पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७४७

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कन्वजाति उतसव और व्यक्तिगत संस्कार पूर नहीं पड़ता।। प्रधान समझे जाते। उनके पीछे सूर्य, चन्द्र इनकी स्त्रियां शराब नहीं पोतों, केवल किसी-किसी एवं सीमा पोर नदो, वन, पुष्वरी, निझर तथा उत्सबमें अनुरोधवश जिहा द्वारा स्पर्श कर देती है। हृष्टिके देवता गयनीय है। फिर चाखेट, वसन्तरोग स्त्रियां मद्यपान करनेसे समाजमें निन्दनीय हो जाती पौर जनके देवता मी पूजना पड़ते है। हैं। महुवा फुलनेसे कन्ध बड़ी दुर्दशामें पाते है। हितीय श्रेणीमें ग्यारह देवता है-* पितावन्दी नूतन मधुका नतन मद्य पो गली-कूचे पौर मैदान में (आदिपिढदेव ), २ बांदरी पेन. ३ बाहमन पेनू दसके दल पुरुष प्रचेतन पड़े रहते है। फिर स्त्रियां (ब्राशय), ४ बहमुखी पेन, ५ डुमरी पेन. ६ मोंगा ग्रहके संस्कारका कार्य निबटा इनको शव षा किया | का शश्चषा किया | पेन, ७ दमोसिंघानी, ८ पतारघर, ८ पिंजाई, करती हैं। १. कङ्गाली और ११ जखौंदा सोंदा। पितावब्दो कन्धोंके चरित्र में एक ओर ऐकान्तिको स्वाधीनता- को एकप्रकार प्रतिमा बनती है। हिन्दवों विस्व, "प्रियता, सरदारोंको वाध्यता, अटल प्रतिघ्रा, साहस. वट वा अन्वयके नोचे एकखरा प्रस्ताको मिन्दर आतिथ्य, प्रकृतिम बन्धुता तथा परिश्रमशीलता गुण चन्दनादि लगा शिव, षष्ठो, धर्म प्रतिको प्रतिमा और दूसरी पोर मद्यपान एवं प्रतिहिंसा-परायणता माननेकी भांति यह भी बनके मय किसो वृहत् दोष देख मुग्ध होना पड़ता है। दो-एक चट इचके नोचे एकखण्ड प्रस्तर हरिद्रा समा रखते भोर विभागों को छोड़ कहीं चौर्य वा दस्युता-जैसा दूसरा | पादिपिटेवको प्रतिमा कलना करते हैं। वनवासी कोई अपराध नहीं। फिर सन्देह रहता-व्यभिचारके लोगोंके कथनानुसार यह प्रतिमा खापित होने के अभियोग व्यतीत समस्त कन्ध जातिमें कभी किसीके स्थानपर पहले उक्त देवता कभी कमा पाविभूत और नाम कहीं क्या दूसरा कोई पाप लगता है! | भूमध्य अन्तहित होते थे। बांदरी पेनको भी प्रतिमा ___धर्म और देवता-कधोंके यावतोय धर्मकर्ममें वनि है। किन्तु कोई निर्णय कर न सका-उसमें क्या हो प्रधान है। इनके देवतावोंको संख्या भी अधिक लमा है। काष्ठ, प्रस्तर वा लोहादि कोई धातु म है। जल, स्थल, अन्तरीक्ष एवं पाताल सकल स्थानों मूर्तिमें मिलना कठिन है। डूंगरो पेन को पूजा में देवतावोंका वास है। फिर सभी देवताबों वसरमें केवल एकवार होती है। प्रत्येक वंशक पर जीववलि चढ़ता है। इनके देवतावों को तीन सोम मिल-जुन किसी उच्च पर्वतपर चढ़ते और श्रेणी हैं। प्रथम श्रेणी में १४ देवता होते हैं- उता देवताके उद्देश्यसे वलि दे प्रार्थना करते हैं- १ बैरापन (प्रथिवीदेवता), २ खोहान (लौहदेवता पिपुरुषांक जीवन वितानेको मांति हमारे सन्तान भी वा याटेवता). ३ मादलपन (ग्रामाधिष्ठाता), पपना जीवन निर्वाह कर सके। मोंगा पेन संहार- ४ बेपन्ना पेन ( सूर्य ) एवं दानज पेन (चन्द्र), ५ सांदे देवता है। व्याघ्र उनको मूर्ति है। पृथियो के मन पेन (सौमा-देवता), जगा पेनू (वसन्तरोगके वह खोह रूपसे रहते हैं। हमें सौर प्रख देवता, शीतला), ७ सोरुपैन (पर्वतदेवता), ८ जोरो- चलाने और व्यापक मुखमें पड़ अनेक मर जानेसे पेन (नदीदेवता), गस्मा पेनू (वनदेवता), १. सुण्डा- हो कन्धोंने सम्भवतः दोनांको संहार-देवताको मूर्ति पेन (पुष्करिणोदेवता), ११ सगू या सिदरोज पेन ठहराया है। मोंगा पेनकी भो प्रतिमूर्ति होतो (निझरदेवता), १२ पिदन पेनू (दृष्टिदेवता ), है। कचोंके विश्वासानुसार जिन चोंके नोचे पिसाग पेन (पाखेटदेवता) और १४ गारोपेन उनको प्रतिष्ठा करते, वह पल दिन बाद ही (नादेवता)। मरते हैं। फिर उनकी पूजामें नियमित रूप नाती कर्मों के माम्बविधातानिपरोहित मोबात नहोंजोये। इससे बोग किन बेगन, बोडापित और नादम्पेन सर्वोपचाचार बार उनको पूजा अबसर होने पिके