पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७५९

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. कपर्दक-कपटैकरस ५९ 'अत्यन्त कठिन हो जाता है। पावरसपर छोटे “वराटको दशकदर्य बत् मा काकियो ताब पचवतसः । छोटे विन्टू देखने में पाते हैं। श्रेषोके अनुसार वर्ण ते षोड़श ट्रम्य रहावगम्यो ट्रम्य स्तया षोडशभित्र निवः।" भी परिस्फुट होता है। (बोलावती) .. राजनिघण्ट के मतसे कपर्दक पांच प्रकारका है। २० कौड़ीमें । काकिणी. ४ काकिणीमें १ पण, १-सोनेकी भांति चमकनेवाला कपर्दक सिही १६ पणमें १ ट्रम्य और १६ ट्रम्य में एक निष्क गनते हैं। कहाता है। २-धमवर्ण कपटैक का नाम व्यावी है। रघुनन्दनके प्रायश्चित्ततत्व में भो ८० कोडीका ३-उपरिभागमें पौत पौर निम्रभागमें खेतवर्ण १ पण कहा है- कपर्दक मृगी है। ४–केवल खेतवर्ण कपर्दक हमी "अयोतिमिराटकैः पय इत्यभिधीयते । कहा जाता है। ५-अधिक बड़े न होनेवाले तैः षोड़शेः पुराणं स्वादनः सप्तभिस्त ने " कपदकको विदण्डा कहते हैं। पहले दक्षिणामें पदक दिया जाता था। शुद्धि- पाशात्य तत्त्वविदोंके मतसे कपर्दक तीन प्रधान तत्वमें लिखा है- "हतमनोवियं दानं इतो यशस्वदक्षियः । श्रेणियों में विभक्त है। प्रथम-जिस श्रेणीके कपर्दकका तस्मात् पर्व काकियों वा फलं पुचमवापि वा। वहिरावरण अति महण और मेरुदण्ड (Columella) प्रदयात् दक्षिणां वज्ञ तथा स समलो भवेत् ।" अत्यन्त विस्तृत रहता, उसका नाम साइप्रिया पहले अफरीकाम भी कौड़ी मुद्रारूपसे चलती ( Cyprea) पड़ता है। इस श्रेणौमें अनेकप्रकार थी। अाजकल कौडी क्रमशः सस्ती पड़ते जातो है। कपर्दक होते हैं। इनमें १ गोल कपर्द क (Cyprea १८४० ई०को एक रुपयेमें २४००से अधिक कोड़ियां mappa ), २ गन्धमुखी (C. Talpa), ३ भनक मिलती न थौं। किन्तु आजकल एक रुपये में प्रायः (C. Cicercula), ४ खनक (C. Childreni) प्रभृति ६००० कोड़ियां आती हैं। साइप्रियाक हो भन्तर्गत हैं। । हतीय श्रेणोके कपदकका नाम नेरिया (Naria) गोल कपर्दक, भारत-महासागरमें मिलता है। है। इस श्रेणीको कौड़ीका शिरोदण्ड सूक्ष्म, दन्त इसमें कोई गुलाबी, कोई काला पौर कोई नारखो तीक्ष्ण और वहिरावरण अति चिक्कण होता है। रङ्गका होता है। मरिचशहरमें एकप्रकार मृगको . फिर इस श्रेणोंमें नाना पाकारके कपदक देख पड़ते भांति वोविशिष्ट कपर्दक देख पड़ता, जो पति सुन्दर हैं। इनमें अण्ड जैसी कौड़ी ही ज्यादा बड़ो होतो लगता है। गन्धमुखो कपदकका गठन कितना ही है। मुलाकी भांति छोटो छोटो कोड़ी भी इसी छकंदरकी भांति रहता है। मध्यके दन्त कटे या श्रेणोके अन्तर्गत है। काले होते हैं। चीनदेश और पाट्रियातिक सागरमें लम्बी लम्बी द्वितीय श्रेणोके कपदकको पारािसया (Aricia)| कौडियां होती हैं। यहां लोग देखने पर उन्हें करते हैं। इस देश में जो कौड़ी बाज़ार या दुकान्पर कौडी कभी कह नहीं सकते। उक्त कपर्दक सपेरेको द्रव्यादिके मूल्यस्वरूपसे चलती, वह इसो श्रेणोके बांसुरी-जैसा लगता है। अन्तर्गत पड़ती है। अंगरेजी वैज्ञानिक नाम वैद्यकके मतसे कपर्दक कटु, तिल, उप और साइप्रिया मोनेटा (Cypraa moneta) है। यह कर्णमूल, व्रण, गुल्म, शूल एवं नेत्रदोषनाशक है। कपर्टक प्रति पूर्वकालसे इस देशमें सामान्य मुद्राके (राजनियर) २ महादेवको जटा। बदले चल रहा है। २० गण्डा कौड़ीका एक पैसा होता है। इस समयको अपेक्षा पहले कौड़ीका बड़ा कपदेकरस (स.पु. ) रक्तपित्त पधिकारका एक पादर और अधिक मूल्य था। ... रस। कार्यास-पुष्पके रससे एक दिन मदित-मूछित २ तोख पारद कौड़ोमें भर सुखको बन्द कर दे। भास्कराचार्य ने लिखा है-