पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/८५

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८४ दृष्टब्रत-दूष्वसन ___“दृष्टी: पार्वायनान्तीयाः केवला मिर्वपेत् सदा।” (मनु) इष्टव्रत (सं०वि०) अपनी इच्छाका प्राज्ञाकारी, जो अपनी मर्जी के मुवाफिक चलता हो। इष्टिका (सं० स्त्री) इष्टका, ईट। इष्टसाधन (सं० ली.) अभीष्टसिडि, मुरादका बर | | "उद्धर्षणविष्टकया कण्डकोठविनाशनम् ।" ( मश्नुत ) पाना। इष्टिकापथिक, इष्टकापथ देखो। इष्टा (सं० स्त्री०) यज करणे त टाप् । शमोवृक्ष, | इष्टिक्वत् (सं० त्रि०) इष्टि-क-क्विप्-तुक् । यनकारी, होममें लगनेसे समिध्का नाम यह पड़ा है। यज्ञ करनेवाला। इष्टादि (स० पु०) पाणिन्युक्त शब्दगणविशेष। इस गण में इष्टिन् (सं० त्रि०) इष्टमनेन, इष्ट-इनि । द्रष्टाटिश्ययेति । इष्ट, पूर्त, उपसादित, निगदित, परिगदित,परिवादित, पापारा। यज्ञकारी, जो यन्न कर चुका हो।। निकथित, निषादित, निपठित, सङ्खलित, परिकलित, इष्टिपच (सं० पु.) इष्टये पचति, इष्टि-पच-बच । संरक्षित, परिरक्षित, अचिंत, गणित, अवकोण, अयुक्त, १ कपण, कञ्चस । २ असुर, दानव। असुर अपने ही ग्टहीत, आम्लात, श्रुत, अधीत, अवधान, आसेवित, लिये पाक बनाता है, यज्ञके लिये नहीं: इसमें अवधारित, अंवकल्पित, निराकृत, उपकृत, उपाकृत, उसका नाम इष्टिपच पड़ा है। अणुयुक्त, अणुगणित, अणुपठित और व्याकुलित शब्द | इष्टिमुष (सं० पु०) इष्टिं मुष्थति, इष्टि-मुष-विप। पड़ता है। दैत्य, राक्षस। इष्टापत्ति (सं० स्त्री०) अभिलषित-प्राप्ति, इष्टसिद्धि, इष्टीकृत (सं० लो०) नेष्टमिष्टं कृतम् इष्ट-व-चिः । लाभ, फायदा। वश्वास्तियोगे सम्पद्यकर्तरि चिः । पा ५४५०। १ न चाहे जान- इष्टापूर्त (स. क्ली०) समाहारहन्दः पूर्वपददीर्घश्च । वाले वस्तुको इच्छाका करना। २ यज्ञविशेष । १ अग्निहोत्रादि यज्ञ । २ साधारणके उपकारको यन्न इष्टु (सं० स्त्री०) इष-तुन् । इच्छा, मर्जी। एवं कूपखननादि कर्म। तालाब, कूयां, बावड़ी आदि | इष्टययन (सं० लो.) इष्टिभिरयन गमन यत्र, बनाने और उपवन लगानेको पण्डित पूर्त कहते हैं। बहुव्री। यागविशेषका अनुष्ठान, सांवत्सरिक एकाम्नि कम होमादि वेतामें जो डाला और वैदीके श्राद्धादि। अग्निदेवत्य प्रभृति अनेक प्रकार इसका मध्य दिया जाता, वह इष्ट कहाता है। उपरोक्त | भेद होता है। दोनोंका नाम इष्टापूर्त है। इम (सं० पु०) इष-मक । इषियुधीन्धित्यादिना मक। उए इष्टार्थ (सं० पु०) ईप्सित अथवा प्रियवस्तु, म | ११४४। १ कामदेव। २ वसन्तकाल, मौसम-बहार। इष्टार्थोदयुक्त (सं० त्रि०) उत्साहयुक्त, अभीष्टवस्तुके ३ गमन, रवानगी। लिये त्वरायित, मनभाव चीजके लिये जो-जानसे | दृष्य (सं० पु.) इष करणे क्य। वसन्तकाल, कोशिश करनेवाला। मौसम-बहार। इष्टालाप (सं० पु.) सदालाप, परस्पर भद्रालाप, इष्व (स.पु०) इष-वन् । सर्वनिनष्वं त्यादिना । उप ॥१५३ । मेलको बातचीत। प्राचार्य, मुर्शद। इष्टाख (दै०वि०) अभिलषित अख रखनेवाला, दृष्वग्र (सं. लो०) वाणका अग्रभाग, तौरकी नोक । जो बहुत अच्छे घोड़े रखता हो। इष्वग्रीय (सं० त्रि०) वाणके अग्रभागमें उत्पन्न इष्टि (सं० स्त्री०) यज बा इष-क्तिन्। १ यज्ञ। होनेवाला, जो तौरकी नोकसे निकला हो। २ इच्छा, मर्जी। ३ अभिलाष, खाहिश । ४ श्लोक- इष्वनीक (स० क्लो०) वाणका अवयव, तोरका संग्रह। ५ दानसंग्रह । ६ निमन्त्रण, बुलावा। ७ अन्वे- अज़ो। पण, तलाश । ८ अभिलषित वस्तु, खाहिशकी चीज़।। इष्वसन (स' को०) इष-प्रस करणे स्थz । (पु.) पश्चादममन, हिफाजत। कमान्।