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(क) हिंदी आकारांत संज्ञाओं वा विशेषणों में "पन" लगाने से जे भाववचक संज्ञाएँ बनती हैं उनके आगे विभक्ति आने पर मूल संज्ञा वा विशेषण का रूप विकृत होता है, जैसे, कड़ापन—कड़ेपन का, गुंडापन—गुंडेपन से, बहिरापन—बहिरेपन मे, इत्यादि।

अप॰—(१) संबोधन-कारक में "बेटा" शब्द का रूप बहुधा नहीं बदलता; जैसे, "अरे बेटा, ऑख खोलो।" (सत्य॰)। "बेटा! उठ।" (रघु॰)।

अप॰—(२) जिन आकारात पुल्लिग शब्दों को रूप विभक्ति-रहित बहुवचन में नहीं बदलता वे एकवचन में भी विकृत रूप में नहीं आते (अ॰—२८९ और अपवाद); जैसे, राजा ने, काका को, दारोगा से, देवता में, रामबोला का, इत्यादि।

अप॰—(३) भारतीय प्रसिद्ध स्थानों के व्यक्तिवाचक आकारांत पुल्लिंग नामों को छोड़, शेष देशी तथा मुसलमानी स्थानवाचक आकारांत पुल्लिंग शब्दों का विकृत रूप विकल्प से होता है; जैसे, आगरे का आया हुआ।" (गुटका॰)। "कलकत्ते के महलों में।" (शिव॰)। "इस पाटलिपुत्र (पटने) के विषय में। (मुद्रा॰)। "राजपूताने में", "दरभंगे की फसल।" (शिक्षा)। "दरभंगा से।" (सर॰)। छिंदवाड़ा में वा छिंदवाड़े में, बसरा से वा बसरे से, इत्यादि।

प्रत्यपवाद—पाश्चात्य स्थानों के और कई एक देशी संस्थानों के अकारांत पुल्लिंग नाम अविकृत रहते हैं ; आफ्रिका, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, लासा, रीवाँ, नाभा, कोटा, आदि।

अप॰—(४) जब किसी विकारी आकारांत संज्ञा (अथवा दूसरे शब्द) के संबंध-कारक के बाद वही शब्द आता है तब पूर्व शब्द बहुधा अविकृत रहता है; जैसे, कोठा का कोठा; जैसा का तैसा।