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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७३८

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कन्दुकप्रस्थ-कधजाति ०३० कन्दुकप्रस्थ (स.पु.) नगरविशेष, किसी शहरका | १ कुमुद, कोकावेली, बघोला। २ खेतपद्म, सफेद नाम। . . कमल। कन्दुकलीला (सं. स्त्री०) कन्दुकको क्रीड़ा, मेंदका कन्दोस्थ (सं० लो०) नोवोत्पल, आसमानी कमल। कन्दोद्भवा (सं• स्त्री०) कन्दा दुइवो ऽस्थाः, बहुव्री० । कन्दुकेश (सं० पु०) एक प्राचीन हिन्दू गजा। कन्दगुड़ चौ, एक गुर्च। २ क्षुद्रपाषाणभेदी, छोटा कन्टुकेश्वर (सं० पु.) काशोधामका एक शिवलिङ्क। पथरचटा। किसी समय पावतो कौतुकवश कन्ट्रक खेलती धौं। कन्दोषध (सं.ली.) पाट्रक, अदरक। क्रीड़ाके श्रमसे उनका केशपाश शिथिल और नयनय कन्ध (सं० पु०) के जलं दधाति धारयति, कंधा-क। पाकुल हो गया। ऐसे भावादि देख उनको हरण १ मेघ। २ मुस्तकभेद, किसी किस्का मोथा। करने के लिये दो दैत्य शाम्बरीमाया अवलम्बनपूर्वक कन्धजाति-उड़ासेकी एक असभ्य जाति। अंगरेज अन्तरीक्षसे उतरे थे। देवताबोंने दोनों दैत्योंके अन्धकारोंने इसकी पाख्या नानाविध लगायी है। विनाश साधनको भगवतोसे इङ्गित किया। भगवतीने किसौने खन्द, किसोने खाद, किसान खण्ड, किसौन इङ्गित पाते हो हस्तस्थित कन्टुक फटकार उन्हें खोंड और किसीने कन्द नाम लिखा है। किन्तु यह मार डाला था। फिर वह कन्टुक भूमिपर गिर | निश्चय करना कुछ विचार-सापच देखाता, कन्धोंका लिङ्ग बन गया। (काशीखस) वास्तविक श्रेणी-परिचारक नाम क्या पाता है। कन्दुपक्क (स.लौ०) विना जलके उपसेक केवल उड़िया इन लोगोंका नाम 'कन्ध रखते हैं। 'क' पात्रमें अग्निसे भृष्ट तण्ड लादि, बहुरी, भूगड़ा, भुना शब्दका अर्थ पहाड़ी है। अनेक लोग समझते- हुआ दाना। तामिल भाषामें 'कन्दम' पर्वतको कहते हैं। इसी "कन्दुपक्वानि तैलानि पायस दधि शक्तवः । 'कन्ट्स्' शब्दसे 'कन्ध' बना है। फिर दूसरोंके कथ- हिजैरेतानि भोज्यानि शूद्रगेहकृतान्यपि ॥” ( कूर्मपुराण) नानुसार तामिल भाषाके 'कन्द्र शब्दका अर्थ तौर भुने हुवे द्रव्य, तेल, दुग्ध, दधि और शक्त को है। सुतरां इस जातिको सृगयादिमें धनुर्वाण व्यवहार शूटूके घर में तैयार होते भी हिज खा सकते हैं। करते देख 'कन्ट्र'से कन्ध कहने लगे हैं। कोई कहता- कन्दुशाला (सं० स्त्री० ) कन्दुपाकार्थे शाला, मध्य- दशपला, बौद पौर गुमसर प्रदेशके मध्य एक स्थानका , पदलो। द्रव्यादि भूननेका एह, भाड़की जगह। नाम किल्ले रामपुरके कन्धों में 'कन्ट्र' चलता और उक्त "गोकुले कन्दुशालायां तैलयन्ने यन्त्रयोः । कन्द्र स्थानके नामसे हो इनका नाम 'कन्ध पड़ता है। अमौमांस्यानि शैचानि स्त्रीषु वालातुरेषु च ॥” (म ति) किले-रामपुरका प्राचीन नाम भो 'कन्द्रदण्डपत . स्त्री, पातुर, बालक, गोकुल, कन्दुशाला, तैलयन्च है। कोई कुछ भी कहै, किन्तु यह खाम अपना परिचय और इक्षुयन्त्रके मध्य शौचको कोई मीमांसा नहीं। 'कन्ध' नामसे नहीं देते। कन्ध प्रपनको 'की' जाति कन्ट्रक (पु.) कन्दुक, गेंद। बताते हैं। स्वजातीयोंमें जातिके अनुसार किसौका कन्टूरोदय-एक प्रसिद्ध चोल राजा। इन्होंके वंशमें | परिचय देनेको 'क्विका' वा 'कुइना' नाम चलता रुद्रदेव प्रभृतिने जन्म लिया था। है। डाल्टन और हण्टरका पथानुसरण करनेसे इन्हें कन्दे क्षु (स.पु.) काशभेद, एक लम्बी घास । 'कन्ध' कहना पनुचित है। फिर प्राचीन शास्त्रादिका कन्दोट (सं.पुली.) कदि-श्रोटन् ।१शलोत्पल, प्रमाण देखनेसे निश्चय किया जाता-वास्तविक इनका सफेद कमल। २ नीलोत्पल, प्रासमानी कमल। नाम कन्ध हो पाता है। पुराणादिमें केशकन्धरक ३ कुमुद, कोकाबेली, बघोला। . . बन्दोत. (सं.पु.) कन्दे मूले.जतः, कन्द-वे-का।। • एशियाटिक सोसाइटीका इचिखिय वामनपुराब, १३०॥

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