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अष्टम् अट्ठ आठ
नवम् नअ नौ
दशम् दस दस

नवति नउए नब्बे
शत सअ सौ
सहत्र सहस सहस्त्र

 

 
प्रथम पठमो पहला
द्वितीय दुइअ दूसरा
तृतीय तइअ तीसरा

चतुर्थ चउत्थे चौथा
पञ्चम पंचमो पाँचवाँ
षष्ठ छट्‍ठो छठा

[टी॰—हिंदी के अधिकांश व्याकरणों में विशेषणों के भेद और उपभेद नहीं किये गये। इसका कारण कदाचित् वर्गीकरण के न्याय-सम्मत आधार का अभाव हो। विशेषणों के वर्गीकरण का कारण हम इस अध्याय के आरंभ में लिख आये हैं। इनका वर्गीकरण केवल "भाषातत्वदीपिका" में पाया जाता है, इसलिए हम अपने किये हुए भेदों का मिलान इसी पुस्तक में दिये गए भेदों से करते है। इस पुस्तक में "संख्या-विशेषण" के पाँच भेद किये गये हैं—(१) संख्यावाचक (२) समूहवाचक (३) क्रमवाचक (४) आवृत्तिवाचक और (५) संख्यांशवाचक। इनमें "संख्या-विशेषण" और "संख्यावाचक" एक ही अर्थ के दो नाम हैं जो क्रमशः जाति और उसकी उपजाति को दिये गये है। इससे नामों की गड़बड़ के सिवा कोई लाभ नहीं है। फिर "संख्यांश-वाचक" नाम का जो एक भेद है उसका समावेश "संख्या-वाचक" में हो जाता है, क्योंकि दोनों भेदों के प्रयोग समान हैं। जिस प्रकार एक, दो, तीन, आदि शब्द वस्तुओं की संख्या सूचित करते हैं उसी प्रकार आधा, पौन, सवा, आदि भी संख्या सूचित करनेवाले है। इसके सिवा अनिश्चित संख्या वाचक विशेषण "भाषा-तत्व दीपिका" में स्वीकार ही नहीं किया गया। उसके कुछ उदाहरण इस पुस्तक में "सामान्य सर्वनाम" के नाम से आये हैं, परंतु उनके विशेषणीभूत प्रयोग का कहीं उल्लेख ही नहीं है। प्रत्येक-बोधक विशेषण के विषय में भी "भाषा-तत्व-दीपिका" में कुछ नहीं कहा गया। हमने संख्या-वाचक विशेषण के सब मिलाकर सात भेद नीचे लिखे अनुसार किये हैं—