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निश्चित करते हैं । शेष शब्दों का लिग केवल व्यवहार के अनुसार माना जाता है; और इसके लिए व्याकरण से पूर्ण सहायता नहीं मिल सकती।

२५८—जिन प्राणिवाचक संज्ञाओं से जोड़े का ज्ञान होता है। उनमें पुरुषबोधक संज्ञाएँ पुल्लिग और स्त्रीबोधक संज्ञाएँ स्त्रीलिंग होती हैं; जैसे, पुरुष, घोड़ा, मोर, इत्यादि पुल्लिंग हैं; और स्त्री, घोड़ी, मोरनी, इत्यादि स्त्रीलिंग हैं।

अप०—"संतान और "सवारी" (यात्री) स्त्रीलिंग हैं।

[सू०—शिष्ट लोगों में स्त्री के लिए "घर के लोग"—पुल्लिंग शब्द—बोला जाता है।

(क) कई एक मनुष्येतर प्राणिवाचक संज्ञा से देने जातियों का बोधक होता है; पर वे व्यवहार के अनुसार नित्य पुलिंग वा स्त्रीलिंग होती हैं, जैसे,

पु०—पक्षी, जल, कौआ, भेडिया, चीता, खटमल, केंचुआ, इत्यादि ।

स्त्री०—चील, कोयल, बटेर, मैना, गिलहरी, जोंक, तितली, मक्खी, मछली, इत्यादि।

सू०—इन शब्दों के प्रयेाग में लोग इस बात की चिंता नहीं करते कि इनके वाच्य प्राणी पुरुष है वा स्त्री । इस प्रकार के उदाहरणों का एक लिंग कह सकते है। कहीं कहीं "हाथी" को स्त्रीलिंग में बोलते हैं, पर यह प्रयोग अशुद्ध है।

(ख) प्राणियों के समुदाय-वाचक नाम भी व्यवहार के अनुसार पुल्लिंग वा स्त्रील्लिंग होते है, जैसे,

पु०—समुह, झुंड, कुटुंब, स घ, दल, मंडल, इत्यादि।

स्त्री०—भीड़, फौज, सभा, प्रजा, सरकार, टोली, इत्यादि।]

२५९—हिंदी में अप्राणिवाचक शब्दो का लिंग जानना विशेष कठिन है, क्योकि यह बात अधिकांश में व्यवहार के अधीन है। अर्थ और रूप, दोनों ही साधनों से इन शब्दों का लिग जानने मे कठिनाई होती है। नीचे लिखे उदाहरणों से यह कठिनाई स्पष्ट जान पड़ेगी।

( अ ) एक ही अर्थ के कई अलग अलग शब्द अलग अलग लिंग