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(ई) आकारांत संज्ञाएँ; जैसे, हवा, दवा, सजा, जमा, दुनिया, बला (अप० बलाय) इत्यादि।

अप०—'मजा' उभयलिग और 'दगा' पुल्लिंग है।

(उ) "तफईल" के वजन की संज्ञाएँ; जैसे—तसवीर, तामील, जागीर, तहसील, तफसील इत्यादि।

अप०—तावीज।

(ऊ) हकारांत संज्ञाएँ, जैसे, सुबह, तरह, राह, आह, सलाह, सुलह इत्यादि।

अप०—माह, गुनाह।

२६२—कोई कोई संज्ञाएँ दोनों लिंगों में आती हैं। इनके कुछ उदाहरण पहले आ चुके हैं। और उदाहरण यहाँ दिये जाते हैं। इन संज्ञाओं को उभयलिंग कहते हैं—

सहाय, विनय, घास, बर्फ, तमाखू, दरार, श्वास, गेंद, गड़बड़, कलम, आत्मा, मजा, समाज, चलन, चाल-चलन, पुस्तक, पवन इत्यादि।

२६३—हिदी मे तीन-चौथाई शब्द संस्कृत के हैं और तत्सम तथा तद्भव रूपों में पाये जाते हैं। संस्कृत के पुल्लिग वा नपुंसकलिंग हिंदी मे बहुधा पुल्लिग, और स्त्रीलिग शब्द बहुधा स्त्रीलिग होते हैं। तथापि कई एक तत्सम और तद्भव शब्दो का मूल लिग हिंदी में बदल गया है, जैसे—

तत्सम शब्द।

शब्द सं० लिं० हिं० लि०
अग्नि (आग) पु० स्त्री०
आत्मा पु० उभय०
आयु न० स्त्री०
जय ,, स्त्री०