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(३) व्याकरण की सीमा।

लोग बहुधा यह समझते हैं कि व्याकरण पढ़कर वे शुद्ध शुद्ध बोलने और लिखने की रीति सीख लेते हैं। ऐसा समझना पूर्ण रूप से ठीक नहीं 1 यह सच है कि शब्दों की बनावट और उनके संबंध की खोज करने से भाषा के प्रयोग में शुद्धता , जाती है, पर यह बात गौण है । व्याकरण न पढ़कर भी लोग : शुद्ध शुद्ध बोलना और लिखना सीख सकते हैं। हिंदी के कई अच्छे लेखक व्याकरण नहीं जानते अथवा व्याकरण जानकर भी लेख लिखने में उसका उपयोग नहीं करते। उन्होंने अपनी मातृभाषा को लिखना अभ्यास से सीखा है। शिक्षित लोगों के लड़के, विना :व्याकरण जाने, शुद्ध भाषा सुनकर ही, शुद्ध शुद्ध बोलना सीख लेते हैं। परअशिक्षित लोगों के लड़के व्याकरण पढ़ लेने पर भी प्रायः अशुद्धही, बोलते हैं, यदि छोटा लड़का कोई चाक्य शुद्ध नहीं, बोल सकता तो उसकी माँ उसे व्याकरण का नियम नहीं समझाती, वरन शुद्धवाक्य बता देती है और लड़का वैसा ही बोलने लगता है।

व्याकरण पढ़ने से मनुष्य अच्छा लेखक या वक्ता नहीं हो सकता। विचारों की सत्यता अथवा असत्यता से भी व्याकरण का कोई संबंध नहीं । भाषा में व्याकरण की भूले न होने पर भी विचारों की भूले हो सकती हैं और रोचकता का अभाव रह सकता है। व्याकरण की सहायता से हम केवल- शब्दों का शुद्ध प्रयोग जानकर अपने विचार स्पष्टता से प्रकट कर सकते हैं, जिससे किसी भी विचारवान् मनुष्य को उनके समझने में कठिनाई अथवा संदेह न हो।

(४) व्याकरण से लाभ।

यहाँ अर्थ यह प्रश्न हो सकता है कि यदि भाषा व्याकरण के आश्रित नहीं और यदि व्याकरण की सहायता पाकर हमारी भाषा शुद्ध, रोचक और प्रामाणिक नहीं हो सकती, तो उसका निर्माण