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(२) जिस क्रिया के पुरुष, लिंग और वचन कर्म के पुरुष, लिंग और वचन के अनुसार होते हैं उसे कर्मणिप्रयाग कहते हैं; जैसे, मैंने पुस्तक पढ़ी, पुस्तक पढ़ी गई, रानी ने पत्र लिखा, इत्यादि।

(३) जिस क्रिया के पुरुष, लिंग और वचन कर्त्ता वा कर्म के अनुसार नहीं होते, अर्थात् जो सदा अन्य पुरुष, पुल्लिंग, एकवचन में रहती है उसे भावेप्रयेाग कहते हैं; जैसे, रानी ने सहेलियों को बुलाया, मुझसे चला नहीं जाता, सिपाहियों को लड़ाई पर भेजा जावेगा।

३६६—सकर्मक क्रियाओं के भूतकालिक कृदंत से बने हुए कालों को (अं॰—३८९) छोड़कर कर्तृवाच्य के शेष काल में तथा अकर्मक क्रिया के सब कालों में कर्त्तरिप्रयोग आता है। कर्तरिप्रयोग में कर्त्ता-कारक अप्रत्यय रहता है।

अप॰—(१) भूतकालिक कृदंत से बने हुए कालों मे बोलना, भूलना, बकना, लाना, समझना और जनना सकर्मक क्रियाएँ कर्त्तरिप्रयोग में आती हैं, जैसे, लड़की कुछ न बोली, हम बहुत बके, "राम-मन-भ्रमर न भूला"। (राम॰)। "दूसरे गर्भाधान में केतकी पुत्र जनी"। (गुटका॰)। कुछ तुम समझे, कुछ हम समझे। (कहा॰)। नौकर चिट्ठी लाया, इत्यादि।

अप॰—(२) नहाना, छींकना, आदि अकर्मक क्रियाएँ भूतकालिक कृदत से बने हुए कालों में भावेप्रयोग में आती हैं, जैसे हमने नहाया है, लड़की ने छीका, इत्यादि।

प्रत्य॰—कोई कोई लेखक बोलना, समझना और जनना क्रियाओं के साथ विकल्प से सप्रत्यय कर्त्ता-कारक का प्रयोग करते हैं; जैसे, "उसने कभी झूठ नहीं बोला।" (रघु॰)। "केतकी ने लड़की जनी।" (गुटका॰)। जिन स्त्रियो ने तुम्हारे बाप के बाप को जना हैं।"(शिव॰)। "जिसका मतलब मैंने कुछ भी नहीं समझा ।" (विचित्र॰)।