पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कन्दर्पमथन-कन्दलौकुसुम ०३५ पाठ फोट, घरके जड़की चौड़ाई सवा दो फौट,। गलमडावंद, गण्डमाला, भगन्दर पादिरोग पारोग्य और मुंह साढ़े उबौस इञ्च है। हो जाते हैं। (मेषञ्च रबाबलो) (Jour. As. Soc. Bengal, Vol. XLIII. p. 207) कन्दपसिद्दान्त-सुपस व्याकरणके एक टीकाकार। कन्दर्पमथन (सं० पु.) कन्द मथाति, कन्द-मथ- कन्दल (स• पु०-को०) कदि-प्रलच् । १ कलध्वनि, ल्यु। महादेव। धौमी और मुलायम अावाज । २ उपराग, छोटा कन्दप मूषल (सं० पु०) कन्दर्पस्य मूषल इव, उपमिः। राम। ३ गण्डदेश, गाल, कनपटो। ४ कपाल, उपस्थ, लिङ्ग, अज व-तनामुल। खोपड़ा। ५ नवाङ्कर, नया किल्ला। अपवाद, कन्दरस (सं० पु०) वद्यकोत एक औषध । पारंद, हिकारत। ७ कदलौविशेष, किसी कि.म्पका केला। गन्धक, प्रबाल, गे रिक, वक्रान्त, रौप्य, शङ्ख एवं मुला ८ स्वर्ण, सोना। ८ वागयुद्ध, जबानो झगड़ा। बराबर बराबर ले और वटको लटके क्वाथसे सात १० समूह, मुण्ड, टेर। ११ पृथिवी, जमीन् । बार भावना दे २ रत्ती प्रमाण वटिका बनाये। १२ वष्णसारमृग, एक हिरन। १३ थिलोधपुष्य, इस रसको त्रिफला और कबाबचीनौके क्वाधसे छातेका फूल । १४ कमलवोज । १५ कदलीपुष्य, केलेका सेवन करनेपर औपसगिक मेहरोग सत्वर नाश फूल, छाता। १६ आट्रॅक, अदरक। १७ शूरव, होता है। जिमों कन्द । १८ कोमलशाखा, नर्म डाल । कन्दप॑शर्मा-भट्टिकाव्यटीका 'वैजयन्ती' के रचयिता। १६ अपशकुन, बदफाली। कन्दर्पशृङ्खल (सं० पु०) कन्दर्पाय शृङ्गलः । रतिबन्ध- कन्दनता (सं० स्त्री०) कन्दप्रधाना लता, मध्यपदलो । विशेष, एक डोला। १ मालाकन्द, एक डला। २ सुटूकारवेल्सी, करेलो। कन्दप सारतैल ( स० क्लो. ) कुष्ठाधिकारका वैद्यकोक्त कन्दलायन-एक प्राचीन संस्कृत दर्शनन। 'सर्वदर्शन- तैलविशेष, कोढ़का एक तेल। सन्तर्पण, काली, संग्रह' में इनका उल्लेख है। गुड़ चो, पिचुमदक, शिरीष, महातिता, जया, तुम्बो, कन्दलित (स.वि.) कन्दन्तो ऽस्य सन्चातः, कन्दल- मृगादनौ तथा निशा १०१० पल एक द्रोण जलमें! इतच्। १ कन्दलयुक्त, डलेदार। २ प्रस्फटित. पका १६ सेर रहनेसे उतार ले। फिर जलमें खिला हुआ। ३निषिप्त, निकाला हुमा। प्रस्थ तैल, चार प्रस्थ गोमूत्र, श१ प्रस्थ प्रारम्वध, कन्दलिन (सं.वि.) कन्दलो ऽस्त्वस्थ, कन्दख-इनि। भृङ्गराज, जया, धुस्तर, हरिद्रा, सिद्धि, खजूर, कन्दलयुक्त, डलेदार। गोमय, चित्रक, पर्क एवं मुहीका रस और कस्कार्थ | कन्दलो (स० पु०-स्त्रो०) कन्दल-डौष । १ मृग- २।२ तोले लाल इन्द्रायण, वचा, ब्राह्मी, तुम्बी, चित्रक, विशेष, किसी किस्म का हिरन। २ पक्षीविशेष, एक गृहपुत्रिका, कुचेला, पटोलपत्र, हरिद्रा, मुस्तक, चिड़िया। ३ गुल्मविशेष, एक पौदा। ग्रन्थिका, शम्याक,अचार, कासुन्दमूलक, ईश्वरमूलक, “भाविभ्वप्रथममुकुला कन्दलोबानु कच्छम्।" (मेघदूत ) पाल, मनिष्ठा, महातिता, विशाला, वृश्चिकाली, ४ कदली, केला। ५ पताका, भण्डा। ६ पड्स- पूतिका, आस्फोत, मूर्वा, सप्तपणे, शिरीष, कुटज, पिचु- वीज, कमलगट्टा । ७ औवं मुनिको एक कन्या । मर्द, महानिम्ब, गुड़ची, चन्द्ररेखा, सोमराट्, चक्र- इन्होंने दुर्वासाके शापसे भस्मीभूत हो कदली वृक्षरूपसे मर्दक, तुम्बुरु, भृङ्ग, यष्टयान, कन्दक, कटुरोहिणी, / जन्मग्रहण किया था। पटी, दार्वी, वित्, ग्रन्धिका, प्रगुरु, पुष्कर, कपूर, कन्दलीकार-सस्वतके एक प्राचीन विद्वान् । चिबभट्ट कटफल, मांसी, एला, वासक तथा उशीर डालनेसे | और अबभने इनका उल्लेख किया है। यह औषध प्रस्तुत है। इसको मलनेसे अष्टादशविध | कन्दलीकुसुम (सं• ली.) कन्दखा इव कुसुमं यस्य, .: कुष्ठ, पाभा, स्फोटका, मिडि, दगु, रक्तामण्डस, बहुव्री। शिसोन्ध, कुलाह-बारां, सांपको टोपी।