीज-पड़ जाता है। फिजी होपमें पुरातन | सो हो, किन्तु स्वर्गाद्यानका संस्रव रहनेसे हो सम्भवतः स्थूल-मूलको खाद डालते हैं सही, किन्तु उसे अच्छा | कदलोका नाम पाराडिसिका (Paradisica) पड़ा नहीं समझते। उससे भूमि खट्टी पड़ जाती है। है। क्योंकि अंगरेजीमें पाराडाइज़ (Paradise ) पश्चिम-भारतीयं हीपमें पुरातन वृक्षको खण्ड खण्ड स्वर्गको कहते हैं। कर जला डालते हैं। फिर कलम काट उसी पुरातन केलेको देख केलेका एक पौदा किसी जगह लगा- वृक्षको खाकमें २ हाथकै अन्तर गर्त बना लगा देते | यिये। इस वृक्षके मूलमें जितने दिन किन्ना न निक- हैं। दूसरी कोई चेष्टा को नहीं जाती। लेगा, उतने दिन कुछ करना भी न पड़ेगा। किन्तु मुसा टेक्सटिलिस (Musa textilis) अर्थात् उत्तम | किनेको बढ़ने न दौजिये, निकलते ही उसे नष्ट Vol. IIL 175
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६९८
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