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"चिऊँटी लोग।" (मुद्रा०)। यह प्रयोग एकदेशीय है।

२९७—"लोग" शब्द के सिवा, गण, जाति, जन, वर्ग आदि समूह-वाचक संस्कृत शब्द बहुवचन के अर्थ में आते हैं। इन शब्दों का प्रयोग भिन्न भिन्न प्रकार का है—

गण—यह शब्द बहुधा मनुष्यों, देवताओं और ग्रहो के नाम के साथ आता है, जैसे, देवतागण, अप्सरागण, बालकगण, शिक्षकगण, तारागण, ग्रहगण, इत्यादि। "पक्षिगण?" भी प्रयाग में आता है। "रामचरितमानस" में "इंद्रियगण" आया है।

वर्ग, जाति—ये शब्द "जाति" के बोधक हैं, और बहुधा प्राणिवाचक शब्दों के साथ आते हैं; जैसे, मनुष्यजाति, स्त्रीजाति (शकु०), जनकजाति (राम०), पशुजाति, बधुवर्ग, पाठकवर्ग, इत्यादि। इन संयुक्त शब्दों का प्रयोग बहुधा एकवचन में होता है।

जन—इसका प्रयोग बहुधा मनुष्याचक शब्दों के साथ होता है, जैसे; भक्तजन, गुरुजन, स्त्रीजन, इत्यादि।

(अ) कविता में इन समूहवाचक शब्दों का प्रयोग बहुतायत से होता है और उसमें इनके कई पर्यायवाची शब्द आते हैं; जैसे, मुनिवृद, मृग-निकर, जंतु संकुल, अघ-ओघ, इत्यादि। समूहवाचक शब्दों के और उदाहरण—बरूथ, पुंज, समुदाय, समूह, निकाय।

२९८—संज्ञाओं के तीन भेदों में से बहुधा जातिवाचक संज्ञाएँ ही बहुवचन मे आती हैं, परतु जब व्यक्तिवाचक और भाववाचक संज्ञाओं का प्रयोग जातिवाचक संज्ञा के समान होता है, तब उनका भी बहुवचन होता है, जैसे, "कहु रावण, रावण जग केते।" (राम०)। "उठती बुरी हैं भावनाएँ हाय! मम हृद्धाम में।" (क० क० )। (अं०—१०५, १०७)।

(अ) जब ‘पन' प्रत्ययात भाववाचक संज्ञाओं का बहुवचन बनाना