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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७१८

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कोई विरामा, सोनविण रूपसे जोत-बो. सकता है। किन्तु वह अच्छी उपजके अच्छा ठहरता, जो पचानुपुत्ररूपमें देख-भाल और लिये दायी नहीं। फिर शिल्पकर सुन्दर कारकार्य अचल-अटल मान नश्वरतासे पीछे हटता है। ऐसा कर द्रव्यादि बना सकते हैं। किन्तु यह ठहराना करनेसे तुम्हें अवश्य फल मिलेगा।' सन्यासी यह कठिन है-बाज़ार में उनको छोड़ दूसरा कोई वस्तु बात कह अपने कर्ममें लगे। फिर उन्होंने जलका न बिकेगा। इसीप्रकार ज्ञानी व्यक्ति सुनीतिको कोई संवाद दिया न था। टेलजने वापस पा कन- व्यवस्था बता सकते, किन्तु इसके दायो कैसे ठहरते- फुचीसे सब बात कहो। इन्होंने उत्तर दिया- लोग उसे ग्रहण कर सकेंगे या नहीं।' 'बात ठीक है। किन्तु पृथिवीसे हट कैसे खड़े होंगे। उइ राज्यमें घुसते समय 'पु' नामक स्थानपर मनुष्यका समाज छोड़ वनमें कैसे रहेंगे। साथीन कितने ही लोगोंने इनको आक्रमण किया था। सब होनसे मनुष्य जी नहीं सकता। फिर वनके पशु- शिष्योंके मिलकर भी रोक न सकनेपर उन्होंने कन पक्षीसे मनुष्यका सम्पर्क क्या है। सुतरां उनके साथ पचीकी पकड़ लिया। यह उनके फन्दे में पड़ शपथ कैसे ठहरेंगे। यदि साथीके पास ही मनुष्य को रहना स्ठानको वाध्य हुये-फिर कभी हम उद् राज्यको पड़ता, तो दुशाग्रस्त मनुष्थंके निकट अवस्थान .ओर भागे न बढ्ने। किन्तु मुक्ति मिलते ही कन- करना उचितःजंचता है। देशदेशमें विक्ला रहनेसे फचीने उसी ओर चलनेको सङ्कल्प किया था। जो ही हमारे कार्यको आवश्यकता है। समस्त देश में विश्वस्तता और सत्यताको नीतिका प्रथम पथ बता शृङ्खला लगने और नोति चलनेसे हमें एक राजाके उपदेश देते रहे, उन्होंको इस प्रकार सत्य छोड़ते देख हारसे अन्धके हारपर जाना न पड़ेगा। फिर हमारा शिष्य चौंक उठे। फिर टिजिकङ्गने पूंछा था-शपथ : कोई विशेष कार्य भी न रहेगा। उसी समय हम छोड़ना क्या उचित है। इन्होंने उत्तर दिया-यह यथार्थ विषयविरागी, पृथिवी-परित्यागी और निर्लिप्त शपथ दूसरों ने बलपूर्वक कराया है, हमारे प्राणमें यह वैरागी समझे जायेंगे।' सो न राज्यको जाते समय शपथ नहीं। | कोयाङ्ग नगरमें सदल कनफुचीपर बड़ी विपद पड़ी। सन्यासी पृथिवीके किसी कार्यमें नहीं फंसते। वह उस समय उन्ना नगरमें इयाङ्गइ नामक किसी डाकूने चारो और पापकी लीला देख कांपने लगते और भोषण उपद्रव उठाया था। लोग उसके उत्पातसे उससे दूर भगते हैं। फिर वह लोगोंको भी ऐसा ही अत्यन्त उत्यक रहे। किन्तु दुःखसे कहना पड़ता, करनका उपदेश देते हैं। उस समय सयासी कन कि कमफ ची और हुयाङ्कइका शरीर मिलता-जुलता फचीको स्रोतके विरुद्ध लड़ते देख हंसते और ज्ञान था। इससे लोगोंने जिस एहमें इन्होंने पाश्रय शून्य एवख्य समझते थे। किसी समय यह घूमते लिया, उसे चारों ओर से घेर दिया। शिष्य बहुत डरे, घूमते तृष्णात हो जलाशय ढढ़ते रहे। दूरसे एक किन्तु यह निर्भीक चित्तसे कहने लगे-'हमारे सबवासी क्षेत्र में अपना काम करते देख पड़े। इन्होंने ' सम्बन्धमें सत्व कभी छिपा न रहेगा। परमेश्वर यदि टेलिजको उनके निकट जलका संवाद लेने भेजा। इतना शीघ्र इस सत्कार्य में बाधा लाता, तो हमें ऐसो सन्यासीने टेलिजको देख और कनफुचीका शिथ अवस्थाको क्यों पहुंचाता! उसको इच्छासे सत्य समझ कहा था-'विशृङ्खला समुद्रके तरङ्गको भांति खल जायेगा। कोयाङ्करके लोग हमारा कुछ बना न एक राज्यसे दूसरे राज्य में पहुंच जाती है। कोई सकेंगे।' यही कहकर कनफ चीने अयनी वीणाका उसे रोक नहीं सकता। उचित परामर्श न माननेपर स्वर मिलाया था। फिर यह प्राचीन सम्राटोको जो व्यक्ति एक राजाके हारसे पपर राजाके हारपर महिमासूचक निज चित पदावली गाने लगे। घर घुमफिर पहुंचता, उसका अनुसरण करनेसे तुम्हें घेरनेवाले लोग कहते कहते चढे गये-यह हुयाङ्गह क्या फल मिलता है। इससे तो उसीकी सेवा करना | नहीं, कोई दूसरा व्यक्ति है। से Vol. III. 180