००२ कनई-कनकटङ्ग कनई ' (हिं. स्त्री०) १ नवशाखा, नई डाल, किल्ला, | कनककुशल-एक जैन ग्रन्थकार। यह विजयसेन कोपल। २ा, मृत्तिका, गौलो मट्टी, कीचड़। । स्थविरके शिष्य रहे। इन्होंने जानपञ्चमोमाहात्मा अन्य कन-उगली (हिं. स्त्री०) कनिष्ठिका, हाथकी सबसे | बनाया था। छोटी उंगजी, हिंगुनिया। कान खुजलान में प्रायः कनककेयरी-उत्कलके एक राजा। यह पलाबु- काम पानसे हाथ की सबसे छोटी उंगली 'कन उंगलो' कागलो केशरीके पुत्र थे। . . कहलाती है। . कनकक्षार (स० पु.) कनकस्य द्रावणार्थ क्षारः, कनउड़ (हिं० वि०) कनौड़ा, वतन्न, एहसानमन्द। मध्यपदलो। टङ्गणचार, सोहागा। सोहागा देखो। कनक (सं० लो०) कनति दीप्यते, कन्-वुन् । १ स्वर्ण, कनकक्षौरी (सं० स्त्री०) सुवणक्षोरी, किसी किस्म की सोना। स्वर्ण देखो। (पु०) २ रक्तपलाशवृक्ष, टेसूका खिरनी। . पेड़। ३ नागकेशरक्ष। ४ धुस्तरवृक्ष, धतूरे का पेड़। कनकगिरि (स० पु० ) सम्पदायविशेषके प्रतिष्ठाता। ५ काञ्चनार वृक्ष, कचनारका पेड़। ६ कालीयवक्ष, कनकगैरिक (सं० लो०) अत्यन्त रतगैरिक, बहुत काले अगुरुका पड़। ७ चम्पकंवृक्ष, चम्पेका पेड़। लाल गेरू। ८ कासमदार, कसौंदीका पड़ । कनकगुग्गुलु । कनकचम्पक (सं० पु०) चम्पकविशेष, किसो किस्म का १. लाक्षातरू, लाखका पेड़। ११ जयपालवृक्ष, चम्या। (Pterospermum acerifoleum) यह जमालगोटेका पेड़। १२ कृष्णधुस्तर, काला धतूरा। वृक्ष भारतवर्ष के नाना स्थानों में उत्पन्न होता है। १३ महादेव। कनकचम्पक बहुत बड़ा वृक्ष है। काष्ठसे सुन्दर और "सपकारः प्रियः सः कनकः काञ्चनच्छविः।" (भारत १३२१५९२) दृढ़ तख ते बनते हैं। पुष्य सुगन्धविशिष्ट रहता है। १४ यदुवंशीय दुर्दम राजाके पुत्र। (हरिवंश ३२६) हिन्दीमें इसे कनियारी कहते हैं। वल्कल पिङ्गलवर्ण १५ एक चोलराजा। (हिं० ) १६ गोधमचूर्णा, गेहंका | होता है। पत्र वृहदाकार रहते हैं। वसन्त एवं पाटा, कनिक। १७ गई। ग्रीष्म ऋतु इसके फलने का समय है। भाद्र भूमिमें कनककदलो (सं० स्त्रो०) रम्भाभेद, किसी किस्म का यह प्रायः पनपता है। केला। कनकचम्पा (हिं.) कनकचम्पक देखो। कनककन्दपरस (सं० पु०) वाजीकरणका एक प्रौषध, | कनकचूर (हिं० पु०) धान्यविशेष, किसी किस्मका नामर्दीकी एक दवा। पारद एवं गन्धक प्रत्येक सम धान। इसका आकार खवै, किन्तु मुख अधिक दीर्घ भाग और कान्तलौह, वैक्रान्त तथा स्वर्ण प्रत्येक | होता है। अन्यान्य प्रामन धान्यको अपेक्षा यह पारदसे चतुर्थांश पहले कज्जलो करे। फिर ताम्र- विलम्बसे पकता है। अधिक उर्वर और निम्नभूमि पानपर गूजरके रस, सरसोंके तेल और धतूरेके रसमें | न रहने से इसको क्वषि करना कठिन है। कनकचरको प्रत्येकको तीन दिन चपटाते हैं। सूखनेपर वालुका | लाईसे मुड़की बनती है। यन्त्रमें धीमी भांचसे सबको पकाना चाहिये। वालुका | कनकजोरा (हिं• पु०) धान्य विशेष, एक धान । तप्त पड़ने से प्राग बुझा देते और शीतल होनेपर नीचे | यह पति सूक्ष्म होता है। इसको मार्गशीर्ष मासमें उतार औषधको खा लेते हैं। पनुपान घत, शर्करा काटते हैं। कनकजोरका तण्डल बहुत दिन नहीं और मधु है। . . बिगड़ता। .. कनककलो (हिं. स्त्रो०) सोनेको लौंग। यह एक | कनकजोद्भव .(सं०. पु० ) राल, लोबान । आभूषण है। इसे कर्ण में धारण करते हैं। | कनकझिङ्का (हिं० पु०) वृक्षविशेष, एक पेड़। कनकशिपु (सं० पु०) हिरण्यकशिपु, एक दैत्य। | (Polygonam elegans ) कनककुण्डला (सं० स्त्री० ) हरिकेशको माता। कनकटक (सं• पु०) स्वर्ण कुठार, साने का तबर।
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७०३
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