पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/३८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(३६२)


४११—पूर्वकालिक कृदंत के योग से तीन प्रकार की संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं—(१) अवधारणबोधक, (२) शक्तिबोधक, (३) पूर्णताबोधक।

४१२—अवधारण-बोधक क्रिया से मुख्य क्रिया के अर्थ में अधिक निश्चय पाया जाता है। नीचे लिखी सहायक क्रियाएँ इस अर्थ में आती हैं। इन क्रिया का ठीक-ठाक उपयोग सर्वथा व्यवहार के अनुसार है; तथापि इनके प्रयेाग के कुछ नियम यहाँ दिये जाते हैं—

उठना—इस क्रिया से अचानकता का बोध होता है। इसका उपयोग बहुधा स्थितिदर्शक क्रियाओं के साथ होता है; जैसे, बोल उठना, चिल्ला उठना, रो उठना, कॉप उठना, चौंक उठना, इत्यादि।

बैठना—यह क्रिया बहुधा धृष्टता के अर्थ में आती है। इसका प्रयेाग कुछ विशेष क्रिया ही के साथ होता है; जैसे, मार बैठनी, कह बैठना, चढ़ बैठना, खो बैठना। "उठना" के साथ "बैठना" का अर्थ वहुधा अचानकता-बोधक होता है; जैसे, वह उठ बैठा।

आना—कई स्थानों में इस क्रिया का स्वतंत्र अर्थ पाया जाता है, जैसे, देख अओ = देखकर आओ, लौट आओ = लौटकर आओ। दूसरे स्थानों में इससे यह सूचित होता है कि क्रिया का व्यापार वक्ता की ओर होता है; जैसे, बादल घिर आये, आज यह चोर यम के घर से बच आया, इत्यादि। "वातहिवात कर्प बढ़ि आई।"(राम॰)।

(अ) कभी कभी बोलना, कहना, रोना, हँसना, आदि क्रियाओं के साथ "आना" का अर्थ "उठना" के समान अचानकता का होता है, जैसे, "कह्यो चाहे कछू तो कछू कहि आवै।" (जगत॰)। उसकी बात सुनकर मुझे रो आया