०५८ कपटेश्वर-कपर्दक कोढ़ी कोड़ा। यह तम्बाकूके पोदेको खराब | कपर्द (म० पु.) पर्व पूरण भावे क्विप वलोप: इति करती है। पर पूर्ति, कस्य गङ्गाजलस्य परा पूरणेन दापयति कपटेश्वर-काश्मीरस्थ जनपदविशेष । इस स्थान में शुद्दति, क-पर-दैप-क । रात् लोपः । पा हा४।२१। १शिव- पापसूदन जाग रहते थे। राजतरङ्गिणी-वणित यही जटा। २ कौडो। कपर्दक देखो। पापसूदमतीर्थ है। (राजतरनियो ३१॥३२) यह स्थान | कपदक (सं० पु०) कपद-कन् । १ वराटक, कौडी। कोटहार परगनेके अन्तर्गत इसन्नापाबादसे दूर नहों। इसे हिन्दी तथा गुजरातोमें कौड़ी, बंगलामें कडि, कपटेश्वरी (स'० स्त्री०) कमिव शुभ्धः पट: वसनं तामिलमें कपदि, तेलङ्ग में गवल्ल, सिंहलोमें पिङ्गो, तत्तव्यं फलं इष्टे, कपट-ईश-कण-डोए। १ खेत मलयमें वेया, फारसीमें खरमोहरा, अरबौमें बदा, कण्टकारी, सफेद कटाई। २ इस्वबहती, छोटी अंगरेजी में कौरी (Cowrie ), फरासीसी में कोरिस वा कटाई। . बोगस (Coris, Cauris or Bouges), पोलन्दाजीमें कपड़कोट (हिं० पु०) शिविर, खीमा, डेरा, कपड़ेका कौरिस, स्लाङ्गेनडुजेस (Kauris, Slaugenhoofdges), किला। रोमकमें कोरी वा पोर्सेलेङ ( Cori. Porcellene ) कपड़ गन्ध (हिं. स्त्री०) वस्त्रका गन्ध, कपड़ेके | जर्मनमें कौरिस ( Kauris ), स्पेनिशमें सिके वा जलनेको बदबू। बुसिमोस (Siqueyes, Bucios ), पोतुगीजमें कपड़छान (हिं० पु०) वस्त्रसे किसी चणको छनाई, | बुसिमोस वा जिम्खोस (Zimbos ), देनिश, सुश्स कपड़ेसे पिसी बुकनी छानने का काम । और रूसीमें कोरिस ( Kauris) कहते हैं। कपड़हार (हिं० पु.) वस्त्र का भाण्डार, कपड़ा | ____कपर्दक सामुद्रिका जीव है। यह पृथिवीके नाना रखने की जगह। . स्थानोंमें नानाप्रकार देख पड़ता है। किन्तु सकल कपड़धलि (हिं. स्त्री०') वस्त्र विशेष, एक कपड़ा। हो एक जातीय हैं। कौड़ीका वैज्ञानिक अंगरेजी यह रेशमने बनती और बारीक रहती है। इसे नाम साइग्रिडी (Cyprcede ) है। करेब भी कहते हैं। ____ यह जोव एकसङ्गी अर्थात् अपने ही सङ्गमसे कपड़मिट्टी (हिं. स्त्रो०) कपड़ौटी, किसी द्रव्यको सन्तानात्पादन करनेवाले हैं। इनमें स्त्रीपुरुषको कपड़े और गौलो मट्टीमें लपेट फूकने का काम। भांति कोई विभिन्नता नहीं होती। काड़ियोंका कपड़विदार (हिं० पु०) १दरजी, कपड़े को काटने मस्था स्वतन्त्र भावसे बाहर रहता है। उसके साथ वाला। २ रफ गर, फटे कपड़ेको धागेसे भर | दोनों पार्यो पर दो कोणाकार रेखायुक्त स्थान होते देनेवाला। .. हैं। वह स्पर्श और घ्राणेन्द्रियका कार्य करते हैं। कपड़ा (हिं. पु.) १ वस्त्र, पट, आच्छादन । यह | फिर उन्होंके बाहर दोनों पार्यो पर दो अति क्षुद्र चक्षु रूई,जन, रेशम या सनके धागेसे बनता है। २ पोशाक, रहते हैं। पहननेका वस्त्र । कपर्टकको तीन अवस्था होतो हैं। प्रथम वा कपडोटी, कपडमिट्टी देखो। वाल्यावस्था में वहिरावरण स्वच्छ, पिङ्गलवण और कपन (सं० पु.) कप- स्यु । १ कम्पन, कंपकंपी। अतिममृण देख पड़ता है। प्रावरणपर तीन २ घुणादि कीट, घुन वगैरह कोड़ा। . लम्बी रेखायें खिची रहती हैं। द्वितीय वा कपना (वै० स्त्री०) कोट, कोड़ा । यौवनावस्थामें यह कितना हो स्वाभाविक आकार कपरिया (हिं. पु.) नौचजातिविशेष, एक कमोना | पाता है। उसी समय कपदकका वहिरोष्ठ मोटा कौम। कपाली देखो। पड़ता, किन्तु वहिरावरण फिर भी वैसा कठिन नहीं कपरोटी, कपकमि देखो। लगता। बतोय वा पूर्णावस्थामें इसका पतिरावरण .
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७५८
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