पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७४५

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कन्धवाति ०४५ अंगरेजोंको देशमें घुसने दिया था। पीछे जब | करते हैं। कोई उत्सवादि पा पड़ने पर सब लोग अंगरेजी फौजका अभिप्राय पाया, तब पावितोंकी उन्हें निमन्बर देते हैं। फिर इठात् दोषका कोई रचाके लिये अपनी विपद न देख गुमसरराज्यके परि कार्य कर डालने पर उनसे प्रतिशोध भी लिया नहीं वारवर्गको इन्होंने गुप्त भावसे पर्वत पर्वत घुमाया।! जाता। वह कन्च जातिसे स्वतन्त्र पीके लोग समझ समय-समय पर युधमें असंख्य कन्ध मरने लगे, फिर भी पड़ते हैं। उभयजातिमें किसी प्रकारका वसार पाश्रितोंको शत्र के हाथ सौंप 'अविश्वासी न बने थे। दोष न लगनेसे पाज भी यह स्वतन्त्रता स्पष्ट प्रतीत शेषको कन्ध अपने प्रान्तवासी किसी हिन्द सरदारको होती है। अनेक लोग उन्हींको इस प्रदेशक विश्वासघातकतासे अंगरेजोंके हाथ पामसमर्पण आदिम अधिवासो अनुमान करते हैं। कन्धोंने करने पर वाध्य हुये। पूर्वकास उनको हरा खयं देश ले लिया था। उसी कृषि एवं युद्ध हो इनके मध्य सम्मानका कार्य है। समयसे वह दासको भांति कन्धोंके अधीन रहते हैं। कृषि और युद्ध न करनेवाले लोग इनमें पुण्य होते हैं। सकल नीच श्रेणियों में कन्धी और उड़िया दोनों प्रत्येक कन्ध अपनी खेतीबारौके लिये थोड़ी-बहुत भाषायें चलती हैं। कारण वह उभय जातिसे सद्भाव भूमि रखता और उसोसे साम्राज्यका मुख उपभोग रखते और उभय जातिके वयोमूत रहते हैं। करता है। अपनी थोड़ोसी भूमि रक्षा कर फसल कन्ध बालककालसे ही षिकार्य सीखते हैं। कटा सकनेसे यह जितना सन्तोष पाते, उतना किसी फिर बास-सुलभ क्रीड़ामें इन्हें हादिको शिक्षा भी विस्तीर्ण साम्राज्य के सम्राट भी नहीं उठाते। कन्धोंके मिलती है। खेत बोने और काटने के समय यह प्रत्येक ग्राम में कुछ नीच श्रेणौके लोग रहते हैं। वह बड़े तड़के उठ खिचड़ी-जैसा एक आहार बनाते- दूसरेका दासत्व कर अपनी जीविका चलाते हैं। खाते और जङ्गलको चखे जाते हैं। इस पाहारमें एतद्भिव प्रत्येक कन्ध-ग्राममें कितने ही वंशानु | दाल, चावल और शूकरका मांस डालते हैं। चित्रका क्रमिक जुलाहे, कर्मकार (लोहार), कुम्भकार नौहार सूखते न सूखते हल चलाने लगते और पवि. (कभार ), ग्वाले और शौण्डिक (कलवार) भो बसते | बाम तीन बजेतक कन्ध अपना कार्य किया करते हैं। हैं। वह लोग ग्रामके मध्य रहने नहीं पाते। जब बाल काट नसन क्षेत्र बनाते, तब दो पहरको ग्रामक प्रान्तदेश अथवा किनारे पर किसी स्थानमें कुछ विश्वाम लेते समय पाहार भी पकाते हैं। पन्ध पली डाल वास करते हैं। कन्ध न तो उनका पत्र समय यह तीन बजेतक काम चला किसी निकटवर्ती खाते और न व्यवसाय ही चलाते हैं। निमश्रेणी नदी में नहाते और घर वापस जा पाहार खाते हैं। वालों में तंबोली ही अधिक काम देते हैं। वह ग्राममें उसी समय इनमें एक प्रकारका रसा बनता, जिसमें पञ्चायत पड़ने या युद्ध चलनेके समय दूतका कार्य तम्बाकूका अर्क पड़ता है। करते हैं। सत्सवादिमें बाजे-गाजे लाना उन्होंके हाथ ग्राम-पत्तनके लिये भूमि निर्णय करने में कन्च बड़ा रहता है। ग्रामीण लोगोंके लिये जुलाहे वस्त्र बुनते | यन लगाते है। प्राय: पर्वतके पाच वा बद्ध वृक्ष- और दसर भी अनेक कार्य करते हैं। पहले इनमें सताकोणं खानमें उच्च भूमिपर ग्राम बसाया जाता मरवलिको प्रथा प्रचलित थी। उस समय जुला- है। प्रति प्राममें दो पंक्ति मह बनते हैं। मध्य- होम प्रत्येक श वंशानुक्रमसे अपने ग्रामके लिये | स्वसमें ग्राम्यपथ घूमधाम निकलता है। इस पक्षको वलिका पात्र संग्रह करते रहा। वह लोग अपने दोनों भोर बन्द करनेको काष्ठ-निर्मित हद कपाट लगते हैं। प्रायः सकल ग्रामों के मध्यखसमें हो लिये भूमि जुटा अथवा उच्च जातिका अवलम्बनीय माको कार्य उठा नहीं सकते। इस लिये उच्च प्रधानके रहनेका घर उठता है। ग्रामपचमके समय जाति का भी उनसे कुछ दयाके साथ व्यवहार | या मध्यखसमें एक कार्यासह सगा पविष्ठानोटे- Vol. IIL 187