पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७२१

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मिलता। निम्नलिखित विषय देखानेको केवल एक- चक्षुमें जल भर इन्होंने कहा-हमारे उपदेश तो चले.. मात्र घटना लिखी है-कनफ ची अपने पुत्रको उपदेश किन्तु हम अपरिचित हो रह गये। देने के लिये कौन प्रथा चलाते थे। एकवार किसी इस पर जिकाङ्गने पूछा-आपके अपरिचित शिष्यने लोसे पूछा-हमें जो सकल उपदेश मिलते रहने की बात कसी। उनको छोड़ आप अपने पितासे दूसरे विषय सिखते। कनफ चीने उत्तर दिया-हम इसके लिये ईश्वरको हैं या नहीं। लीने उत्तर दिया,-'नहीं। किसी दिन । दोष नहीं देते। मनुष्य हमारी शिक्षा नहीं मानता। वह एक स्थानपर खड़े थे। मैं उनके निकटसे जल्द अथच वह सफलता पाने के लिये व्यस्त हो गया है। मन्द जाता रहा। मुझे देख कर उन्होंने पूछा किन्तु इसके लिये हम उसको भी दोषी नहीं ठहराते। तुमने गौतिपुस्तक पढ़ा है। मेरे इनकार करनेपर ईश्वर हमें पहंचानता है। किसी महात्माका नाम उन्होंने कहा-यदि तुम गोतिपुस्तक न पढ़ोंगे, तो कभी नहीं मिटता। किन्तु हमारे नियमादिका कथनोपकथनके उपयुक्त पात्र कैसे बनोगे। दूसरे उपयुक्त प्रचार रुका है। सुतरां हम समझ नहीं दिन भी उन्होंने पूछा था-तुमने आचार-व्यवहारके सकते-भविष्यत्में लोग हमें किस दृष्टिसे देखेंगे। विधिका ग्रन्थ पढ़ा है। मेरे फिर इनकार करने पर - किसी दिन प्रातःकाल सुन पड़ा-महामा वह कहने लगे-यह ग्रन्थ न पढ़नेसे तुम्हारा चरित्र कनफ ची उठ और पवाहिक से कमरपर हाथ रख स्थिर कैसे होगा! अपने गृहके द्वार घूमते हैं। उनके हाथमें लकड़ी यह सुनकर शिथ बोल उठा-हमें भी दोनों है। वह मट्टीमें घिसल रही है। कनफु ची चलते उपदेश मिले हैं। किन्तु निम्नलिखित उपदेश अधिक और कहते हैं- है-विज्ञ मनुष्य अपने पुत्रको शिक्षा देनेके लिये "ऊ'चो शिखर पहाड़को चूर चूर है नाय । कोई विशेष प्रबन्ध नहीं करते। टै विटपौ इ बड़ी गिरे भूमिपर पाय ।। ... पुत्र मरनेके परवत्सर इयेनहिउ नामक कनफचौके वन तिनकी भांति ही सूखहिगो नरग्राम । सर्वापक्षा प्रिय छात्रका भी मृत्य हुवा। यह संवाद जितनो जगमें है बढ़ी ज्ञानवान् अभिराम " मिलते ही इन्होने अत्यन्त व्यथित हो कहा था कियत्क्षण पोछे कनफ ची घरमें घुस हारके हाय! ईश्वरने हमें नष्ट कर डाला। इसके एक सम्मख बैठ गये। जिकङ्ग इसी समय गुरुके निकट वत्सर पीछे किकङ्ग शिकार खेलने गये थे। वह पाते थे। वह इनकी बात सुन सोचने लगे,–'यदि एक शृङ्गविशिष्ट कोई अद्भुत जीव पकड़ लाये। कोई गिरिका उच्च शिखर चर-चर हो जायेगा, तो मेरे कह न सका था-यह कौन प्राणी है। फिर कनफुची देखने में क्या पायेगा। फिर जो विशाल विटपो टूटे बोलाये गये। इन्होंने पाते ही कहा था-यह अथवा महाजानी मानवका दल वनके तृणकी भांति 'किलिन' नामक प्राणी है। प्रवाद है-वह प्राणी सूखेगा, तो मेरा विश्वास सबसे छूटेगा।' ऐसे हो कनफुचोंके जन्मसे पहले लि पर्वतपर उनकी माताको | सोचते-सोचते जिकङ्ग गुरुके निकट जा खड़े हुये। स्वपमें देख पड़ा था। फिर उन्होंने भी स्वपमें उसके कनफ चौने उन्हें देखकर कहा था-'जि आज तुम्हें शृङ्गपर एक फीता बांधा। आश्चर्यका विषय है इतना बिलम्ब क्यों लगा है, इतने दिन पोछे धृत प्राणीके शृङ्गपर उस समय भी फीता बंधा था। एक सुबुद्धि राजा आ पहुंचा है। वह हमें अपना हितीय बार उस प्राणीको देख सब लोग अमङ्गलको शिक्षक बनायेगा। हमारा अन्तिम समय उपस्थित पाशङ्का करने लगे। कनफुचीने विज्ञतम होते भी है। यह बात सत्य ठहरी। कनफ ची खाटपर वर्तमान घटनासे घबरा और चौतकारपूर्वक पशुको जाकर सो गये। फिर सात दिन पछि इनको जीव- जोर देख बोल ठे-तू किसके लिये आया है। फिर लौला शेष हुयो। .