1088 कन्वजाति . दशम दिवस ग्रामके सब लोगोंको खिलाते हैं। किन्तु | जाता। किसो-किसी जातिमें दुष्ट व्यक्ति अपने ऐसे सरदार या मण्डलके मरने पर ढोल बजा मृतके हो दुष्कार्यके फलसे परिवाण पानेको चेष्टा करते हैं। अधीनस्थ समस्त ग्रामों में मृत्यका संवाद फैलाते इसीसे कन्धोंने नियम बना रखा है-यदि कोई और अन्यान्य ग्रामों के मण्डल तथा जातीय सरदार हत्याकारी पा इसप्रकार पाश्रय ले, तो गहस्थ बोला मिल-जुल शवको श्मशान ले जाते हैं।। उसको आश्रय प्रदान कर सपरिवार अपना घर बहुत बड़ी चिता बना और उसके मध्यस्थलमें ध्वजा | छोड़ चल दे; किन्तु खाद्यादि प्रेरण न करे। एवं जातीय पताका लगा शवको रखते हैं। फिर प्राततायो जबतक घरमें रहता, तब तक कोई कुछ मृतका पुत्र शवको भोर पीठ फेर चितामें अग्नि देता नहीं कहता। किन्तु . अनाहारपीड़ित हो घरसे है। उसी समय मृतके यावतीय वस्त्रादि, तैजस तथा निकलते ही गहस्थ उसे मार प्रतिशोध लेता है। शस्त्रादि ला और चावलको भूसोपर जमा चिताके दो-एक जगह हो जाते भो कन्ध इस प्रथाको इतना निकट लगाते हैं। अन्तको जबतक पताकादि पर्यन्त बुरा समझते, कि नियमानुसार कभी कभी कार्य नहीं जलते. तबतक मृतके आत्मोय चिताको चारो करते हैं। फिर जो इस नियमसे चलता, वह स्व- ओर नृत्य करते हैं। फिर मृतके अधीनस्थ प्रधान जातिके मध्य वृणित ठहरता है। आतिथ्य के कारण उसकी उक्त सकल सम्पत्ति अपने मध्य मान्यके चिह्नको समय-समयपर पहले इनमें युद्ध होने लगता था। भांति बांटते और दिन पर्यन्त मध्य मध्य वहां एक बार इसी सूत्रसे एक श्रेणिका दसरी श्रेणिके पहुँच तथा मृतके वंशसे मिल चिताभस्मकी चारो साथ युद्ध चला। जो दल हटा, वह अपना ग्राम पोर नाचते एवं शोकसङ्गीत पलापते हैं। छोड़ पाच वर्ती ग्राममें जा टिका। ग्रामके अधि- दशम दिन मृतके समग्र अधीनस्थ एवं ग्रामके वासियोंने अतिथियों की एक वत्सर पाश्रय दिया प्रधान जुटते और एक सरदार मनोनीत करते हैं। था। फिर जयलाभ करनेवाली दल शत्रवोंको मृतका ज्येष्ठ-पुत्र हो प्रायः मनोनीत होता है। आश्रय देनेवालोंसे लड़ने लगी। किन्तु आश्रय कन्धजातिमें दो प्रधान गुण हैं-विश्वस्तता और देनेवालोंने अपने आश्रितको छोड़ा न था। अवशेषको साहस। प्रातिथ्य इन लोगों में इतना प्रबल रहता, एक वत्सर बीतने पर जेटदलने दयापरवश उनका • जो अभुमानसे समझ नहीं पड़ता। कन्ध कहते ग्राम त्याग किया। खग्राम वापस पा विजित दलने धन, मान और जन देकर अतिथिको सेवा करना जैवदलसे पाश्रय मांगा था। फिर क्या थत्र ता चाहिये। सन्तानको अपेक्षा भी अतिथि यनका रह सकी! देवभावपूर्ण कन्धोंने समस्त शत्र ता मूल बस्तु है। अतिथि पर पड़नेसे विपदको अपने | विजितोंको अधिकार को हुई भूमि वापस दो और प्राण देकर भी दूर कर देना उचित है। ग्राममें | अपने शस्यसे वीज बोनेको सामग्री प्रदान की। आ पहुचनेसे किसी विदेशी पथिकको प्रत्येक गृहके | इस महानुभव जातिको पदरेणुके योग्य क्या कोई ' कर्ता भोजनके लिये बोलाते हैं। जिसके घर अतिथि सभ्य वा सभ्यतम जाति हो सकती है। पाता, उसके आनन्द का. पार कोई नहीं पाता। यह विश्वस्तताके कारण ही आज स्वाधीनता खो वह जितने दिन चहता, उतने दिन टिकता है।। बैठे हैं। १८३५ ई०को गुमसर राज्यवालोंने अंग- . उससे कोई 'जावो कह नहीं सकता। यह उन रेजोंसे लड़ इनका पाश्रय लिया था। उस समय लोगों को भी पायय देव, जो युद्ध वा प्राणदण्डके इन्होंने जिन लोगोंको पाश्चय दिया, उन्होंके हाथ भयसे भाग शरण लेते हैं। फिर अपने पिता, पात्मीय निज स्त्रीपुत्र और कन्या सौंप मृत्य के मुख में पतन वा सन्तानको मार डालनेवाला यदि कन्धोंके निकट किया। अंगरेन गुमसर राज्यके व्यक्ति लंदनको पांचव मांगने पाता, तो कभी विमुख होकर नहीं इनके पीछे बगे। पहले इन्होंने समभान सकनेसे ,
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