दुलोरा - 'रावणको खायो' गुहाके चारो ओर प्रदक्षिणा | निर्जन पार्वत्य प्रदेश में नाना देवदेवी मूतियों के देखने- है। मन्दिरके मध्य महिषमर्दिनी, हरपार्वती, शिव- से हिन्दूमात्रके हृदयमें भक्तिका सञ्चार हो जाता है। 'ताण्डव प्रभृति सुन्दर सुन्दर देवोंकी मूर्तियां शोभित | 'दश अवतार-गुहा' और भी चमत्कारिणी है। हैं। इसमें किसी स्थानपर दशस्कन्ध रावणके कैलास | दशावतार और उनके लौलाचित्रके सिवा गणपति, उठानेका दृश्य है; तो कहीं एक हस्तमें असि और दूसरे पार्वती, सूर्य, अर्धनारीश्वर प्रभृति अनेक देवमूर्तियां हस्तमें पात्र लिये करिचर्मसे आवृत भयङ्कर भैरवमूर्ति यहां बनो हैं। इस मन्दिर में अस्पष्ट शिलालेख विद्य- रत्नासुरका विनाश कर रही है। कहों यदि ऐरावतपर मान है। अनुमानसे मन्दिरको प्रतिष्ठाका विवरण इन्द्राणी विराजमान है तो कहीं शूकरपर वाराही बेठी उक्त प्रस्तरखण्डपर लिखा गया होगा। परन्तु काल है। कहीं यदि गरुडपर कौमारो शोभित हैं तो कहीं | पाकर वह अस्पष्ट हो गया है। खेद है कि कोटि- वृषभपर माहेश्वरी मूर्ति स्थित है और कहीं यदि कोटि मुद्रा व्ययसे इस अमानुषी कोतिको प्रतिष्ठित हंसपर सरस्वती बैठी हैं, तो कहीं निर्जनस्थानमें | करनेवालॉक नामका परिचय देनेवाला निदर्शन भो बैठकर शङ्कर डमरू बजा रहे हैं। इस प्रकार इस! आज कोई हमें नहीं मिलता। TELESED कैलास। इलोरेका कैलास वा रङ्गमहल भारतवर्षके मध्य | आगरेके ताजमहलपर लट्ट हो जाते हैं, उन्हें हम गुहामन्दिर निर्माणको पराकाष्ठा दिखाता है। पव त | एकबार उक्त कैलास देख आनेका आग्रह करते हैं। खोदकर ऐसे सुबहादेवालय अति अल्प हो बने हैं। इसके देखनेसे हृदय में धर्म, भक्ति एवं शान्तिका उदय कैलास देखनेसे समझ पड़ता है कि, प्राचीन भारतीय | होगा। प्राचीन हिन्दू-राजगणको असाधारण देवभक्ति, शिल्पी, भास्कर और स्थपतिगणों ने किस प्रकार अपनी स्वधर्मानुराग, निस्वार्थपरोपकारिता और आलोकिक असाधारण क्षमतासे कैलासका परिचय दिया है। इस कीर्ति देख परिटप्ति हो जाती है। निर्जन-वनराजि-वेष्टित कैलासभवन में पहुंचनेसे देवादि- पाश्चात्य पुरातत्त्ववित् कैलासमन्दिरको राष्ट्र- देव महादेवके कैलासमें पहुंचने-जैसा आनन्द प्राता | कूटाधिपति दन्तिदुर्गकर्तक ई० ७म शतकमें निर्मित है। जो लोग मिशरके पिरामिडकी बात सुनकर बतलाते हैं। किन्तु इस मन्दिरका उसको अपेक्षा चकराते हैं, चीना प्राचौरको प्रशंसा सुनाते हैं और पूर्व कालमें निर्माण होना भी सम्भव है। दन्ति-
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