पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७४८

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D8c कन्धजाति हैं। उनके साथ सादृश्य देख अनेक कन्ध कानी । था। मानव पापाश्रित हो अत्यन्त विषम अवस्थामें देवीको पूजा करने लगे हैं। इनके जातीय देवता पड़ा। पृथिवीने प्रचुर शस्य उत्पन्न करना रोक अधिकांश पथिवी वा पातालमें रहते हैं। इससे दिया। पहले मनुष्य मरते न थे। वह आकाश पुरोहित भूमिमें स्फोटन पड़ते ही यजमानोंको देखा पक्षीकी भांति उड़ और जलपर चल सकते रहे। कहते हैं-इसी स्फोटनसे देवताका पाविर्भाव और किन्तु पौछे वह चमता चल बसी। सब लोग मृत्य के तिरोभाव हुवा है। एकमात्र बेरा पेन या पृथिवी- वशीभूत हो गये । यह समस्त घटना पूजाके दिन सब लोग एकत्र होते हैं। कारण उनको | तारादेवी और बेरा पेनूके मध्य विवाद उठा था। पूजा वलि चढ़ाना ही पड़ता है। कन्धोंमें वह | उसो विवादके कारण मनुष्यों में भी दोनों देवता- प्रधान देवता, स्वभावोत्पादक वीर्य, सर्वमङ्गलालय वोंके उपासक दो दल बने। बेरा पेनके उपासक पौर समस्त भुवनके स्रष्टा हैं। उनकी अकेली स्त्रीका कहते,-"बेरा पेनने तारा देवीको शाप दिया है- नाम तारा देवी है। बेरा पेन निरीह देवता हैं। स्त्रियां अति कष्टसे सन्तान धारण और प्रसव करेंगी।" वह कभी किसोका कोई अपकार नहीं करते। किन्तु ताराके उपासक बताते-बेरा पेनमें तारा देवीको तारा देवी बिलकुल उनसे विपरीत पड़ती हैं। कन्धोंके हरानको चमता नहौं। तारादेवीको उपासनासे कथनानुसार तारा देवीके कारण मनुष्य समाजमें रिझा सकने पर मनुष्यका दुर्भाग्य दूर हो जाता है। यावतीय दोष वा पाप घुसे हैं। सुतरां वही सर्वाग्र पूज्य हैं। कन्धोंके मतमें सृष्टिका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ ____ बेरा पेन और तारा देवीका यह विवाद बहुत है-किसी समय बेरा पेनने अपनी स्त्रीको अधिक दिम चला न था। दोनों के मिलनेसे छह पुत्र उत्पन्न तिमती देखा न था। सुतरां उन्होंने भी उनसे हुये। वह भी छह देवता समझे जाते हैं-(१) विरत की मममें ठहरा लिया,- पृथिवीको उद्भिज्ज पिदज पेन-वृष्टि वा जल-देवता। उनको कपासे शालिनी बना जीवको सृष्टि करेंगे। यह जीव हमें क्षेत्रमें वृष्टि होती है। (२) बुरभी पेन-वसन्त ऋतु- सृष्टिकर्ता और आहारदाता समझ भतिसे पूजेंगे। देवता। वह वृक्षों नूतन पत्र लाते और रस पहुंचाते ऐसा होनेपर हमारी पनी भक्तिभावमें जो त्रुटि हैं। (३) पिनोबी पेन-लाभ वा वृद्धि देवता। करतीं, वह भी जाते रहेगी। इसके पीछे हो, (४) कलम्ब या पिलामू पेन-पाखेट-देवता। (१) पृथिवीमें प्रथम उदि उपना था। फिर जीवकुल लोहा ऐन-लौह वा युद्ध-देवता। (६) सूदी या निकल पड़ा। मनुष्य निष्याप और निर्मल रहे।। सांदे पेन-सीमा-देवता। बेरापनके डौंगा पेन नामक ' इसीसे उनके साथ बेरा पेनका साक्षात्कार एवं अपर पुत्र भी हैं। वह हिन्दुवोंके यमकी भांति मृत क्थनोपकथन अवाध चलता और पाहारके लिये व्यक्तिका पाप-पुण्य देखते हैं। परिचम उठाना पड़ता न था। पृथिवी विना चेष्टा एतव्यतीत पर श्रेणौके भी देवता होते हैं। पौर क्वषिकार्य स्वयं पपर्याप्त शस्य उत्पन्न करते वह मायायुक्त आदि मनुष्य हैं। गृह, वन, नदी, रहीं। सर्वत्र मिरापद और शान्ति थी। मनुष्य उस पर्वत, गुहा और उद्यानादिके अधिष्ठातरूपसे उनकी समय मन फिरते, किन्तु अपना अनाहतत्व समझते पूजा होती है। न रहे। शेषको तारा देवी पनका सुख देख न सकौं। __ बेरा और तारा देवीका वासस्थान स्वर्ग है। डिङ्गा सहीने ममुबके मन में पाप दौड़ा दिया था। जो उस समुद्र पार किसो पर्वतपर रहते हैं। कन्धोंके- सम्य तारा देवीके प्रलोभनसे स्वतन्त्र र संके, वही मतानुसार उसी पर्वतसे सूर्योदय होता है। फिर एकप्रकार हितीय श्रेणीके देवता गिने गये। फिर मरनेपर जीव उसी समुद्र वैतरिणीको पार करता है। में यापासवापर कर्वत्व करनेका भार भी मिला | कम उसे गपखसी वा लम्कपर्वत कहते हैं। अन्याय