पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७३५

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कन्दरा-कन्दर्पनारायण कन्दरा (सं० स्त्री०) कन्दर-टाप । गुहा, खो। , मैथुनादिको कन्दपैकेलि कहते हैं। २ एक प्रहसन, कन्दराकर (सं० पु.) कन्दरस्य आकरः, ६-तत्। दिल्लगोको कोई किताब। पर्वत, पहाड़, खोका खजाना। कन्दर्पजीव (सं० १०) कन्दप जीवयति वर्धयति, कन्दरान्तर (सं० पु०) कन्दरका भीतरी भाग, खोका | कन्द-जीव-णिच्-पच । १ कामजवृक्ष, एक पेड़। अन्दरूनी हिस्सा। २ कटहल। ३ कामवृद्धिकारक द्रव्य, ताकत बढ़ाने- कन्दराल (सं० पु.) कन्दराय अङ्कराय अलति, वाली चीज़। कन्दर-अल-अच । १ पक्षवृक्ष, पाकरका पेड़ । कन्दर्पज्वर (सं० पु. ) कन्दर्पविकारजो ज्वरः, मध्य- २ गर्दभाण्डवृक्ष, गजहन्द, पारस-पीपल। ३ अख- पदली.। १ कामके विकारसे उत्पन ज्वर, जो रोटका पेड़। बुखार धातुके बिगाड़से आया हो। २ काम, कन्दालक (सपु०) प्लक्षवृक्ष, पाकरका पेड़। खाहिश, चाह। कन्दरी (सं० स्त्री०) कन्दर-डोष। गुहा, खो। | कन्दपं दहन (सं० पु०) कन्दर्पस्य दहनं वर्णितं यत्र । कन्दरूल ( स० पु० ) कट शूरण, कड़वा जिमौकन्द । शिवपुराण का एक अंश। दक्षयज्ञमें सतोके देह कन्दरोग (सं० पु.) योनिरोगविशेष, औरतो के छोड़ने पर महादेवने योग अवलम्बन किया था। उधर पेशाबको जगह होनेवाली एक बीमारो। कन्द देखो। सती भी हिमालय पर जन्म ले महादेवको परिचर्या में कन्दरोद्भवा (सं० स्त्री०) कन्दर उद्भवति, कदर लग गयीं। उसी समय ताड़कासुरके अत्याचारसे उत्-भू अच-टाप। १ क्षुद्र पाषाणभेदवक्ष, छोटा | देव अत्यन्त उतपीडित हुये। शिवतेजोजात एक- पथरचटा। २ गुड़चौविशेष, किसी किस्म को गुच। मात्र कार्तिकेयके व्यतीत उसके दमनका दूसरा उपाय न रहा। इसोसे देवोंने महादेवका योगभङ्ग (त्रि०) ३ कन्दरोत्पन्न, खोसे निकला हुआ। कन्दरोहिणी (सं० स्त्री०) कन्दगुड़ची, डलेको करने रति, वसन्त और कन्द को भेजा था। गुच। देवाज्ञाके अनुसार शरीरपर पुष्पवाण मारते हो कन्दप (सं० पु.) के कुत्सितो दो यस्मात्, महादेवके ललाटसे निकल अग्निशिखान कन्दपको बहुव्री०। १ कामदेव। प्रवादानुसार ब्रह्माने काम- जला डाला। (शिवपुर राण) कन्दर्पनारायण-चन्द्रद्दीपके एक प्रबल बङ्गाली राजा। देवका यह नाम इसलिये रखा, कि उसने उत्पन्न होते हो कहा था,-मैं किसको मदसे मत्त करूं। यह एक बारभुया रहे। इनके पितामह परमानन्द वसुराय दक्षिण एवं पूर्ववङ्गीय कायस्थ-समाजके "क दर्पयामोति मदाज्जातमाबो जगाद च । समाजपति थे। वह अपने को कान्यकुज-समाजगत बेन कन्दर्पनामान' चकार चतुर्भुनः॥” (कथासरित्सागर) कायस्थ-प्रवर दशरथ वसुके व पधर बताते रहे। २ सङ्गीतका ध्रुवविशेष। यह रुद्रतालका एक पाईन-अकबरोमें भी उनका नाम मिलता है। १५६८ ई०को कन्दपनारायण बाकला चन्द्रबोपमें "वयोविंशति वर्णाशिघ्र वः कन्दपंसंज्ञकः । राजत्व करते थे। यह एक महावीर रहे। विशेषतः .. वारे वा करुणे वा स्यात् खण्डताले विधीयते ॥” ( समीतद०) इन्हें तोप चलाना बहुत अच्छा लगता था। इनके कन्दर्प कूप (स.पु.) कन्दर्पस्य कूप इव, उपमि० । गुणका परिचय तत्कालीन पाश्चात्य चमणकारी भी योनि, सुकाम-मखसूस । दे गये हैं। ( Hacklyt's Voyages, Vol. II. P. 257) सन्दकेतु (सं० पु.) एक राजा। ___ कन्दपनारायणको पोतलवालो तोप आज भी कन्दप केलि (सं० पु.) कन्दर्पण केलिः, ३-तत् ।। चन्द्रदीपमें रखी है। उस पर कन्दर्पनाराया और कामवयतः होनेवाला एक केबि, प्यारका खेस। निर्माताका नाम खोदा है। तोपको साम्बाई प्रौने