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प्रायः उर्दू-ढंग की होती थी। आर्य-समाज की स्थापना से साधारण लोगों में वैदिक विषयों की चर्चा और धर्म-संबंधी हिंदी की अच्छी उन्नति हुई। काशी की नागरीप्रचारिणी सभा ने हिंदी की विशेष, उन्नति की है।

इस काल के और प्रसिद्ध लेखक राजा लक्ष्मणसिंह, पं० अंबि- कादत्त व्यास और भारतेदु हरिश्चंद्र हैं। इन सब में भारतेंदु जी का आसन ऊँचा है। उन्होंने केवल ३५ वर्ष की आयु में कई विषयों की अनेक पुस्तकें लिखकर हिंदी का उपकार किया और भावी-लेखकों को अपनी मातृ-भाषा की उन्नति का मार्ग बताया।

(५) हिंदी और उर्दू ।

'हिदी' नाम से जो भाषा हिंदुस्थान में प्रसिद्ध और प्रचलित है उसके नाम, रूप और विस्तार के विषय में विद्वानों का मत-भेद है। कई लोगों की राय में हिंदी और उर्दू एकही भाषा हैं और कई लोगों की राय में ये दोनों अलग अलग दो बोलियाँ हैं। राजा शिवप्रसाद सदृश महाशयों की युक्ति यह है कि शहरों और पाठशा-लाओं में हिंदू और मुसलमान कुछ सामाजिक तथा धर्म-संबंधी और वैज्ञानिक शब्दों को छोड़कर प्रायः एकही भाषा में बातचीत करते हैं और एक दूसरे के विचार पूर्णतया समझ लेते हैं। इसके विरुद्ध राजा लक्ष्मणसिंह सदृश विद्वानों का पक्ष यह है कि जिन दो जातियों का धर्म, व्यवहार, विचार, सभ्यता और उद्देश एक नहीं हैं उनकी भाषा एक कैसे हो सकती है? जो हो; साधारण लोगों में आजकल हिंदुस्थानियों की भाषा हिंदी और मुसलमानों की भाषा उर्दू प्रसिद्ध है। भाषा का मुसलमानी रूपांतर केवल हिंदी ही में नहीं पाया जाता, वरन बँगला, गुजराती, आदि भाषाओं में भी ऐसे उपभेद हो गये हैं। "हिन्दी-भाषा की उत्पत्ति" नामक पुस्तक के अनुसार हिंदी और उर्दू हिंदुस्तानी की शाखाएँ हैं जो पश्चिमी हिंदी का एक