कन्धवाति ताके नाम उत्सर्ग करते हैं। उसी वृषके नीचे। देंगे। उभय दलों में पारथ होनेपर अब तक कोई पूर्ण प्रधामके रहनेका घर होता है। उक्त कार्यास वृक्ष रूपसे हार नहीं खाता, तब तक युद्ध चला जाता है। इनके निकट देवतुल्य पूजित है। निम्नश्रेणीके लोग | दूसरे दिन यह फिर न तन युद्ध प्रारम्भ करते हैं। पूर्वोक्त पथके दोनों मुखोंके निकट रहते हैं। . युद्ध शेष न होने पर आगामी दिनको अपेक्षा कर तीस वत्सरसे पहले कन्ध मुद्राका व्यवहार जानते | महा उत्कण्डासे रात बिताते हैं। प्रथम दिन प्रारम्भ नथे। फिर व्यवसाय-वाणिज्य क्या इनमें अधिक हो पूरा न पड़ने पर हितोय दिन प्रारम्भ होने से रहा! मुद्राके व्यवहारको सर्व प्रथम पन्या कौडी | पहले युद्धक्षेत्रमें एक रतात वस्त्र फैला उभय दलोंके भी चलती न थी। इनके क्रय-विक्रयका कार्य विनि- | योहावों को उत्तेजित करते हैं। दोनों दलोंके पीछे मयसे निर्वाह होते रहा। मेष वा गवादि पर देनेसे अपने अपने पक्षके वृद्ध एवं स्त्रीकन्यादि अस्त्र-शस्त्र सीपधिक परिमाणके मूल्यका पादान-प्रदान चलता तथा खाद्यादि ले प्रस्तुत हो जाते हैं। युद्धकाल में था। अन्यान्य स्खलोंमें चावस दाल प्रभृति के विनि अस्त्रादि टटने या कम पड़नेसे अथवा योहावोंको मयसे मूख्य लिया-दिया जाते रहा। इस प्रकारके वृष्णादि नगर्नसे वह तत्क्षणात् उपकरणसामग्रो विनिमयका हिसाब बहुत टेढ़ा है। पहुंचाते हैं। युद्दमें प्रथम इस होनेवाले व्यक्तिके युद्ध में इनका साहस पपरिमोम रहता है। सम- | रतमें पाग्रह सहकारसे उभयपक्षीय वीर अपना-अपना राणा में अपने अपने सरदारके निकट यह जिसप्रकार कुठार डुबो लेते हैं। फिर जो व्यक्ति युद्ध में प्रथम वाध्य पाते, उससे इनकी विश्वस्तताका चड़ान्त परि किसोको मार लेता, वह हतयोहाका दक्षिण इस्त चय पाते हैं। काट पति शीघ्र अपने दलके पोछे जा पुरोहितको कन्ध उच्चतामें हिन्दुवों-जैसे होते हैं। सुगठित | देता है। पुरोहित इस हस्तको युद्ध-देवताका प्रति शरीर, दृढ़ मांसपेशो, द्रुतपादक्षेप, विस्त त ललाट | प्रियवस्तु बताते हैं। केवल प्रथम हत योहाका हो न हों; पौर पूर्णायत पोष्ठाधर देखनेसे यह दृढ़प्रतिन्न, वलिष्ठ युद्ध में मारे जानेवाले प्रत्येक व्यक्तिका दक्षिण हस्त एवं बुद्धिमान् समझ पड़ते हैं। इनकी कथा भौ हन्ता काट अपने दलके पुरोहितको प्रदान करता मिष्ट और सरस होती है। सुतरां इनके साथ रहने है। इमी प्रकार जितने दिन युद्ध चलता, उतने दिन से अधिक प्रामोद पाता है। युद्दमें कन्ध अत्यन्त प्रति सन्ध्याकालको दोनों दलाँके पीछे हत वीरॉके भयानक बन जाते हैं। इनके युह वा उत्सबको दक्षिण हस्ताका ढेर लगता है। इनके युद्धास्त्रों में वेशभूषा एक ही प्रकार रहती है। लम्बे बाल समेट वक्रान कपाप, धनुर्वाष पोर कुठार व्यवद्धत होता मस्तकके दक्षिण पाख पलकको भांति झोटा बांधते है। कन्ध किसी प्रकारको ढालसे लड़ना अच्छा नहीं हैं। फिर उसपर पक्षोके पालकका मुकुट पहना | समझते। चापसे वाण निकल और भूमि छते जव- जाता है। युद्धके पूर्व सरदार कई द्रुतगामी जुलाई मुख उठ दृष्टिरेखाके नीचे लक्ष्य मारने पर शिक्षाको हाथमें वापदे एक ग्रामसे अपर ग्राम संवाद पहुं- श्रेष्ठ मान प्रशंसा को जाता है। युद्धमें जय पा कभी चानको भेजते हैं। दूतके हाथ वाण देख कन्ध पना कोई कन्धवीर पपने कौशल वा बलकी प्रशंसा न तो यास बुधका संवाद समझ लेते हैं। युद्ध में लगनेसे करता पोर न सुनता है। सब सोग दृढ़ रूपये पारी उभय दस जयसाभको पाथासे पृथिवी देवताके विश्वास रखते-युद्धदेवताको छपासे जयपा है। निकट एक-एक मानसिक मरवलि चढ़ाते हैं। ___ सभ्य जातिके सोभजनक इतने सद्गुण रहते भी पतक्रिया मुहबा भी एक देवता रहता है। उसके कन्धों में पानदोष बहुत प्रबन। महुवेको घराव निकट भी मानता करते-जय मिलनेसे तत्चयात् इनके प्रति उत्सव, योर परिमापसे चलती है। पोलसमें पाप मासामोरपी वसिमको विकास रहता-मय भिमा कोरे
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७४६
दिखावट