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उपयोग में आते हैं। कोई इन्हे संयोजक और कई विभाजक मानते हैं। इनके प्रयोग में यह विशेषता है कि ये वाक्य में दो वा अधिक शब्दो का विभाग बताकर उन सबका इकट्ठा उल्लेख करते हैं, जैसे, "क्या मनुष्य और क्या जीवजंतु, मैंने अपना सारा जन्म इन्हींका भला करने में गँवाया"। (गुटका०)। "क्या स्त्री क्या पुरुष, सब ही के मन में आनंद छाय रहा था" (प्रेम०)।

न-न—ये दुहरे क्रियाविशेषण समुच्चय-बोधक होकर आते हैं। इनसे दो वा अधिक शब्दो में से प्रत्येक का त्याग सूचित होता है, जैसे, " उन्हें नींद आती थी न भूख प्यास लगती थी"। (प्रेम०)। कभी कभी इनसे अशक्यता को बोध होता है; जैसे, " ये अपने प्रबधों से छुट्टी पावेंगे कही जायँगे"। (सत्य०)। " नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी"। (कहा०)। कभी कभी इनका प्रयोग कार्य-कारण सूचित करने में होता है, जैसे, " तुम आते यह उपद्रव खड़ा होता"।

न कि—यह "न" और "कि" से मिलकर बना है। इससे बहुधा दो बातों में से दूसरी का निषेध सूचित होता है, जैसे, अँगरेज लेाग व्यापार के लिये आये थे न कि देश जीतने के लिये"।

नहीं तो—यह भी संयुक्त क्रियाविशेषण है, और समुच्चय-बोधक के समान उपयेाग में आता है। इससे किसी बात के त्याग का फल सूचित होता है, जैसे, "उसने मुह पर घूंघट सा डाल लिया है, नहीं तो राजा की आँखें कब उस पर ठहर सकती थीं"। (गुटका०)।

(इ) विरोधदर्शक—पर, परतु, कितु, लेकिन, मगर, बरन, बल्कि। ये अव्यय दो वाक्यो मे से पहले का निषेध वा परिमिति सूचित करते हैं।

पर—"पर" ठेठ हिंदी शब्द है, "परंतु" तथा "किंतु" संस्कृत