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कर्म-संप्रदान तिसको, तिसे तिनको, तिन्हें

[सू॰—शेष रूप "वह" के अनुसार विभक्तियाँ लगाने से बनते है।]।

(अ) "सो" के जो रूप यहाॅ दिये गये हैं वे यथार्थ में "तौन" के हैं जो पुरानी भाषा मे "जौन" (जो) को नित्यसंबंधी है। "तौन" अब प्रचलित नहीं है; परंतु उसके कोई कोई रूप "सो" के बदले और कभी कभी "जिस" के साथ आते हैं; इसलिए सुभीते के विचार से सब रूप लिख दिये गये हैं। "तिसपर भी", "जिस-तिसको", आदि रूपों को छोड़ "तौन" के शेष रूपों के बदले "वह" के रूप प्रचलित हैं।
(आ) निश्चयवाचक सर्वनामो के रूप में अवधारण के लिए एकवचन में ई और बहुवचन में ही अंत्य स्वर में आदेश करते हैं; जैसे, यह—यही, वह वही, इन-इन्हींसे, उन्हींको, सोई, इत्यादि।

३२७—संबंधवाचक सर्वनाम "जो" और प्रश्नवाचक सर्वनाम "कौन" के रूप निश्चयवाचक सर्वनामों के अनुसार बनते हैं। "जो" के विकृत रूप दोनों वचनों में क्रमश: "जिस" और "जिन" हैं, तथा "कौन" के "किस" और "किन" हैं।

संबंध-वाचक "जो"

कारक एक॰ बहु॰
कर्त्ता जो जो
जिसने जिनने, जिन्होंने
कर्म—संप्रदान जिसको, जिसे जिनको, जिन्हें

३२८—प्रश्नवाचक "कौन"।

कारक एक॰ बहु॰
कर्त्ता कौन कौन
किसने किनने, किन्होंने
कर्म—संप्रदान किसको, किसे किनको, किन्हें