दूलोरा-इल्म ७६ दुर्गने इसे पुनः सज्जित और संस्कृत किया होगा।। वस्तु हैं। इसकी उत्पत्तिके विषयमें अनेक तरहका कैलासके मध्य हमारी प्रधान देवदेवियोंकी तथा वादप्रतिवाद सुनाई पड़ता है,- . रामायण एवं महाभारतके वीरोंकी मूर्तियां और ____ कोई कहते हैं, कि बुधपत्नी इलाके नामानुसार देवलीलायें खुदी हैं। चित्रविचित्र चित्रित रहनेसे इस नगरका नाम इलोरा हुवा है। यहां भुवनाश्व, इसे रङ्गमहल भी कहते हैं। दण्डक, इन्द्रद्युम्न, दशरथ, राम प्रभृति राजा राजत्व सिवा कैलासके रामेश्वर और नीलकण्ठ प्रभृति करते थे। गुहायें भी दर्शनीय हैं। इन गुहावों में भी नाना प्रकार मुसलमान् इसे राजा इलकटक स्थापित बताते खोदायोका काम और देवदेवियों को मूर्तियां हैं। पूर्वकालमें उन्होंने पर्वत खोदकर ये समस्त मन्दिर इलोरा-पर्वतको उत्तरभुजके प्रान्त मन्दिरका नाम बनवाये थे। आजसे नौ सौ वर्ष पहले ये जीवित थे। पाखनाथ है। यह भूमिसे ४८० हस्त ऊध्र्व, अप्रा इधर ब्राह्मण कहते हैं कि १८४४ वर्ष पहले एलिच- चीन और इष्टक-निर्मित है। ई०के १८वें शताब्दमें पुरमें इलुनामक एक राजा राज्य करते थे। देव- औरङ्गाबादस्थ किसी जैन सेठने यह मन्दिर बन टुर्विपाकसे उनके सर्वशरीरमें कीड़े पड़ गये। उन्होंने वाया था। इसमें पार्श्वनाथ भगवान्की ६॥ हाथ | इलोराङ्गस्थ शिवालय-सरोवर नामक तीर्थ में नान ज'चो दिगम्बर मूर्ति ध्यान लगाये विराजमान है। करनेकी इच्छासे यात्रा की थी। यह तीर्थ पहले साठ गुजरातके जैन भाद्रमासमें शुक्ल चतुर्दशीको इलोरा | धनुष परिमित था, किन्तु यमको प्रार्थनासे विष्णुने श्रा कर इस मूर्ति की पूजा करते हैं। उस समय | पीछे गोष्पदतुल्य खर्व बना दिया। इलु राजाने यहां इसका अभिषेककार्य एक मन तसे किया जाता है। पहुंचकर और तीर्थजलमें वस्त्र भिगोकर अपना क्षत पाखनाथके मन्दिरसे दक्षिण इन्द्रसभा है। यह तीन शरीर धो डाला। इससे उनको व्याधि चली गई गुहाओमें विभक्त है। पहली ४० हस्त दोघं और २० थी। इसलिये कृतज्ञता चिरस्मरणीय रखने के अभि- हस्त विस्तृत है। इसमें १६ खम्भा और १२ कड़ी हैं। प्रायसे इलोरेका पर्वत उन्होंने खुदाया और गुहाओं में प्राचौरके चारो ओर जैन देवदेवियोंकी मूर्तियां अपित | नानाप्रकारको देवमूर्तियां प्रतिष्ठित करायौं ।' हैं। रचनाचातुर्य प्रशंसनीय है। दूसरी जगन्नाथ-सभा इल्प (सं० पु०) स्वर्गस्थ आश्चर्य वृक्ष, बिहिश्त का है। इसके मध्यमें प्रकाण्ड गर्भग्रह बना है। पार्श्वनाथ, अजीब दरख त। महावीरप्रभृति जैन तीर्थङ्करों और अम्बिका प्रभृति जैन इल्म (अ० पु०)विद्या, जानकारी। २ विज्ञान, हिक- देवियोंको मूर्तियां विद्यमान हैं। तीसरी गुहा रण मत । ३ मन्त्र, जादू । अरबीमें उपदेश-विद्याको इल्म- छोड़जीका मन्दिर है। इसके गर्भगृह एवं प्राचीरमें अखलाक, साहित्यको इल्म-अदब, जलविद्याको इल्म- सर्वत्र तीर्थङ्कर और गणधर प्रभृतिको मूर्तियां उल्लि- पाब, शब्दविद्याको इल्म-आवाज, ब्रह्मविद्याको इल्म- खित हैं। इन समस्त मूर्तियोंको लोग आजकल रण इलाही, छन्दःशास्त्रको इल्म-उरूज, सामुद्रिकको छोडजी कहते हैं। इसके सामने बरामदेमें एक पुरुष इल्म कयाफा, अलङ्कारशास्त्रको इल्म-कलाम, रसा- तथा एक स्त्रोकी मूर्ति हस्तिपृष्ठपर आरूढ़ है। यन विद्याको इल्म-कोमिया, गूढार्थको इल्म-गैब, ब्राह्मण लोग इन दोनोंको इन्ट्र और इन्द्राणोको मूर्ति आत्मविद्याको इल्म-जान, धातुविद्याको इल्म-तबयो, समझते हैं। उनके मतमें इन्हीं दोनों मूर्तिक नामानु- इतिहास शास्त्रको इल्म-तवारोख, शरीरव्यवच्छेद-शास्त्र सार इस गुहाको इन्द्रसभा कहते हैं। वस्तुतः | को इल्म-तशरोह,धर्मशास्त्रको इल्म-दीन, उद्धिविद्याको इन्द्रदेवको पूजाके लिये यह मन्दिर न बना था। +Wilson's Analysis of the Mackenzie Manuscripts, सिवा इसके इलोरेको दुमारलेना वा विवाह-सभा, Vol. I. p. civ. सौताका नानी, एहरभद्र-गुहा प्रभृति भी देखने योग्य | tAsiatic Researches, Vol. VI, p. 385. -
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