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शब्द हैं और "लेकिन" तथा "मगर" उर्दू हैं। "पर", "परंतु" और "लेकिन" पर्यायवाची हैं। "मगर" भी इनका पर्यायवाची है; परंतु इसका प्रयोग हिंदी में क्वचित् होता है। "प्रेमसागर" मे केवल "पर" का प्रयोग पाया जाता है; जैसे, "झूठ सच की तो भगवान् जाने; पर मेरे मन में एक बात आई है।"

किंतु, बरन—ये शब्द भी प्रायः पर्यायवाची हैं और इनका प्रयोग बहुधा निषेधवाचक वाक्यो के पश्चात् होता है; जैसे, "कामनाओं के प्रबल होने से आदमी दुराचार नहीं करते, किंतु अंत करण के निर्बल होजाने से वे वैसा करते है।" (स्वा०)। "मैं केवल सँपेरा नहीं हूँ; किंतु भाषा का कवि भी हूँ"। (मुद्रा०)। "इस संदेह का इतने काल बीतने पर यथोचित समाधान करना कठिन है, "बरन" बड़े बड़े विद्वानों की मति भी इसमे विरुद्ध है"। (इति०)। "बरन" बहुधा एक बात को कुछ दबाकर दूसरी के प्रधानता देने के लिये भी आता है; "जैसे पारस देशवाले भी आर्य थे, बरन इसी कारण उस देश को अब भी ईरान कहते हैं"। (इति०)। "बरन" के पर्यायवाची "वरञ्च" (संस्कृत) और "बल्कि" (उर्दू) हैं।

(ई) परिणामदर्शक—इसलिए, सो, अत , अतएव।

इन अव्ययों से यह जाना जाता है कि इनके आगे के वाक्य का अर्थ पिछले वाक्य के अर्थ का फल है, जैसे, "अब भोर होने लगा था, इसलिए दोनों जन अपनी अपनी ठौरों से उठे", (ठेठ०)। इस उदाहरण मे "दानों जन अपनी अपनी ठौरों से उठे?", यह वाक्य परिणाम सूचित करता है और "अब भोर होने लगा था", यह कारण बतलाती हैं, इस कारण "इसलिए" परिणामदर्शक समुच्चय-बोधक है। यह शब्द मूल समुच्चय-बोधक नहीं है, किंतु "इस" और "लिए" के मेल से बना है, और समुच्चय-बोधक तथा कभी