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(६) काल-रचना।

३८५—क्रिया के वाच्य, अर्थ, काल, पुरुष, लिंग और वचन के कारण होनेवाले सब रूपों का संग्रह करना काल-रचना कहलाती है।

(क) हिंदी के सोलह काल रचना के विचार से तीन वर्गो में बाँटे जासकते हैं। पहले वर्ग में वे काल आते हैं जो धातु में प्रत्ययो के लगाने से बनते हैं, दूसरे वर्ग में वे काल हैं जो वर्तमानकालिक कृदंत मे सहकारी क्रिया "होना" के रूप लगाने से बनते हैं और तीसरे वर्ग मे वे काल आते हैं जे भूतकालिक कृदंत मे उसी सहकारी क्रिया के रूप जोड़कर बनाये जाते हैं। इन वर्गो के अनुसार कालो का वर्गीकरण नीचे दिया जाता है—

पहला वर्ग।

(धातु से बने हुए काल)

(१) सभाव्य-भविष्यत्
(२) सामान्य-भविष्यत्
(३) प्रत्यक्ष-विधि
(४) परोक्ष-विधि

दूसरा वर्ग।

(वर्तमानकालिक कृदंत से बने हुए काल)

(१) समान्य संकेतार्थ (हेतुहेतुमद्भू तकाल)
(२) सामान्य वर्तमान
(३) अपूर्ण-भूत
(४) संभाव्य-वर्तमान
(५) संदिग्ध-वर्तमान
(६) अपूर्ण-संकेतार्थ