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भेद है। इस भाषा का "हिंदुस्तानी" नाम अँगरेजों की रक्खा हुआ है और उससे बहुधा उर्दू का बोध होता है। हिंदू लोग इस शब्द को “हिंन्दुस्थानी" कहते हैं और इससे बहुधा "हिंदी बोलने- वाली जाति" के अर्थ में प्रयुक्त करते हैं।

हिंदी कई नामों से प्रसिद्ध है, जैसे, भाषा, हिंदवी ( हिंदुई ), हिदी, खड़ीबोली और नागरी । इसी प्रकार मुसलमानों की भाषा के भी कई नाम हैं। वह हिंदुस्तानी, उर्दू, रेख्ता और दक्खिनी कह-लाती है। इनमें से बहुतसे नाम दोनों भाषाओ का यथार्थ रूप निश्चित न होने के कारण दिये गये हैं।
हमारी भाषा का सव से पुराना नाम केवल "भाषा" है।

म० म० पं० सुधाकर द्विवेदी के अनुसार यह नाम भास्वती की टीका में आया है जिसकी समय सं० १४८५ है। तुलसीदास ने रामायण में "भाषा ” शब्द लिखा है, पर अपने फारसी पंचनामें मे “हिंदवी" शब्द का प्रयोग किया है। बहुधा पुस्तकों के नामों में और टीकाओं में यह शब्द आजतक प्रचलित है, जैसे, “भाषा भास्कर, " "भाषा-टीका-सहित, " इत्यादि । पादरी आदम साहब की लिखी और सन् १८३७ मे दूसरी बार छपी " उपदेश-कथा " में इस भाषा का नाम "हिंदुवी" लिखा है। इन उदाहरणों से जान पड़ता है कि हमारी भाषा का “हिंदी" नाम आधुनिक है। इसके पहले हिंदू लोग इसे मैं "भाषा" और मुसलमान लोग "हिंदुई" या "हिंदवी" कहते थे। लल्लूजी लाल ने प्रेम-सागर मे ( सन् १८०४ मे ) इस भाषा का नाम "खड़ी-बोली" लिखा है जिसे

सन् १८४६ में दूसरी बार छपी “ पदार्थविद्यासार” नामक पुस्तक में " हिंदी-भाषा" नाम आया है। ब्रज-भाषा के ओकारात रूपो से मिलान करने पर हिंदी के आका-रांत-रूप 'खड़े' जान पड़ते हैं। बुँदेलखंड में इस भाषा की ‘ठाढ़ बोली, ' या 'तुर्की ' कहते हैं ।