पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/१५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(१३४)


(ऊ) “एक---एक" कभी कभी “यह-वह" के अर्थ में निश्चय- वाचक सर्वनाम के समान आता है; जैसे,

पुनि बंदौं शारद सुर-सरिता । युगल पुनीत मनोहर चरिता ।। मज्जन पान पापहर एका । कहत सुनत इक हर अविवेका ।।"–(राम०) ।

(२) "दूसरा" "दो" का क्रम-वाचक विशेषण है । यह “प्रकृत प्राणी या पदार्थ से भिन्न” के अर्थ में आता है; जैसे, “यह दूसरी घात है ।” “द्वार दूसरे दीनता उचित न तुलसी तेर ।" (तु० स०) । "दूसरा" के पर्यायवाची “अन्य और "और") हैं; जैसे, "अन्य पदार्थ", "और जाति ।"

( अ ) कभी कभी “दूसरा” “एक" के साथ विचित्रता ( तुलना ) के अर्थ में संज्ञा के समान आता है; जैसे “एक जलता मांस मारे तृष्णा के मुंह में रख लेता है..... और दूसरा उसीको फिर झट से खा जाता है ।" (सत्य०) ।

(आ) “एक-एक" के समान "एक-दूसरा" अथवा “पहला-- दूसरा" पहले कही हुई दे। वस्तुओं का क्रमानुसार निश्चय सूचित करता है; जैसे, “प्रतिष्ठा के लिये दो विद्याएँ हैं, एक शस्रविद्या और दूसरी शास्त्रविद्या। पहली बुढ़ापे मे हँसी कराती है, परंतु दूसरी को सदा आदर होता है ।"

(इ) “एक-दूसरा" यौगिक शब्द है और इसका प्रयोग "आपस" के अर्थ में होता है । यह बहुधा सर्वनाम के समान ( संज्ञा के बदले में ) आता है, जैसे, "लड़के एक-दूसरे से लडते हैं ।"

(ई) "और" कभी कभी "अधिक संख्या" के अर्थ में भी आता है; जैसे, “मैं और आम लूंगा ।"