पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७६०

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कपर्दा-कपाल फिर उस कौडीको अन्धमूषायन्त्रमें रख पुटपाक “यदा रौति कपाः वै तस्य वंशचयो भवेत्।" (म प०) बनाना चाहिये। पाक शीतल होनेपर कौड़ी जिसके गृहके कपाट खड़खड़ाया करते, उसके निकाल ४ तोले मरिचके साथ एकत्र पीसनेसे यह वंशके लोग मरते हैं। रस तैयार होता है। इसको एक रत्ती घसके साथ | कपाटन (स० पु.) कपाटं हन्ति, कपाट-इन- चाटनेसे रक्तपित्त रोग मिटता है। (रसरबाकर) टक्। शक्ती इन्ति कपाटयोः। पा शरा५४। चौर, चोर,. कपर्दा (सं• स्त्री०) वराटक, कौड़ी। डाकू, किवाड़ तोड़ डालनेवाला। कपर्दि (सं० पु.) कपर्दक, कौड़ी। कपाटबद (सं० पु०) छन्दोविशेष, एक काव्य। यह कपदिका (सं. स्त्री०) कपर्दक-टाप अतत्वम्। चित्रकाव्यके अन्तर्गत है। इसके अक्षर नियमानुसार वराटिका, कौड़ी। जोड़ जोड़कर लिखने पर कपाटका चित्र उतर ___"मिवाच्यभिवतां यान्ति यस्य नस्य : कपर्दिकाः।" (पञ्चतम्) | पाता है। कपर्दिगिरि-पच्चाबके अन्तर्गत एक स्थान। इसका कपाटमङ्गल (सं.ली.) कपाट बन्द करनेकी वर्तमान नाम शाहबाज़गड़ी है। यहां बौनसम्राट क्रिया, किवाड़ लगाने का काम। वल्लभकुलवाले इस अशोकका अनुशासन-पत्र मिला है। शब्दको सम्मानार्थ प्रयोग करते हैं। कपर्दिनी (सं० स्त्रो०) कपर्दिन-डीए। जटाधारिणी, कपाटशयन (सं• ली.) उत्तानशयन, चित लेटनेको दुर्गा, भवानी। हालत। "मग्णालव्यालवलया वैयौवन्धकपर्दिनी। कपाटसन्धि (स० पु. ) कपाटं सन्धीयते अन, कपाट- धारानुकारिणी पातु लीलया पार्वती जगत्॥" ( साहित्यदर्पय) | सम्-धा-कि। १ उभय कपाटोंका मिलित स्थान.. कपर्दिस्वामी (सं. पु.) आपस्तम्बीय शुल्बसूत्रके | दोनों किवाडोंका जोड़। २ गुणनका एक नियम, भाथकार। जरबका कोई कायदा। इसमें गुण्यको गुणक संख्या कपर्दी (स.पु.) कपर्दी जटाजुटोऽस्त्यस्य, कदर्पः | नीचे किसीप्रकार रखते हैं। इनि। १ शिव। (वि.) २ जटायुक्ता । कपाटसन्धिक (सं० पु०) सुश्रुतोक्त कर्णरोगविशेष, कपर्दीश (सं.पु.) काशीस्थ शिवलिङ्गविशेष। कानकी एक बीमारी। कर्यरोग देखो। २ पट्टविशेष, "कालेश्वरकपर्दीशी चरणावतिनिर्मलो।" (काशैख० ३३ अ०) | किसी किस्मको पट्टी। कपल (वै. लो.) १ अश, आधा हिस्सा। कपाटिका (स स्त्री.) कपाट खार्थे कन्-टाप् प्रत २ वर्धमानका एक ग्राम। (भ. ब्रह्मसर १३९) इत्वम्। कपाट, किवाड़ । कपसा (हिं. स्त्री.) १ कपिश, काबिस, एक चिकनी कपाटिनी (सं० स्त्रो०) चौड़ा नाम देवदारु भेद,. मट्टी। इससे कुम्हार बर्तन रंगते हैं। २ लेई, गारा। एक खुशबूदार लकड़ी या अतर। कपसेठा (स.पु.) कार्पासका शुष्कवृक्ष, कपासका कपाटोघाटन (स'• लो०) कपाटस्य उद्घाटनम्, सूखा पड़। यह ईधनमें जलता है। .. ६-तत्। १ कपाटोका उद्घाटन, किवाड़ खोलनेका कपसेठी (स्त्री०) कपसेठा देखो। काम। २ हारकुञ्चिका, दरवाजे की चाबी। कपाट (स.पु.) कं वायु मस्तकं वा पाटयति, कपार, कपाल देखो। क-पट-विच्-अण्। हारका आवरणकारी काष्ठखण्ड कपाल (सं• पु. ली.) कं मस्तकं पालयति, क- विशेष, किवाड़। इसका संस्कतपर्याय-अरर, कवाट, पालि-प्रण कपि-कालन् वा। तमिविशिविडिमृचिकुलिकर्षि- कपाटी, कवाटी, अररी, अररि, हारकण्टक और पलिपश्चिभ्यः कालन्। सम् १।११। १ मस्तकका अस्थि, आसार है। विश्वकर्मप्रकाय नामक वास्तुशास्त्र में खोपड़ी को हड्डी। कहाल देखो। २ ललाटदेश, मत्था । | ३ पदृष्ट, भाग्य, किस्मत । ४ कपर, खप्पर। ,