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जैसे, "करूँ कहाँ तक वर्णन उसकी अतुल दया का भाव।" (एकांत॰)। "एक साल व्यापार में टोटा पड़ा यहाँ तक कि उनका घर द्वार सब जाता रहा।" "यहाँ तक" बहुधा "कि" के साथ ही आता है।

कब का—इसका अर्थ "बहुत समय से है। इसका लिंग और वचन कर्त्ता के अनुसार बदलता है, जैसे, "माँ कब की पुकार रही है।" (सत्य॰)। "कब को टेरत दीन रटि।" (सत॰)।

क्योंकर—इसका अर्थ "कैसे" होता है, जैसे, "यह काम क्योंकर होगा?" "ये गढे क्योंकर पड़ गये" (गुटका॰)।

इसलिए—यह कभी क्रियाविशेषण और कभी समुच्चयबोधक होता है, जैसे, "वह इसलिए नहाता है कि ग्रहण लगा है।" (क्रि॰ वि॰)। "तू दुर्दशा में है, इसलिए मैं तुझे दान दिया चाहता हूँ।" (स॰-वो॰)

न, नहीं—'न' स्वतंत्र शब्द है, इसलिए वह शब्द और प्रत्यय के बीच में नहीं आ सकता। "देशोपालभ" नामक कविता में कवि ने सामान्य भविष्यत के प्रत्यय के पहले "न" लगा दिया है, जैसे, "लावो न गे वचन जो मन में हमारा।" यह प्रयोग दूषित है। जिन क्रियाओं के साथ "न" और "नहीं" दोनों आ सकते हैं, वहाँ "न" से केवल निषेध और "नहीं" से निषेध का निश्चय सूचित होता है, जैसे, "वह न आया," "वह नहीं आया।" "मैं न जाऊँगा," "मैं नहीं जाऊँगा।" (अं॰-६००) "न" प्रश्नवाचक अव्यय भी है, जैसे, "सब करेगा न?" (सत्य॰)। 'न' कभी कभी निश्चय के अर्थ में आता है। जैसे, "मैं तुझे अभी देखता हूँ न।" (सत्य॰)। न—न समुच्चयबोधक होते हैं, जैसे, "न उन्हें नींद आती थी न भूख-प्यास लगती थी।" (प्रेम॰)। प्रश्न के उत्तर मेँ 'नही' आता है, जैसे, तुमने उसे रुपया दिया था? नहीँ।