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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७४३

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कन्धनाति ७४३ मद्यादि चढ़ा देते हैं। अन्तको उभय वैवाहिकोंमें । जानसे स्वामीका खोपर कोई खत्व नहीं ठहरता। परस्पर हाथ मिलनेपर विवाहका सम्बन्ध खिर होता| किन्तु वह स्त्री भी दूसरा विवाह करनेसे वञ्चित रहता है। रातको सब लोग कन्या-कर्ताके घर ही पाहा- है। स्वामी हितोय वार विवाह करता है। व्यभिचार रादि करते हैं। सारी रात नृत्य, गीत, वाद्य और दोष लगते हो इस प्रकार विवाह बन्धन तोड़ देते हैं। मद्यकी धम रहती है। शेष रात्रिको पुरोहित वर- किसी पन्ध कारणसे ऐसा हो नहीं सकता। एक पत्नी कन्याके हाथ हरिद्रात सूत्र बांधते और धानसे चावल रहते दूसरी ग्रहण करना असंभव है। तैयार होनेवाले घरमें खड़ाकर दोनोंके मुखपर वेश्या रखनेकी प्रथा इन लोगोंमें निन्दा नहीं। हरिद्राके जलकी छोट मारते हैं। प्रात:काल होते स्त्रीवाला पुरुष वेश्या रखने नहीं पाता। किन्तु ही वर एवं कन्याके चचा दोनों को अपने-अपने | स्त्रोको अनुमति ले वह यह काम कर सकता है। स्कन्धपर बैठा महासमारोहसे नाचते-गाते वरके | ऐसे स्थलमें वेश्यापुत्रों को औरस-पिताके विषयका घरको भोर चलते हैं। कन्यापक्षीय भी साथ साथ | समान भाग मिलता है। रखनेक प्रथा निन्दित जाते हैं। राहमें वरं और कन्याका चचा अपना-नहोते भी कन्धों में वेश्यावोंको सं"- कम है। फिर अपना भार बदल वरके घरको भामता है। इधर व्यभिचार और बलातकारकी बात सिवा दो-एक कन्यापक्षीय कन्याको न देख वरपक्षसे उसे देखानेके | जगहके कहीं मन नहीं पड़ती। लिये झगड़ा लगाते हैं। समस्त पामोद उत्सव | पतिके वय:प्राप्त होनेपर स्त्रियां बड़ी भक्तिसे सेवा रुक जाता है। दोनों दल पृथक् पड़ परस्पर युद्धार्थ | करती हैं। भोजनके ममय स्त्री पतिको बैठकर खड़े होते हैं। युद्दमें लोगों के मरते कटते भी कुछ खिलाती और समस्त महकर्म अपने हाथ चलाती देर बाद पुरोहितोंको मध्यस्थतासे विवाद मिट जाता है। जब खामोको क्षेत्रके कर्मसे एकान्त अवसब है। कन्यापक्षीय वापस चले जाते हैं। यदि पथमें होते देख पाती, तब दुग्ध-पोष्ट सन्तानको उपचा पार करनेको कोई नदी पडती, तो निम्नलिखित कर स्त्री उसकी सहायताके लिये दौड़ पाती है। ऐसे व्यवस्था चलती है-पुरोहित वरके घर जा वरकन्याको समय स्त्रियां कमरमें कपड़ेसे सन्तानको लपेट लेती हैं। गात्रमें रक्षाबन्धन एवं शान्तिपाठ कर जलदेवताके कोई कोई कहता-अविवाहिता अवस्थामें पुव. उपद्रवसे उहार कर पाते हैं। वती रहते भी स्त्रीका विवाह होता है। उस खोकी विवाहके बाद जितने दिन पुत्र स्त्रीसहवासके निन्दा भौ सुन नहीं पड़तो। किन्तु ऐसौ कन्याका विवाह उपयुक्त नहीं ठहरता, उतने दिन वरकर्ताके पनु करने पर लोग सहज ही खोक्कत नहीं होते। कन्धों को रोधसे पुत्रवधको गृहका समस्त कर्म करना पड़ता कन्यायें इच्छा करते हो स्वामीका गह छोड़ पिताके है। पीछे वयःप्राप्त होनेसे पुत्र और पुत्रवध | एहको वापस पा सकती है। फिर घर पहुंचते ही दोनों को संसारके मध्य पूर्ण क्षमता मिलती है। उनके पिताको विवाहकालीन प्राप्त द्रव्यादि खौटा कन्धों में स्त्रियां कुछ विशेष सम्मान पाती हैं।। देना पड़ता है। इससे यह कन्वासन्तानसे बडी जितने दिन स्वामी छोटा रहता, उतने दिन उसपर पृथा रखते हैं। इन्हें स्त्रीपर विश्वास नहीं। लोग स्त्रीका प्रभुत्व चलता है। विवाहके समय वर कहते हैं-नितान्त शिश कुठारका पाघात लमते भो कर्ता जो द्रव्य. वधूका मूल्यस्वरूप कन्धाकर्ताको दे | गोपनीय विषय प्रकाश नहीं करता। किन्तु स्त्रियां- पाता, वह वापस होते हो विवाहका बन्धन टूट कितनी ही बुद्धिमती क्यों न हो-सामान्य प्रलोभन जाता है। स्त्री पतिगह छोड़ पिढगहको चस देती पावेहीपतिगोपनीय कथा कह देती हैं। . है। खोके गर्भवती रहते भी कोई पापचि नहीं अपनी जातिके मध्य किसी सामान्य व्यक्षिके उठती। इस प्रकार एक बार विवाहबन्धन कूट मरनेपर यह यथासचव मौन ही देशको बबावे पौर